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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
5522 | 74 | 27 | وما أدراك ما سقر |
| | | और तुम क्या जानों कि जहन्नुम क्या है |
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5523 | 74 | 28 | لا تبقي ولا تذر |
| | | वह न बाक़ी रखेगी न छोड़ देगी |
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5524 | 74 | 29 | لواحة للبشر |
| | | और बदन को जला कर सियाह कर देगी |
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5525 | 74 | 30 | عليها تسعة عشر |
| | | उस पर उन्नीस (फ़रिश्ते मुअय्यन) हैं |
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5526 | 74 | 31 | وما جعلنا أصحاب النار إلا ملائكة وما جعلنا عدتهم إلا فتنة للذين كفروا ليستيقن الذين أوتوا الكتاب ويزداد الذين آمنوا إيمانا ولا يرتاب الذين أوتوا الكتاب والمؤمنون وليقول الذين في قلوبهم مرض والكافرون ماذا أراد الله بهذا مثلا كذلك يضل الله من يشاء ويهدي من يشاء وما يعلم جنود ربك إلا هو وما هي إلا ذكرى للبشر |
| | | और हमने जहन्नुम का निगेहबान तो बस फरिश्तों को बनाया है और उनका ये शुमार भी काफिरों की आज़माइश के लिए मुक़र्रर किया ताकि अहले किताब (फौरन) यक़ीन कर लें और मोमिनो का ईमान और ज्यादा हो और अहले किताब और मोमिनीन (किसी तरह) शक़ न करें और जिन लोगों के दिल में (निफ़ाक का) मर्ज़ है (वह) और काफिर लोग कह बैठे कि इस मसल (के बयान करने) से ख़ुदा का क्या मतलब है यूँ ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत करता है और तुम्हारे परवरदिगार के लशकरों को उसके सिवा कोई नहीं जानता और ये तो आदमियों के लिए बस नसीहत है |
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5527 | 74 | 32 | كلا والقمر |
| | | सुन रखो (हमें) चाँद की क़सम |
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5528 | 74 | 33 | والليل إذ أدبر |
| | | और रात की जब जाने लगे |
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5529 | 74 | 34 | والصبح إذا أسفر |
| | | और सुबह की जब रौशन हो जाए |
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5530 | 74 | 35 | إنها لإحدى الكبر |
| | | कि वह (जहन्नुम) भी एक बहुत बड़ी (आफ़त) है |
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5531 | 74 | 36 | نذيرا للبشر |
| | | (और) लोगों के डराने वाली है |
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