نتائج البحث: 6236
|
ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3616 | 34 | 10 | ولقد آتينا داوود منا فضلا يا جبال أوبي معه والطير وألنا له الحديد |
| | | और हमने यक़ीनन दाऊद को अपनी बारगाह से बुर्जुग़ी इनायत की थी (और पहाड़ों को हुक्म दिया) कि ऐ पहाड़ों तसबीह करने में उनका साथ दो और परिन्द को (ताबेए कर दिया) और उनके वास्ते लोहे को (मोम की तरह) नरम कर दिया था |
|
3617 | 34 | 11 | أن اعمل سابغات وقدر في السرد واعملوا صالحا إني بما تعملون بصير |
| | | कि फँराख़ व कुशादा जिरह बनाओ और (कड़ियों के) जोड़ने में अन्दाज़े का ख्याल रखो और तुम सब के सब अच्छे (अच्छे) काम करो वो कुछ तुम लोग करते हो मैं यक़ीनन देख रहा हूँ |
|
3618 | 34 | 12 | ولسليمان الريح غدوها شهر ورواحها شهر وأسلنا له عين القطر ومن الجن من يعمل بين يديه بإذن ربه ومن يزغ منهم عن أمرنا نذقه من عذاب السعير |
| | | और हवा को सुलेमान का (ताबेइदार बना दिया था) कि उसकी सुबह की रफ्तार एक महीने (मुसाफ़त) की थी और इसी तरह उसकी शाम की रफ्तार एक महीने (के मुसाफत) की थी और हमने उनके लिए तांबे (को पिघलाकर) उसका चश्मा जारी कर दिया था और जिन्नात (को उनका ताबेदार कर दिया था कि उन) में कुछ लोग उनके परवरदिगार के हुक्म से उनके सामने काम काज करते थे और उनमें से जिसने हमारे हुक्म से इनहराफ़ किया है उसे हम (क़यामत में) जहन्नुम के अज़ाब का मज़ा चख़ाँएगे |
|
3619 | 34 | 13 | يعملون له ما يشاء من محاريب وتماثيل وجفان كالجواب وقدور راسيات اعملوا آل داوود شكرا وقليل من عبادي الشكور |
| | | ग़रज़ सुलेमान को जो बनवाना मंज़ूर होता ये जिन्नात उनके लिए बनाते थे (जैसे) मस्जिदें, महल, क़िले और (फरिश्ते अम्बिया की) तस्वीरें और हौज़ों के बराबर प्याले और (एक जगह) गड़ी हुई (बड़ी बड़ी) देग़ें (कि एक हज़ार आदमी का खाना पक सके) ऐ दाऊद की औलाद शुक्र करते रहो और मेरे बन्दों में से शुक्र करने वाले (बन्दे) थोड़े से हैं |
|
3620 | 34 | 14 | فلما قضينا عليه الموت ما دلهم على موته إلا دابة الأرض تأكل منسأته فلما خر تبينت الجن أن لو كانوا يعلمون الغيب ما لبثوا في العذاب المهين |
| | | फिर जब हमने सुलेमान पर मौत का हुक्म जारी किया तो (मर गए) मगर लकड़ी के सहारे खड़े थे और जिन्नात को किसी ने उनके मरने का पता न बताया मगर ज़मीन की दीमक ने कि वह सुलेमान के असा को खा रही थी फिर (जब खोखला होकर टूट गया और) सुलेमान (की लाश) गिरी तो जिन्नात ने जाना कि अगर वह लोग ग़ैब वॉ (ग़ैब के जानने वाले) होते तो (इस) ज़लील करने वाली (काम करने की) मुसीबत में न मुब्तिला रहते |
|
3621 | 34 | 15 | لقد كان لسبإ في مسكنهم آية جنتان عن يمين وشمال كلوا من رزق ربكم واشكروا له بلدة طيبة ورب غفور |
| | | और (क़ौम) सबा के लिए तो यक़ीनन ख़ुद उन्हीं के घरों में (कुदरते खुदा की) एक बड़ी निशानी थी कि उनके शहर के दोनों तरफ दाहिने बाएं (हरे-भरे) बाग़ात थे (और उनको हुक्म था) कि अपने परवरदिगार की दी हुई रोज़ी Âाओ (पियो) और उसका शुक्र अदा करो (दुनिया में) ऐसा पाकीज़ा शहर और (आख़ेरत में) परवरदिगार सा बख्शने वाला |
|
3622 | 34 | 16 | فأعرضوا فأرسلنا عليهم سيل العرم وبدلناهم بجنتيهم جنتين ذواتي أكل خمط وأثل وشيء من سدر قليل |
| | | इस पर भी उन लोगों ने मुँह फेर लिया (और पैग़म्बरों का कहा न माना) तो हमने (एक ही बन्द तोड़कर) उन पर बड़े ज़ोरों का सैलाब भेज दिया और (उनको तबाह करके) उनके दोनों बाग़ों के बदले ऐसे दो बाग़ दिए जिनके फल बदमज़ा थे और उनमें झाऊ था और कुछ थोड़ी सी बेरियाँ थी |
|
3623 | 34 | 17 | ذلك جزيناهم بما كفروا وهل نجازي إلا الكفور |
| | | ये हमने उनकी नाशुक्री की सज़ा दी और हम तो बड़े नाशुक्रों ही की सज़ा किया करते हैं |
|
3624 | 34 | 18 | وجعلنا بينهم وبين القرى التي باركنا فيها قرى ظاهرة وقدرنا فيها السير سيروا فيها ليالي وأياما آمنين |
| | | और हम अहले सबा और (शाम) की उन बस्तियों के दरमियान जिनमें हमने बरकत अता की थी और चन्द बस्तियाँ (सरे राह) आबाद की थी जो बाहम नुमाया थीं और हमने उनमें आमद व रफ्त की राह मुक़र्रर की थी कि उनमें रातों को दिनों को (जब जी चाहे) बेखटके चलो फिरो |
|
3625 | 34 | 19 | فقالوا ربنا باعد بين أسفارنا وظلموا أنفسهم فجعلناهم أحاديث ومزقناهم كل ممزق إن في ذلك لآيات لكل صبار شكور |
| | | तो वह लोग ख़ुद कहने लगे परवरदिगार (क़रीब के सफर में लुत्फ नहीं) तो हमारे सफ़रों में दूरी पैदा कर दे और उन लोगों ने खुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया तो हमने भी उनको (तबाह करके उनके) अफसाने बना दिए - और उनकी धज्जियाँ उड़ा के उनको तितिर बितिर कर दिया बेशक उनमें हर सब्र व शुक्र करने वालोंके वास्ते बड़ी इबरते हैं |
|