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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
312 | 3 | 19 | إن الدين عند الله الإسلام وما اختلف الذين أوتوا الكتاب إلا من بعد ما جاءهم العلم بغيا بينهم ومن يكفر بآيات الله فإن الله سريع الحساب |
| | | दीन (धर्म) तो अल्लाह की स्पष्ट में इस्लाम ही है। जिन्हें किताब दी गई थी, उन्होंने तो इसमें इसके पश्चात विभेद किया कि ज्ञान उनके पास आ चुका था। ऐसा उन्होंने परस्पर दुराग्रह के कारण किया। जो अल्लाह की आयतों का इनकार करेगा तो अल्लाह भी जल्द हिसाब लेनेवाला है |
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313 | 3 | 20 | فإن حاجوك فقل أسلمت وجهي لله ومن اتبعن وقل للذين أوتوا الكتاب والأميين أأسلمتم فإن أسلموا فقد اهتدوا وإن تولوا فإنما عليك البلاغ والله بصير بالعباد |
| | | अब यदि वे तुमसे झगड़े तो कह दो, "मैंने और मेरे अनुयायियों ने तो अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया हैं।" और जिन्हें किताब मिली थी और जिनके पास किताब नहीं है, उनसे कहो, "क्या तुम भी इस्लाम को अपनाते हो?" यदि वे इस्लाम को अंगीकार कर लें तो सीधा मार्ग पर गए। और यदि मुँह मोड़े तो तुमपर केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। और अल्लाह स्वयं बन्दों को देख रहा है |
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314 | 3 | 21 | إن الذين يكفرون بآيات الله ويقتلون النبيين بغير حق ويقتلون الذين يأمرون بالقسط من الناس فبشرهم بعذاب أليم |
| | | जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करें और नबियों को नाहक क़त्ल करे और उन लोगों का क़ल्त करें जो न्याय के पालन करने को कहें, उनको दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो |
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315 | 3 | 22 | أولئك الذين حبطت أعمالهم في الدنيا والآخرة وما لهم من ناصرين |
| | | यही लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में अकारथ गए और उनका सहायक कोई भी नहीं |
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316 | 3 | 23 | ألم تر إلى الذين أوتوا نصيبا من الكتاب يدعون إلى كتاب الله ليحكم بينهم ثم يتولى فريق منهم وهم معرضون |
| | | क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें ईश-ग्रंथ का एक हिस्सा प्रदान हुआ। उन्हें अल्लाह की किताब की ओर बुलाया जाता है कि वह उनके बीच निर्णय करे, फिर भी उनका एक गिरोह (उसकी) उपेक्षा करते हुए मुँह फेर लेता है? |
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317 | 3 | 24 | ذلك بأنهم قالوا لن تمسنا النار إلا أياما معدودات وغرهم في دينهم ما كانوا يفترون |
| | | यह इसलिए कि वे कहते, "आग हमें नहीं छू सकती। हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों (के कष्टों) की बात और है।" उनकी मनघड़ंत बातों ने, जो वे घड़ते रहे हैं, उन्हें धोखे में डाल रखा है |
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318 | 3 | 25 | فكيف إذا جمعناهم ليوم لا ريب فيه ووفيت كل نفس ما كسبت وهم لا يظلمون |
| | | फिर क्या हाल होगा, जब हम उन्हें उस दिन इकट्ठा करेंगे, जिसके आने में कोई संदेह नहीं और प्रत्येक व्यक्ति को, जो कुछ उसने कमाया होगा, पूरा-पूरा मिल जाएगा; और उनके साथ अन्याय न होगा |
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319 | 3 | 26 | قل اللهم مالك الملك تؤتي الملك من تشاء وتنزع الملك ممن تشاء وتعز من تشاء وتذل من تشاء بيدك الخير إنك على كل شيء قدير |
| | | कहो, "ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त (प्रभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है |
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320 | 3 | 27 | تولج الليل في النهار وتولج النهار في الليل وتخرج الحي من الميت وتخرج الميت من الحي وترزق من تشاء بغير حساب |
| | | "तू रात को दिन में पिरोता है और दिन को रात में पिरोता है। तू निर्जीव से सजीव को निकालता है और सजीव से निर्जीव को निकालता है, बेहिसाब देता है।" |
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321 | 3 | 28 | لا يتخذ المؤمنون الكافرين أولياء من دون المؤمنين ومن يفعل ذلك فليس من الله في شيء إلا أن تتقوا منهم تقاة ويحذركم الله نفسه وإلى الله المصير |
| | | ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है |
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