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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1405 | 10 | 41 | وإن كذبوك فقل لي عملي ولكم عملكم أنتم بريئون مما أعمل وأنا بريء مما تعملون |
| | | और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार फसादियों को खूब जानता है और अगर वह तुम्हे झुठलाए तो तुम कह दो कि हमारे लिए हमारी कार गुजारी है और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारस्तानी जो कुछ मै करता हूँ उसके तुम ज़िम्मेदार नहीं और जो कुछ तुम करते हो उससे मै बरी हूँ |
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1406 | 10 | 42 | ومنهم من يستمعون إليك أفأنت تسمع الصم ولو كانوا لا يعقلون |
| | | और उनमें से बाज़ ऐसे हैं कि तुम्हारी ज़बानों की तरफ कान लगाए रहते हैं तो (क्या) वह तुम्हारी सुन लेगें हरगिज़ नहीं अगरचे वह कुछ समझ भी न सकते हो |
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1407 | 10 | 43 | ومنهم من ينظر إليك أفأنت تهدي العمي ولو كانوا لا يبصرون |
| | | तुम कही बहरों को कुछ सुना सकते हो और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो तुम्हारी तरफ (टकटकी बाँधे) देखते हैं तो (क्या वह ईमान लाएँगें हरगिज़ नहीं) अगरचे उन्हें कुछ न सूझता हो तो तुम अन्धे को राहे रास्त दिखा दोगे |
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1408 | 10 | 44 | إن الله لا يظلم الناس شيئا ولكن الناس أنفسهم يظلمون |
| | | ख़ुदा तो हरगिज़ लोगों पर कुछ भी ज़ुल्म नहीं करता मगर लोग खुद अपने ऊपर (अपनी करतूत से) जुल्म किया करते है |
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1409 | 10 | 45 | ويوم يحشرهم كأن لم يلبثوا إلا ساعة من النهار يتعارفون بينهم قد خسر الذين كذبوا بلقاء الله وما كانوا مهتدين |
| | | और जिस दिन ख़ुदा इन लोगों को (अपनी बारगाह में) जमा करेगा तो गोया ये लोग (समझेगें कि दुनिया में) बस घड़ी दिन भर ठहरे और आपस में एक दूसरे को पहचानेंगे जिन लोगों ने ख़ुदा की बारगाह में हाज़िर होने को झुठलाया वह ज़रुर घाटे में हैं और हिदायत याफता न थे |
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1410 | 10 | 46 | وإما نرينك بعض الذي نعدهم أو نتوفينك فإلينا مرجعهم ثم الله شهيد على ما يفعلون |
| | | ऐ रसूल हम जिस जिस (अज़ाब) का उनसे वायदा कर चुके हैं उनमें से बाज़ ख्वाहा तुम्हें दिखा दें या तुमको (पहले ही दुनिया से) उठा ले फिर (आख़िर) तो उन सबको हमारी तरफ लौटना ही है फिर जो कुछ ये लोग कर रहे हैं ख़ुदा तो उस पर गवाह ही है |
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1411 | 10 | 47 | ولكل أمة رسول فإذا جاء رسولهم قضي بينهم بالقسط وهم لا يظلمون |
| | | और हर उम्मत का ख़ास (एक) एक रसूल हुआ है फिर जब उनका रसूल (हमारी बारगाह में) आएगा तो उनके दरमियान इन्साफ़ के साथ फैसला कर दिया जाएगा और उन पर ज़र्रा बराबर ज़ुल्म न किया जाएगा |
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1412 | 10 | 48 | ويقولون متى هذا الوعد إن كنتم صادقين |
| | | ये लोग कहा करते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये (अज़ाब का वायदा) कब पूरा होगा |
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1413 | 10 | 49 | قل لا أملك لنفسي ضرا ولا نفعا إلا ما شاء الله لكل أمة أجل إذا جاء أجلهم فلا يستأخرون ساعة ولا يستقدمون |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै खुद अपने वास्ते नुकसान पर क़ादिर हूँ न नफा पर मगर जो ख़ुदा चाहे हर उम्मत (के रहने) का (उसके इल्म में) एक वक्त मुक़र्रर है-जब उन का वक्त आ जाता है तो न एक घड़ी पीछे हट सकती हैं और न आगे बढ़ सकते हैं |
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1414 | 10 | 50 | قل أرأيتم إن أتاكم عذابه بياتا أو نهارا ماذا يستعجل منه المجرمون |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम समझते हो कि अगर उसका अज़ाब तुम पर रात को या दिन को आ जाए तो (तुम क्या करोगे) फिर गुनाहगार लोग आख़िर काहे की जल्दी मचा रहे हैं |
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