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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
5539 | 74 | 44 | ولم نك نطعم المسكين |
| | | और न मोहताजों को खाना खिलाते थे |
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5540 | 74 | 45 | وكنا نخوض مع الخائضين |
| | | और अहले बातिल के साथ हम भी बड़े काम में घुस पड़ते थे |
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5541 | 74 | 46 | وكنا نكذب بيوم الدين |
| | | और रोज़ जज़ा को झुठलाया करते थे (और यूँ ही रहे) |
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5542 | 74 | 47 | حتى أتانا اليقين |
| | | यहाँ तक कि हमें मौत आ गयी |
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5543 | 74 | 48 | فما تنفعهم شفاعة الشافعين |
| | | तो (उस वक्त) उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश कुछ काम न आएगी |
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5544 | 74 | 49 | فما لهم عن التذكرة معرضين |
| | | और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुँह मोड़े हुए हैं |
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5545 | 74 | 50 | كأنهم حمر مستنفرة |
| | | गोया वह वहशी गधे हैं |
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5546 | 74 | 51 | فرت من قسورة |
| | | कि येर से (दुम दबा कर) भागते हैं |
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5547 | 74 | 52 | بل يريد كل امرئ منهم أن يؤتى صحفا منشرة |
| | | असल ये है कि उनमें से हर शख़्श इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुई (आसमानी) किताबें अता की जाएँ |
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5548 | 74 | 53 | كلا بل لا يخافون الآخرة |
| | | ये तो हरगिज़ न होगा बल्कि ये तो आख़ेरत ही से नहीं डरते |
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