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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
974 | 7 | 20 | فوسوس لهما الشيطان ليبدي لهما ما ووري عنهما من سوآتهما وقال ما نهاكما ربكما عن هذه الشجرة إلا أن تكونا ملكين أو تكونا من الخالدين |
| | | फिर शैतान ने दोनों को बहकाया, ताकि उनकी शर्मगाहों को, जो उन दोनों से छिपी थीं, उन दोनों के सामने खोल दे। और उसने (इबलीस ने) कहा, "तुम्हारे रब ने तुम दोनों को जो इस वृक्ष से रोका है, तो केवल इसलिए कि ऐसा न हो कि तुम कहीं फ़रिश्ते हो जाओ या कही ऐसा न हो कि तुम्हें अमरता प्राप्त हो जाए।" |
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975 | 7 | 21 | وقاسمهما إني لكما لمن الناصحين |
| | | और उसने उन दोनों के आगे क़समें खाई कि "निश्चय ही मैं तुम दोनों का हितैषी हूँ।" |
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976 | 7 | 22 | فدلاهما بغرور فلما ذاقا الشجرة بدت لهما سوآتهما وطفقا يخصفان عليهما من ورق الجنة وناداهما ربهما ألم أنهكما عن تلكما الشجرة وأقل لكما إن الشيطان لكما عدو مبين |
| | | इस प्रकार धोखा देकर उसने उन दोनों को झुका लिया। अन्ततः जब उन्होंने उस वृक्ष का स्वाद लिया, तो उनकी शर्मगाहे एक-दूसरे के सामने खुल गए और वे अपने ऊपर बाग़ के पत्ते जोड़-जोड़कर रखने लगे। तब उनके रब ने उन्हें पुकारा, "क्या मैंने तुम दोनों को इस वृक्ष से रोका नहीं था और तुमसे कहा नहीं था कि शैतान तुम्हारा खुला शत्रु है?" |
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977 | 7 | 23 | قالا ربنا ظلمنا أنفسنا وإن لم تغفر لنا وترحمنا لنكونن من الخاسرين |
| | | दोनों बोले, "हमारे रब! हमने अपने आप पर अत्याचार किया। अब यदि तूने हमें क्षमा न किया और हम पर दया न दर्शाई, फिर तो हम घाटा उठानेवालों में से होंगे।" |
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978 | 7 | 24 | قال اهبطوا بعضكم لبعض عدو ولكم في الأرض مستقر ومتاع إلى حين |
| | | कहा, "उतर जाओ! तुम परस्पर एक-दूसरे के शत्रु हो और एक अवधि कर तुम्हारे लिए धरती में ठिकाना और जीवन-सामग्री है।" |
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979 | 7 | 25 | قال فيها تحيون وفيها تموتون ومنها تخرجون |
| | | कहा, "वहीं तुम्हें जीना और वहीं तुम्हें मरना है और उसी में से तुमको निकाला जाएगा।" |
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980 | 7 | 26 | يا بني آدم قد أنزلنا عليكم لباسا يواري سوآتكم وريشا ولباس التقوى ذلك خير ذلك من آيات الله لعلهم يذكرون |
| | | ऐ आदम की सन्तान! हमने तुम्हारे लिए वस्त्र उतारा है कि तुम्हारी शर्मगाहों को छुपाए और रक्षा और शोभा का साधन हो। और धर्मपरायणता का वस्त्र - वह तो सबसे उत्तम है, यह अल्लाह की निशानियों में से है, ताकि वे ध्यान दें |
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981 | 7 | 27 | يا بني آدم لا يفتننكم الشيطان كما أخرج أبويكم من الجنة ينزع عنهما لباسهما ليريهما سوآتهما إنه يراكم هو وقبيله من حيث لا ترونهم إنا جعلنا الشياطين أولياء للذين لا يؤمنون |
| | | ऐ आदम की सन्तान! कहीं शैतान तुम्हें बहकावे में न डाल दे, जिस प्रकार उसने तुम्हारे माँ-बाप को जन्नत से निकलवा दिया था; उनके वस्त्र उनपर से उतरवा दिए थे, ताकि उनकी शर्मगाहें एक-दूसरे के सामने खोल दे। निस्सदेह वह और उसका गिरोह उस स्थान से तुम्हें देखता है, जहाँ से तुम उन्हें नहीं देखते। हमने तो शैतानों को उन लोगों का मित्र बना दिया है, जो ईमान नहीं रखते |
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982 | 7 | 28 | وإذا فعلوا فاحشة قالوا وجدنا عليها آباءنا والله أمرنا بها قل إن الله لا يأمر بالفحشاء أتقولون على الله ما لا تعلمون |
| | | और उनका हाल यह है कि जब वे लोग कोई अश्लील कर्म करते है तो कहते है कि "हमने अपने बाप-दादा को इसी तरीक़े पर पाया है और अल्लाह ही ने हमें इसका आदेश दिया है।" कह दो, "अल्लाह कभी अश्लील बातों का आदेश नहीं दिया करता। क्या अल्लाह पर थोपकर ऐसी बात कहते हो, जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं?" |
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983 | 7 | 29 | قل أمر ربي بالقسط وأقيموا وجوهكم عند كل مسجد وادعوه مخلصين له الدين كما بدأكم تعودون |
| | | कह दो, "मेरे रब ने तो न्याय का आदेश दिया है और यह कि इबादत के प्रत्येक अवसर पर अपना रुख़ ठीक रखो और निरे उसी के भक्त एवं आज्ञाकारी बनकर उसे पुकारो। जैसे उसने तुम्हें पहली बार पैदा किया, वैसे ही तुम फिर पैदा होगे।" |
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