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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
96 | 2 | 89 | ولما جاءهم كتاب من عند الله مصدق لما معهم وكانوا من قبل يستفتحون على الذين كفروا فلما جاءهم ما عرفوا كفروا به فلعنة الله على الكافرين |
| | | और जब उनके पास खुदा की तरफ़ से किताब (कुरान आई और वह उस किताब तौरेत) की जो उन के पास तसदीक़ भी करती है। और उससे पहले (इसकी उम्मीद पर) काफ़िरों पर फतेहयाब होने की दुआएँ माँगते थे पस जब उनके पास वह चीज़ जिसे पहचानते थे आ गई तो लगे इन्कार करने पस काफ़िरों पर खुदा की लानत है |
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97 | 2 | 90 | بئسما اشتروا به أنفسهم أن يكفروا بما أنزل الله بغيا أن ينزل الله من فضله على من يشاء من عباده فباءوا بغضب على غضب وللكافرين عذاب مهين |
| | | क्या ही बुरा है वह काम जिसके मुक़ाबले में (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जानें बेच बैठे हैं कि खुदा अपने बन्दों से जिस पर चाहे अपनी इनायत से किताब नाज़िल किया करे इस रश्क से जो कुछ खुदा ने नाज़िल किया है सबका इन्कार कर बैठे पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टूट पड़ा और काफ़िरों के लिए (बड़ी) रूसवाई का अज़ाब है |
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98 | 2 | 91 | وإذا قيل لهم آمنوا بما أنزل الله قالوا نؤمن بما أنزل علينا ويكفرون بما وراءه وهو الحق مصدقا لما معهم قل فلم تقتلون أنبياء الله من قبل إن كنتم مؤمنين |
| | | और जब उनसे कहा गया कि (जो क़ुरान) खुदा ने नाज़िल किया है उस पर ईमान लाओ तो कहने लगे कि हम तो उसी किताब (तौरेत) पर ईमान लाए हैं जो हम पर नाज़िल की गई थी और उस किताब (कुरान) को जो उसके बाद आई है नहीं मानते हैं हालाँकि वह (क़ुरान) हक़ है और उस किताब (तौरेत) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करती है मगर उस किताब कुरान का जो उसके बाद आई है इन्कार करते हैं (ऐ रसूल) उनसे ये तो पूछो कि तुम (तुम्हारे बुर्जुग़) अगर ईमानदार थे तो फिर क्यों खुदा के पैग़म्बरों का साबिक़ क़त्ल करते थे |
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99 | 2 | 92 | ولقد جاءكم موسى بالبينات ثم اتخذتم العجل من بعده وأنتم ظالمون |
| | | और तुम्हारे पास मूसा तो वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ ही चुके थे फिर भी तुमने उनके बाद बछड़े को खुदा बना ही लिया और उससे तुम अपने ही ऊपर ज़ुल्म करने वाले थे |
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100 | 2 | 93 | وإذ أخذنا ميثاقكم ورفعنا فوقكم الطور خذوا ما آتيناكم بقوة واسمعوا قالوا سمعنا وعصينا وأشربوا في قلوبهم العجل بكفرهم قل بئسما يأمركم به إيمانكم إن كنتم مؤمنين |
| | | और (वह वक्त याद करो) जब हमने तुमसे अहद लिया और (क़ोहे) तूर को (तुम्हारी उदूले हुक्मी से) तुम्हारे सर पर लटकाया और (हमने कहा कि ये किताब तौरेत) जो हमने दी है मज़बूती से लिए रहो और (जो कुछ उसमें है) सुनो तो कहने लगे सुना तो (सही लेकिन) हम इसको मानते नहीं और उनकी बेईमानी की वजह से (गोया) बछड़े की उलफ़त घोल के उनके दिलों में पिला दी गई (ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि अगर तुम ईमानदार थे तो तुमको तुम्हारा ईमान क्या ही बुरा हुक्म करता था |
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101 | 2 | 94 | قل إن كانت لكم الدار الآخرة عند الله خالصة من دون الناس فتمنوا الموت إن كنتم صادقين |
| | | (ऐ रसूल) इन लोगों से कह दो कि अगर खुदा के नज़दीक आख़ेरत का घर (बेहिश्त) ख़ास तुम्हारे वास्ते है और लोगों के वासते नहीं है पस अगर तुम सच्चे हो तो मौत की आरजू क़रो |
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102 | 2 | 95 | ولن يتمنوه أبدا بما قدمت أيديهم والله عليم بالظالمين |
| | | (ताकि जल्दी बेहिश्त में जाओ) लेकिन वह उन आमाले बद की वजह से जिनको उनके हाथों ने पहले से आगे भेजा है हरगिज़ मौत की आरज़ू न करेंगे और खुदा ज़ालिमों से खूब वाक़िफ है |
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103 | 2 | 96 | ولتجدنهم أحرص الناس على حياة ومن الذين أشركوا يود أحدهم لو يعمر ألف سنة وما هو بمزحزحه من العذاب أن يعمر والله بصير بما يعملون |
| | | और (ऐ रसूल) तुम उन ही को ज़िन्दगी का सबसे ज्यादा हरीस पाओगे और मुशरिक़ों में से हर एक शख्स चाहता है कि काश उसको हज़ार बरस की उम्र दी जाती हालाँकि अगर इतनी तूलानी उम्र भी दी जाए तो वह ख़ुदा के अज़ाब से छुटकारा देने वाली नहीं, और जो कुछ वह लोग करते हैं खुदा उसे देख रहा है |
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104 | 2 | 97 | قل من كان عدوا لجبريل فإنه نزله على قلبك بإذن الله مصدقا لما بين يديه وهدى وبشرى للمؤمنين |
| | | (ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि जो जिबरील का दुशमन है (उसका खुदा दुशमन है) क्योंकि उस फ़रिश्ते ने खुदा के हुक्म से (इस कुरान को) तुम्हारे दिल पर डाला है और वह उन किताबों की भी तसदीक करता है जो (पहले नाज़िल हो चुकी हैं और सब) उसके सामने मौजूद हैं और ईमानदारों के वास्ते खुशख़बरी है |
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105 | 2 | 98 | من كان عدوا لله وملائكته ورسله وجبريل وميكال فإن الله عدو للكافرين |
| | | जो शख्स ख़ुदा और उसके फरिश्तों और उसके रसूलों और (ख़ासकर) जिबराईल व मीकाइल का दुशमन हो तो बेशक खुदा भी (ऐसे) काफ़िरों का दुश्मन है |
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