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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
77 | 2 | 70 | قالوا ادع لنا ربك يبين لنا ما هي إن البقر تشابه علينا وإنا إن شاء الله لمهتدون |
| | | बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कौन-सी है, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य। पता लगा लेंगे।" |
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78 | 2 | 71 | قال إنه يقول إنها بقرة لا ذلول تثير الأرض ولا تسقي الحرث مسلمة لا شية فيها قالوا الآن جئت بالحق فذبحوها وما كادوا يفعلون |
| | | उसने कहा, " वह कहता हैं कि वह ऐसा गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।" बोले, "अब तुमने ठीक बात बताई है।" फिर उन्होंने उसे ज़ब्ह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते थे |
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79 | 2 | 72 | وإذ قتلتم نفسا فادارأتم فيها والله مخرج ما كنتم تكتمون |
| | | और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया - जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था |
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80 | 2 | 73 | فقلنا اضربوه ببعضها كذلك يحيي الله الموتى ويريكم آياته لعلكم تعقلون |
| | | तो हमने कहा, "उसे उसके एक हिस्से से मारो।" इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो |
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81 | 2 | 74 | ثم قست قلوبكم من بعد ذلك فهي كالحجارة أو أشد قسوة وإن من الحجارة لما يتفجر منه الأنهار وإن منها لما يشقق فيخرج منه الماء وإن منها لما يهبط من خشية الله وما الله بغافل عما تعملون |
| | | फिर इसके पश्चात भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए बल्कि उनसे भी अधिक कठोर; क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते है जिनसे नहरें फूट निकलती है, और कुछ ऐसे भी होते है कि फट जाते है तो उनमें से पानी निकलने लगता है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है जो अल्लाह के भय से गिर जाते है। और अल्लाह, जो कुछ तुम कर रहे हो, उससे बेखबर नहीं है |
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82 | 2 | 75 | أفتطمعون أن يؤمنوا لكم وقد كان فريق منهم يسمعون كلام الله ثم يحرفونه من بعد ما عقلوه وهم يعلمون |
| | | तो क्या तुम इस लालच में हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे हैं, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे? |
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83 | 2 | 76 | وإذا لقوا الذين آمنوا قالوا آمنا وإذا خلا بعضهم إلى بعض قالوا أتحدثونهم بما فتح الله عليكم ليحاجوكم به عند ربكم أفلا تعقلون |
| | | और जब वे ईमान लानेवाले से मिलते है तो कहते हैं, "हम भी ईमान रखते हैं", और जब आपस में एक-दूसरे से एकान्त में मिलते है तो कहते है, "क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोली, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुक़ाबिला करें? तो क्या तुम समझते नहीं!" |
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84 | 2 | 77 | أولا يعلمون أن الله يعلم ما يسرون وما يعلنون |
| | | क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है, जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं? |
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85 | 2 | 78 | ومنهم أميون لا يعلمون الكتاب إلا أماني وإن هم إلا يظنون |
| | | और उनमें सामान्य बेपढ़े भी हैं जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते हैं, और वे तो बस अटकल से काम लेते हैं |
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86 | 2 | 79 | فويل للذين يكتبون الكتاب بأيديهم ثم يقولون هذا من عند الله ليشتروا به ثمنا قليلا فويل لهم مما كتبت أيديهم وويل لهم مما يكسبون |
| | | तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिए जो अपने हाथों से किताब लिखते हैं फिर कहते हैं, "यह अल्लाह की ओर से है", ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर लें। तो तबाही है उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे हैं |
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