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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
729 | 5 | 60 | قل هل أنبئكم بشر من ذلك مثوبة عند الله من لعنه الله وغضب عليه وجعل منهم القردة والخنازير وعبد الطاغوت أولئك شر مكانا وأضل عن سواء السبيل |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुम्हें ख़ुदा के नज़दीक सज़ा में इससे कहीं बदतर ऐब बता दूं (अच्छा लो सुनो) जिसपर ख़ुदा ने लानत की हो और उस पर ग़ज़ब ढाया हो और उनमें से किसी को (मसख़ करके) बन्दर और (किसी को) सूअर बना दिया हो और (ख़ुदा को छोड़कर) शैतान की परस्तिश की हो पस ये लोग दरजे में कहीं बदतर और राहे रास्त से भटक के सबसे ज्यादा दूर जा पहुंचे हैं |
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730 | 5 | 61 | وإذا جاءوكم قالوا آمنا وقد دخلوا بالكفر وهم قد خرجوا به والله أعلم بما كانوا يكتمون |
| | | और (मुसलमानों) जब ये लोग तुम्हारे पास आ जाते हैं तो कहते हैं कि हम तो ईमान लाए हैं हालॉकि वह कुफ़्र ही को साथ लेकर आए और फिर निकले भी तो साथ लिए हुए और जो नेफ़ाक़ वह छुपाए हुए थे ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है |
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731 | 5 | 62 | وترى كثيرا منهم يسارعون في الإثم والعدوان وأكلهم السحت لبئس ما كانوا يعملون |
| | | (ऐ रसूल) तुम उनमें से बहुतेरों को देखोगे कि गुनाह और सरकशी और हरामख़ोरी की तरफ़ दौड़ पड़ते हैं जो काम ये लोग करते थे वह यक़ीनन बहुत बुरा है |
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732 | 5 | 63 | لولا ينهاهم الربانيون والأحبار عن قولهم الإثم وأكلهم السحت لبئس ما كانوا يصنعون |
| | | उनको अल्लाह वाले और उलेमा झूठ बोलने और हरामख़ोरी से क्यों नहीं रोकते जो (दरगुज़र) ये लोग करते हैं यक़ीनन बहुत ही बुरी है |
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733 | 5 | 64 | وقالت اليهود يد الله مغلولة غلت أيديهم ولعنوا بما قالوا بل يداه مبسوطتان ينفق كيف يشاء وليزيدن كثيرا منهم ما أنزل إليك من ربك طغيانا وكفرا وألقينا بينهم العداوة والبغضاء إلى يوم القيامة كلما أوقدوا نارا للحرب أطفأها الله ويسعون في الأرض فسادا والله لا يحب المفسدين |
| | | और यहूदी कहने लगे कि ख़ुदा का हाथ बॅधा हुआ है (बख़ील हो गया) उन्हीं के हाथ बॉध दिए जाएं और उनके (इस) कहने पर (ख़ुदा की) फिटकार बरसे (ख़ुदा का हाथ बॅधने क्यों लगा) बल्कि उसके दोनों हाथ कुशादा हैं जिस तरह चाहता है ख़र्च करता है और जो (किताब) तुम्हारे पास नाज़िल की गयी है (उनका शक व हसद) उनमें से बहुतेरों को कुफ़्र व सरकशी को और बढ़ा देगा और (गोया) हमने ख़ुद उनके आपस में रोज़े क़यामत तक अदावत और कीने की बुनियाद डाल दी जब ये लोग लड़ाई की आग भड़काते हैं तो ख़ुदा उसको बुझा देता है और रूए ज़मीन में फ़साद फेलाने के लिए दौड़ते फिरते हैं और ख़ुदा फ़सादियों को दोस्त नहीं रखता |
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734 | 5 | 65 | ولو أن أهل الكتاب آمنوا واتقوا لكفرنا عنهم سيئاتهم ولأدخلناهم جنات النعيم |
| | | और अगर अहले किताब ईमान लाते और (हमसे) डरते तो हम ज़रूर उनके गुनाहों से दरगुज़र करते और उनको नेअमत व आराम (बेहिशत के बाग़ों में) पहुंचा देते |
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735 | 5 | 66 | ولو أنهم أقاموا التوراة والإنجيل وما أنزل إليهم من ربهم لأكلوا من فوقهم ومن تحت أرجلهم منهم أمة مقتصدة وكثير منهم ساء ما يعملون |
| | | और अगर यह लोग तौरैत और इन्जील और (सहीफ़े) उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किये गए थे (उनके एहकाम को) क़ायम रखते तो ज़रूर (उनके) ऊपर से भी (रिज़क़ बरस पड़ता) और पॉवों के नीचे से भी उबल आता और (ये ख़ूब चैन से) खाते उनमें से कुछ लोग तो एतदाल पर हैं (मगर) उनमें से बहुतेरे जो कुछ करते हैं बुरा ही करते हैं |
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736 | 5 | 67 | يا أيها الرسول بلغ ما أنزل إليك من ربك وإن لم تفعل فما بلغت رسالته والله يعصمك من الناس إن الله لا يهدي القوم الكافرين |
| | | ऐ रसूल जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है पहुंचा दो और अगर तुमने ऐसा न किया तो (समझ लो कि) तुमने उसका कोई पैग़ाम ही नहीं पहुंचाया और (तुम डरो नहीं) ख़ुदा तुमको लोगों के श्शर से महफ़ूज़ रखेगा ख़ुदा हरगिज़ काफ़िरों की क़ौम को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाता |
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737 | 5 | 68 | قل يا أهل الكتاب لستم على شيء حتى تقيموا التوراة والإنجيل وما أنزل إليكم من ربكم وليزيدن كثيرا منهم ما أنزل إليك من ربك طغيانا وكفرا فلا تأس على القوم الكافرين |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब जब तक तुम तौरेत और इन्जील और जो (सहीफ़े) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल हुए हैं उनके (एहकाम) को क़ायम न रखोगे उस वक्त तक तुम्हारा मज़बह कुछ भी नहीं और (ऐ रसूल) जो (किताब) तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से भेजी गयी है (उसका) रश्क (हसद) उनमें से बहुतेरों की सरकशी व कुफ़्र को और बढ़ा देगा तुम काफ़िरों के गिरोह पर अफ़सोस न करना |
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738 | 5 | 69 | إن الذين آمنوا والذين هادوا والصابئون والنصارى من آمن بالله واليوم الآخر وعمل صالحا فلا خوف عليهم ولا هم يحزنون |
| | | इसमें तो शक ही नहीं कि मुसलमान हो या यहूदी हकीमाना ख्याल के पाबन्द हों ख्वाह नसरानी (गरज़ कुछ भी हो) जो ख़ुदा और रोज़े क़यामत पर ईमान लाएगा और अच्छे (अच्छे) काम करेगा उन पर अलबत्ता न तो कोई ख़ौफ़ होगा न वह लोग आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे |
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