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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
711 | 5 | 42 | سماعون للكذب أكالون للسحت فإن جاءوك فاحكم بينهم أو أعرض عنهم وإن تعرض عنهم فلن يضروك شيئا وإن حكمت فاحكم بينهم بالقسط إن الله يحب المقسطين |
| | | ये (कम्बख्त) झूठी बातों को बड़े शौक़ से सुनने वाले और बड़े ही हरामख़ोर हैं तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग तुम्हारे पास (कोई मामला लेकर) आए तो तुमको इख्तेयार है ख्वाह उनके दरमियान फैसला कर दो या उनसे किनाराकशी करो और अगर तुम किनाराकश रहोगे तो (कुछ ख्याल न करो) ये लोग तुम्हारा हरगिज़ कुछ बिगाड़ नहीं सकते और अगर उनमें फैसला करो तो इन्साफ़ से फैसला करो क्योंकि ख़ुदा इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है |
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712 | 5 | 43 | وكيف يحكمونك وعندهم التوراة فيها حكم الله ثم يتولون من بعد ذلك وما أولئك بالمؤمنين |
| | | और जब ख़ुद उनके पास तौरेत है और उसमें ख़ुदा का हुक्म (मौजूद) है तो फिर तुम्हारे पास फैसला कराने को क्यों आते हैं और (लुत्फ़ तो ये है कि) इसके बाद फिर (तुम्हारे हुक्म से) फिर जाते हैं ओर सच तो यह है कि यह लोग ईमानदार ही नहीं हैं |
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713 | 5 | 44 | إنا أنزلنا التوراة فيها هدى ونور يحكم بها النبيون الذين أسلموا للذين هادوا والربانيون والأحبار بما استحفظوا من كتاب الله وكانوا عليه شهداء فلا تخشوا الناس واخشون ولا تشتروا بآياتي ثمنا قليلا ومن لم يحكم بما أنزل الله فأولئك هم الكافرون |
| | | बेशक हम ने तौरेत नाज़िल की जिसमें (लोगों की) हिदायत और नूर (ईमान) है उसी के मुताबिक़ ख़ुदा के फ़रमाबरदार बन्दे (अम्बियाए बनी इसराईल) यहूदियों को हुक्म देते रहे और अल्लाह वाले और उलेमाए (यहूद) भी किताबे ख़ुदा से (हुक्म देते थे) जिसके वह मुहाफ़िज़ बनाए गए थे और वह उसके गवाह भी थे पस (ऐ मुसलमानों) तुम लोगों से (ज़रा भी) न डरो (बल्कि) मुझ ही से डरो और मेरी आयतों के बदले में (दुनिया की दौलत जो दर हक़ीक़त बहुत थोड़ी क़ीमत है) न लो और (समझ लो कि) जो शख्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब) के मुताबिक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग काफ़िर हैं |
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714 | 5 | 45 | وكتبنا عليهم فيها أن النفس بالنفس والعين بالعين والأنف بالأنف والأذن بالأذن والسن بالسن والجروح قصاص فمن تصدق به فهو كفارة له ومن لم يحكم بما أنزل الله فأولئك هم الظالمون |
| | | और हम ने तौरेत में यहूदियों पर यह हुक्म फर्ज क़र दिया था कि जान के बदले जान और ऑख के बदले ऑख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दॉत के बदले दॉत और जख्म के बदले (वैसा ही) बराबर का बदला (जख्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़ता माफ़ कर दे तो ये उसके गुनाहों का कफ्फ़ारा हो जाएगा और जो शख्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब) के मुवाफ़िक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं |
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715 | 5 | 46 | وقفينا على آثارهم بعيسى ابن مريم مصدقا لما بين يديه من التوراة وآتيناه الإنجيل فيه هدى ونور ومصدقا لما بين يديه من التوراة وهدى وموعظة للمتقين |
| | | और हम ने उन्हीं पैग़म्बरों के क़दम ब क़दम मरियम के बेटे ईसा को चलाया और वह इस किताब तौरैत की भी तस्दीक़ करते थे जो उनके सामने (पहले से) मौजूद थी और हमने उनको इन्जील (भी) अता की जिसमें (लोगों के लिए हर तरह की) हिदायत थी और नूर (ईमान) और वह इस किताब तौरेत की जो वक्ते नुज़ूले इन्जील (पहले से) मौजूद थी तसदीक़ करने वाली और परहेज़गारों की हिदायत व नसीहत थी |
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716 | 5 | 47 | وليحكم أهل الإنجيل بما أنزل الله فيه ومن لم يحكم بما أنزل الله فأولئك هم الفاسقون |
| | | और इन्जील वालों (नसारा) को जो कुछ ख़ुदा ने (उसमें) नाज़िल किया है उसके मुताबिक़ हुक्म करना चाहिए और जो शख्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब के मुआफ़िक) हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं |
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717 | 5 | 48 | وأنزلنا إليك الكتاب بالحق مصدقا لما بين يديه من الكتاب ومهيمنا عليه فاحكم بينهم بما أنزل الله ولا تتبع أهواءهم عما جاءك من الحق لكل جعلنا منكم شرعة ومنهاجا ولو شاء الله لجعلكم أمة واحدة ولكن ليبلوكم في ما آتاكم فاستبقوا الخيرات إلى الله مرجعكم جميعا فينبئكم بما كنتم فيه تختلفون |
| | | और (ऐ रसूल) हमने तुम पर भी बरहक़ किताब नाज़िल की जो किताब (उसके पहले से) उसके वक्त में मौजूद है उसकी तसदीक़ करती है और उसकी निगेहबान (भी) है जो कुछ तुम पर ख़ुदा ने नाज़िल किया है उसी के मुताबिक़ तुम भी हुक्म दो और जो हक़ बात ख़ुदा की तरफ़ से आ चुकी है उससे कतरा के उन लोगों की ख्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो और हमने तुम में हर एक के वास्ते (हस्बे मसलेहते वक्त) एक एक शरीयत और ख़ास तरीक़े पर मुक़र्रर कर दिया और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सब के सब को एक ही (शरीयत की) उम्मत बना देता मगर (मुख़तलिफ़ शरीयतों से) ख़ुदा का मतलब यह था कि जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें तुम्हारा इमतेहान करे बस तुम नेकी में लपक कर आगे बढ़ जाओ और (यक़ीन जानो कि) तुम सब को ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है |
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718 | 5 | 49 | وأن احكم بينهم بما أنزل الله ولا تتبع أهواءهم واحذرهم أن يفتنوك عن بعض ما أنزل الله إليك فإن تولوا فاعلم أنما يريد الله أن يصيبهم ببعض ذنوبهم وإن كثيرا من الناس لفاسقون |
| | | तब (उस वक्त) ज़िन बातों में तुम इख्तेलाफ़ करते वह तुम्हें बता देगा और (ऐ रसूल) हम फिर कहते हैं कि जो एहकाम ख़ुदा नाज़िल किए हैं तुम उसके मुताबिक़ फैसला करो और उनकी (बेजा) ख्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो (बल्कि) तुम उनसे बचे रहो (ऐसा न हो) कि किसी हुक्म से जो ख़ुदा ने तुम पर नाज़िल किया है तुमको ये लोग भटका दें फिर अगर ये लोग तुम्हारे हुक्म से मुंह मोड़ें तो समझ लो कि (गोया) ख़ुदा ही की मरज़ी है कि उनके बाज़ गुनाहों की वजह से उन्हें मुसीबत में फॅसा दे और इसमें तो शक ही नहीं कि बहुतेरे लोग बदचलन हैं |
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719 | 5 | 50 | أفحكم الجاهلية يبغون ومن أحسن من الله حكما لقوم يوقنون |
| | | क्या ये लोग (ज़मानाए) जाहिलीयत के हुक्म की (तुमसे भी) तमन्ना रखते हैं हालॉकि यक़ीन करने वाले लोगों के वास्ते हुक्मे ख़ुदा से बेहतर कौन होगा |
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720 | 5 | 51 | يا أيها الذين آمنوا لا تتخذوا اليهود والنصارى أولياء بعضهم أولياء بعض ومن يتولهم منكم فإنه منهم إن الله لا يهدي القوم الظالمين |
| | | ऐ ईमानदारों यहूदियों और नसरानियों को अपना सरपरस्त न बनाओ (क्योंकि) ये लोग (तुम्हारे मुख़ालिफ़ हैं मगर) बाहम एक दूसरे के दोस्त हैं और (याद रहे कि) तुममें से जिसने उनको अपना सरपरस्त बनाया पस फिर वह भी उन्हीं लोगों में से हो गया बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को राहे रास्त पर नहीं लाता |
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