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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
687 | 5 | 18 | وقالت اليهود والنصارى نحن أبناء الله وأحباؤه قل فلم يعذبكم بذنوبكم بل أنتم بشر ممن خلق يغفر لمن يشاء ويعذب من يشاء ولله ملك السماوات والأرض وما بينهما وإليه المصير |
| | | यहूदी और ईसाई कहते है, "हम तो अल्लाह के बेटे और उसके चहेते है।" कहो, "फिर वह तुम्हें तुम्हारे गुनाहों पर दंड क्यों देता है? बात यह नहीं है, बल्कि तुम भी उसके पैदा किए हुए प्राणियों में से एक मनुष्य हो। वह जिसे चाहे क्षमा करे और जिसे चाहे दंड दे।" और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है वह भी, और जाना भी उसी की ओर है |
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688 | 5 | 19 | يا أهل الكتاب قد جاءكم رسولنا يبين لكم على فترة من الرسل أن تقولوا ما جاءنا من بشير ولا نذير فقد جاءكم بشير ونذير والله على كل شيء قدير |
| | | ऐ किताबवालो! हमारा रसूल ऐसे समय तुम्हारे पास आया है और तुम्हारे लिए (हमारा आदेश) खोल-खोलकर बयान करता है, जबकि रसूलों के आने का सिलसिला एक मुद्दत से बन्द था, ताकि तुम यह न कह सको कि "हमारे पास कोई शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला नहीं आया।" तो देखो! अब तुम्हारे पास शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला आ गया है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है |
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689 | 5 | 20 | وإذ قال موسى لقومه يا قوم اذكروا نعمة الله عليكم إذ جعل فيكم أنبياء وجعلكم ملوكا وآتاكم ما لم يؤت أحدا من العالمين |
| | | और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लोगों से कहा था, "ऐ लोगों! अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो उसने तुम्हें प्रदान की है। उसनें तुममें नबी पैदा किए और तुम्हें शासक बनाया और तुमको वह कुछ दिया जो संसार में किसी को नहीं दिया था |
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690 | 5 | 21 | يا قوم ادخلوا الأرض المقدسة التي كتب الله لكم ولا ترتدوا على أدباركم فتنقلبوا خاسرين |
| | | "ऐ मेरे लोगो! इस पवित्र भूमि में प्रवेश करो, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दी है। और पीछे न हटो, अन्यथा, घाटे में पड़ जाओगे।" |
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691 | 5 | 22 | قالوا يا موسى إن فيها قوما جبارين وإنا لن ندخلها حتى يخرجوا منها فإن يخرجوا منها فإنا داخلون |
| | | उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! उसमें तो बड़े शक्तिशाली लोग रहते है। हम तो वहाँ कदापि नहीं जा सकते, जब तक कि वे वहाँ से निकल नहीं जाते। हाँ, यदि वे वहाँ से निकल जाएँ, तो हम अवश्य प्रविष्ट हो जाएँगे।" |
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692 | 5 | 23 | قال رجلان من الذين يخافون أنعم الله عليهما ادخلوا عليهم الباب فإذا دخلتموه فإنكم غالبون وعلى الله فتوكلوا إن كنتم مؤمنين |
| | | उन डरनेवालों में से ही दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिनपर अल्लाह का अनुग्रह था। उन्होंने कहा, "उन लोगों के मुक़ाबले में दरवाज़े से प्रविष्ट हो जाओ। जब तुम उसमें प्रविष्टि हो जाओगे, तो तुम ही प्रभावी होगे। अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमानवाले हो।" |
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693 | 5 | 24 | قالوا يا موسى إنا لن ندخلها أبدا ما داموا فيها فاذهب أنت وربك فقاتلا إنا هاهنا قاعدون |
| | | उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! जब तक वे लोग वहाँ है, हम तो कदापि नहीं जाएँगे। ऐसा ही है तो जाओ तुम और तुम्हारा रब, और दोनों लड़ो। हम तो यहीं बैठे रहेंगे।" |
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694 | 5 | 25 | قال رب إني لا أملك إلا نفسي وأخي فافرق بيننا وبين القوم الفاسقين |
| | | उसने कहा, "मेरे रब! मेरा स्वयं अपने और अपने भाई के अतिरिक्त किसी पर अधिकार नहीं है। अतः तू हमारे और इन अवज्ञाकारी लोगों के बीच अलगाव पैदा कर दे।" |
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695 | 5 | 26 | قال فإنها محرمة عليهم أربعين سنة يتيهون في الأرض فلا تأس على القوم الفاسقين |
| | | कहा, "अच्छा तो अब यह भूमि चालीस वर्ष कर इनके लिए वर्जित है। ये धरती में मारे-मारे फिरेंगे तो तुम इन अवज्ञाकारी लोगों के प्रति शोक न करो" |
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696 | 5 | 27 | واتل عليهم نبأ ابني آدم بالحق إذ قربا قربانا فتقبل من أحدهما ولم يتقبل من الآخر قال لأقتلنك قال إنما يتقبل الله من المتقين |
| | | और इन्हें आदम के दो बेटों का सच्चा वृतान्त सुना दो। जब दोनों ने क़ुरबानी की, तो उनमें से एक की क़ुरबानी स्वीकृत हुई और दूसरे की स्वीकृत न हुई। उसने कहा, "मै तुझे अवश्य मार डालूँगा।" दूसरे न कहा, "अल्लाह तो उन्हीं की (क़ुरबानी) स्वीकृत करता है, जो डर रखनेवाले है। |
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