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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
60 | 2 | 53 | وإذ آتينا موسى الكتاب والفرقان لعلكم تهتدون |
| | | और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको |
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61 | 2 | 54 | وإذ قال موسى لقومه يا قوم إنكم ظلمتم أنفسكم باتخاذكم العجل فتوبوا إلى بارئكم فاقتلوا أنفسكم ذلكم خير لكم عند بارئكم فتاب عليكم إنه هو التواب الرحيم |
| | | और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी कौम के लोगो! बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करनेवाले की ओर पलटो, अतः अपने लोगों को स्वयं क़त्ल करो। यही तुम्हारे पैदा करनेवाले की स्पष्ट में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा क़बूल कर ली। निस्संदेह वह बड़ी तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।" |
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62 | 2 | 55 | وإذ قلتم يا موسى لن نؤمن لك حتى نرى الله جهرة فأخذتكم الصاعقة وأنتم تنظرون |
| | | और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख लें।" फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा, तुम देखते रहे |
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63 | 2 | 56 | ثم بعثناكم من بعد موتكم لعلكم تشكرون |
| | | फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ |
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64 | 2 | 57 | وظللنا عليكم الغمام وأنزلنا عليكم المن والسلوى كلوا من طيبات ما رزقناكم وما ظلمونا ولكن كانوا أنفسهم يظلمون |
| | | और हमने तुमपर बादलों की छाया की और तुमपर 'मन्न' और 'सलबा' उतारा - "खाओ, जो अच्छी पाक चीजें हमने तुम्हें प्रदान की है।" उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे |
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65 | 2 | 58 | وإذ قلنا ادخلوا هذه القرية فكلوا منها حيث شئتم رغدا وادخلوا الباب سجدا وقولوا حطة نغفر لكم خطاياكم وسنزيد المحسنين |
| | | और जब हमने कहा था, "इस बस्ती में प्रवेश करो फिर उसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और बस्ती के द्वार में सजदागुज़ार बनकर प्रवेश करो और कहो, "छूट हैं।" हम तुम्हारी खताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करनेवालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे।" |
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66 | 2 | 59 | فبدل الذين ظلموا قولا غير الذي قيل لهم فأنزلنا على الذين ظلموا رجزا من السماء بما كانوا يفسقون |
| | | फिर जो बात उनसे कहीं गई थी ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात से बदल दिया। अन्ततः ज़ालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश से यातना उतारी |
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67 | 2 | 60 | وإذ استسقى موسى لقومه فقلنا اضرب بعصاك الحجر فانفجرت منه اثنتا عشرة عينا قد علم كل أناس مشربهم كلوا واشربوا من رزق الله ولا تعثوا في الأرض مفسدين |
| | | और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी की प्रार्थना को तो हमने कहा, "चट्टान पर अपनी लाठी मारो," तो उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - "खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।" |
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68 | 2 | 61 | وإذ قلتم يا موسى لن نصبر على طعام واحد فادع لنا ربك يخرج لنا مما تنبت الأرض من بقلها وقثائها وفومها وعدسها وبصلها قال أتستبدلون الذي هو أدنى بالذي هو خير اهبطوا مصرا فإن لكم ما سألتم وضربت عليهم الذلة والمسكنة وباءوا بغضب من الله ذلك بأنهم كانوا يكفرون بآيات الله ويقتلون النبيين بغير الحق ذلك بما عصوا وكانوا يعتدون |
| | | और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि हमारे वास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककड़ियाँ और लहसुन और मसूर और प्याज़ निकाले।" और मूसा ने कहा, "क्या तुम जो घटिया चीज़ है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तम है? किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा हैं, तुम्हें मिल जाएगा" - और उनपर अपमान और हीन दशा थोप दी गई, और अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे |
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69 | 2 | 62 | إن الذين آمنوا والذين هادوا والنصارى والصابئين من آمن بالله واليوم الآخر وعمل صالحا فلهم أجرهم عند ربهم ولا خوف عليهم ولا هم يحزنون |
| | | निस्संदेह, ईमानवाले और जो यहूदी हुए और ईसाई और साबिई, जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगों का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे - |
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