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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
5553 | 75 | 2 | ولا أقسم بالنفس اللوامة |
| | | (और बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूँ (कि तुम सब दोबारा) ज़रूर ज़िन्दा किए जाओगे |
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5554 | 75 | 3 | أيحسب الإنسان ألن نجمع عظامه |
| | | क्या इन्सान ये ख्याल करता है (कि हम उसकी हड्डियों को बोसीदा होने के बाद) जमा न करेंगे हाँ (ज़रूर करेंगें) |
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5555 | 75 | 4 | بلى قادرين على أن نسوي بنانه |
| | | हम इस पर क़ादिर हैं कि हम उसकी पोर पोर दुरूस्त करें |
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5556 | 75 | 5 | بل يريد الإنسان ليفجر أمامه |
| | | मगर इन्सान तो ये जानता है कि अपने आगे भी (हमेशा) बुराई करता जाए |
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5557 | 75 | 6 | يسأل أيان يوم القيامة |
| | | पूछता है कि क़यामत का दिन कब होगा |
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5558 | 75 | 7 | فإذا برق البصر |
| | | तो जब ऑंखे चकाचौन्ध में आ जाएँगी |
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5559 | 75 | 8 | وخسف القمر |
| | | और चाँद गहन में लग जाएगा |
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5560 | 75 | 9 | وجمع الشمس والقمر |
| | | और सूरज और चाँद इकट्ठा कर दिए जाएँगे |
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5561 | 75 | 10 | يقول الإنسان يومئذ أين المفر |
| | | तो इन्सान कहेगा आज कहाँ भाग कर जाऊँ |
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5562 | 75 | 11 | كلا لا وزر |
| | | यक़ीन जानों कहीं पनाह नहीं |
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