نتائج البحث: 6236
|
ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
5544 | 74 | 49 | فما لهم عن التذكرة معرضين |
| | | और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुँह मोड़े हुए हैं |
|
5545 | 74 | 50 | كأنهم حمر مستنفرة |
| | | गोया वह वहशी गधे हैं |
|
5546 | 74 | 51 | فرت من قسورة |
| | | कि येर से (दुम दबा कर) भागते हैं |
|
5547 | 74 | 52 | بل يريد كل امرئ منهم أن يؤتى صحفا منشرة |
| | | असल ये है कि उनमें से हर शख़्श इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुई (आसमानी) किताबें अता की जाएँ |
|
5548 | 74 | 53 | كلا بل لا يخافون الآخرة |
| | | ये तो हरगिज़ न होगा बल्कि ये तो आख़ेरत ही से नहीं डरते |
|
5549 | 74 | 54 | كلا إنه تذكرة |
| | | हाँ हाँ बेशक ये (क़ुरान सरा सर) नसीहत है |
|
5550 | 74 | 55 | فمن شاء ذكره |
| | | तो जो चाहे उसे याद रखे |
|
5551 | 74 | 56 | وما يذكرون إلا أن يشاء الله هو أهل التقوى وأهل المغفرة |
| | | और ख़ुदा की मशीयत के बग़ैर ये लोग याद रखने वाले नहीं वही (बन्दों के) डराने के क़ाबिल और बख्यिश का मालिक है |
|
5552 | 75 | 1 | بسم الله الرحمن الرحيم لا أقسم بيوم القيامة |
| | | मैं रोजे क़यामत की क़सम खाता हूँ |
|
5553 | 75 | 2 | ولا أقسم بالنفس اللوامة |
| | | (और बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूँ (कि तुम सब दोबारा) ज़रूर ज़िन्दा किए जाओगे |
|