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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
554 | 4 | 61 | وإذا قيل لهم تعالوا إلى ما أنزل الله وإلى الرسول رأيت المنافقين يصدون عنك صدودا |
| | | और जब उनसे कहा जाता है कि ख़ुदा ने जो किताब नाज़िल की है उसकी तरफ़ और रसूल की तरफ़ रूजू करो तो तुम मुनाफ़िक़ीन को देखते हो कि तुमसे किस तरह मुंह फेर लेते हैं |
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555 | 4 | 62 | فكيف إذا أصابتهم مصيبة بما قدمت أيديهم ثم جاءوك يحلفون بالله إن أردنا إلا إحسانا وتوفيقا |
| | | कि जब उनपर उनके करतूत की वजह से कोई मुसीबत पड़ती है तो क्योंकर तुम्हारे पास ख़ुदा की क़समें खाते हैं कि हमारा मतलब नेकी और मेल मिलाप के सिवा कुछ न था ये वह लोग हैं कि कुछ ख़ुदा ही उनके दिल की हालत ख़ूब जानता है |
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556 | 4 | 63 | أولئك الذين يعلم الله ما في قلوبهم فأعرض عنهم وعظهم وقل لهم في أنفسهم قولا بليغا |
| | | पस तुम उनसे दरगुज़र करो और उनको नसीहत करो और उनसे उनके दिल में असर करने वाली बात कहो और हमने कोई रसूल नहीं भेजा मगर इस वास्ते कि ख़ुदा के हुक्म से लोग उसकी इताअत करें |
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557 | 4 | 64 | وما أرسلنا من رسول إلا ليطاع بإذن الله ولو أنهم إذ ظلموا أنفسهم جاءوك فاستغفروا الله واستغفر لهم الرسول لوجدوا الله توابا رحيما |
| | | और (रसूल) जब उन लोगों ने (नाफ़रमानी करके) अपनी जानों पर जुल्म किया था अगर तुम्हारे पास चले आते और ख़ुदा से माफ़ी मॉगते और रसूल (तुम) भी उनकी मग़फ़िरत चाहते तो बेशक वह लोग ख़ुदा को बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पाते |
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558 | 4 | 65 | فلا وربك لا يؤمنون حتى يحكموك فيما شجر بينهم ثم لا يجدوا في أنفسهم حرجا مما قضيت ويسلموا تسليما |
| | | पस (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार की क़सम ये लोग सच्चे मोमिन न होंगे तावक्ते क़ि अपने बाहमी झगड़ों में तुमको अपना हाकिम (न) बनाएं फिर (यही नहीं बल्कि) जो कुछ तुम फैसला करो उससे किसी तरह दिलतंग भी न हों बल्कि ख़ुशी ख़ुशी उसको मान लें |
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559 | 4 | 66 | ولو أنا كتبنا عليهم أن اقتلوا أنفسكم أو اخرجوا من دياركم ما فعلوه إلا قليل منهم ولو أنهم فعلوا ما يوعظون به لكان خيرا لهم وأشد تثبيتا |
| | | (इस्लामी शरीयत में तो उनका ये हाल है) और अगर हम बनी इसराइल की तरह उनपर ये हुक्म जारी कर देते कि तुम अपने आपको क़त्ल कर डालो या शहर बदर हो जाओ तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा ये लोग तो उसको न करते और अगर ये लोग इस बात पर अमल करते जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है तो उनके हक़ में बहुत बेहतर होता |
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560 | 4 | 67 | وإذا لآتيناهم من لدنا أجرا عظيما |
| | | और (दीन में भी) बहुत साबित क़दमी से जमे रहते और इस सूरत में हम भी अपनी तरफ़ से ज़रूर बड़ा अच्छा बदला देते |
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561 | 4 | 68 | ولهديناهم صراطا مستقيما |
| | | और उनको राहे रास्त की भी ज़रूर हिदायत करते |
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562 | 4 | 69 | ومن يطع الله والرسول فأولئك مع الذين أنعم الله عليهم من النبيين والصديقين والشهداء والصالحين وحسن أولئك رفيقا |
| | | और जिस शख्स ने ख़ुदा और रसूल की इताअत की तो ऐसे लोग उन (मक़बूल) बन्दों के साथ होंगे जिन्हें ख़ुदा ने अपनी नेअमतें दी हैं यानि अम्बिया और सिद्दीक़ीन और शोहदा और सालेहीन और ये लोग क्या ही अच्छे रफ़ीक़ हैं |
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563 | 4 | 70 | ذلك الفضل من الله وكفى بالله عليما |
| | | ये ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) है और ख़ुदा तो वाक़िफ़कारी में बस है |
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