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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
496 | 4 | 3 | وإن خفتم ألا تقسطوا في اليتامى فانكحوا ما طاب لكم من النساء مثنى وثلاث ورباع فإن خفتم ألا تعدلوا فواحدة أو ما ملكت أيمانكم ذلك أدنى ألا تعولوا |
| | | और अगर तुमको अन्देशा हो कि (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियों (की रखरखाव) में इन्साफ न कर सकोगे तो और औरतों में अपनी मर्ज़ी के मवाफ़िक दो दो और तीन तीन और चार चार निकाह करो (फिर अगर तुम्हें इसका) अन्देशा हो कि (मुततइद) बीवियों में (भी) इन्साफ न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तेफ़ा करो या जो (लोंडी) तुम्हारी ज़र ख़रीद हो (उसी पर क़नाअत करो) ये तदबीर बेइन्साफ़ी न करने की बहुत क़रीने क़यास है |
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497 | 4 | 4 | وآتوا النساء صدقاتهن نحلة فإن طبن لكم عن شيء منه نفسا فكلوه هنيئا مريئا |
| | | और औरतों को उनके महर ख़ुशी ख़ुशी दे डालो फिर अगर वह ख़ुशी ख़ुशी तुम्हें कुछ छोड़ दे तो शौक़ से नौशे जान खाओ पियो |
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498 | 4 | 5 | ولا تؤتوا السفهاء أموالكم التي جعل الله لكم قياما وارزقوهم فيها واكسوهم وقولوا لهم قولا معروفا |
| | | और अपने वह माल जिनपर ख़ुदा ने तुम्हारी गुज़र न क़रार दी है बेवकूफ़ों (ना समझ यतीम) को न दे बैठो हॉ उसमें से उन्हें खिलाओ और उनको पहनाओ (तो मज़ाएक़ा नहीं) और उनसे (शौक़ से) अच्छी तरह बात करो |
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499 | 4 | 6 | وابتلوا اليتامى حتى إذا بلغوا النكاح فإن آنستم منهم رشدا فادفعوا إليهم أموالهم ولا تأكلوها إسرافا وبدارا أن يكبروا ومن كان غنيا فليستعفف ومن كان فقيرا فليأكل بالمعروف فإذا دفعتم إليهم أموالهم فأشهدوا عليهم وكفى بالله حسيبا |
| | | और यतीमों को कारोबार में लगाए रहो यहॉ तक के ब्याहने के क़ाबिल हों फिर उस वक्त तुम उन्हे (एक महीने का ख़र्च) उनके हाथ से कराके अगर होशियार पाओ तो उनका माल उनके हवाले कर दो और (ख़बरदार) ऐसा न करना कि इस ख़ौफ़ से कि कहीं ये बड़े हो जाएंगे फ़ुज़ूल ख़र्ची करके झटपट उनका माल चट कर जाओ और जो (जो वली या सरपरस्त) दौलतमन्द हो तो वह (माले यतीम अपने ख़र्च में लाने से) बचता रहे और (हॉ) जो मोहताज हो वह अलबत्ता (वाजिबी) दस्तूर के मुताबिक़ खा सकता है पस जब उनके माल उनके हवाले करने लगो तो लोगों को उनका गवाह बना लो और (यूं तो) हिसाब लेने को ख़ुदा काफ़ी ही है |
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500 | 4 | 7 | للرجال نصيب مما ترك الوالدان والأقربون وللنساء نصيب مما ترك الوالدان والأقربون مما قل منه أو كثر نصيبا مفروضا |
| | | मॉ बाप और क़राबतदारों के तर्के में कुछ हिस्सा ख़ास मर्दों का है और उसी तरह माँ बाब और क़राबतदारो के तरके में कुछ हिस्सा ख़ास औरतों का भी है ख्वाह तर्क कम हो या ज्यादा (हर शख्स का) हिस्सा (हमारी तरफ़ से) मुक़र्रर किया हुआ है |
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501 | 4 | 8 | وإذا حضر القسمة أولو القربى واليتامى والمساكين فارزقوهم منه وقولوا لهم قولا معروفا |
| | | और जब (तर्क की) तक़सीम के वक्त (वह) क़राबतदार (जिनका कोई हिस्सा नहीं) और यतीम बच्चे और मोहताज लोग आ जाएं तो उन्हे भी कुछ उसमें से दे दो और उसे अच्छी तरह (उनवाने शाइस्ता से) बात करो |
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502 | 4 | 9 | وليخش الذين لو تركوا من خلفهم ذرية ضعافا خافوا عليهم فليتقوا الله وليقولوا قولا سديدا |
| | | और उन लोगों को डरना (और ख्याल करना चाहिये) कि अगर वह लोग ख़ुद अपने बाद (नन्हे नन्हे) नातवॉ बच्चे छोड़ जाते तो उन पर (किस क़दर) तरस आता पस उनको (ग़रीब बच्चों पर सख्ती करने में) ख़ुदा से डरना चाहिये और उनसे सीधी तरह बात करना चाहिए |
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503 | 4 | 10 | إن الذين يأكلون أموال اليتامى ظلما إنما يأكلون في بطونهم نارا وسيصلون سعيرا |
| | | जो यतीमों के माल नाहक़ चट कर जाया करते हैं वह अपने पेट में बस अंगारे भरते हैं और अनक़रीब जहन्नुम वासिल होंगे |
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504 | 4 | 11 | يوصيكم الله في أولادكم للذكر مثل حظ الأنثيين فإن كن نساء فوق اثنتين فلهن ثلثا ما ترك وإن كانت واحدة فلها النصف ولأبويه لكل واحد منهما السدس مما ترك إن كان له ولد فإن لم يكن له ولد وورثه أبواه فلأمه الثلث فإن كان له إخوة فلأمه السدس من بعد وصية يوصي بها أو دين آباؤكم وأبناؤكم لا تدرون أيهم أقرب لكم نفعا فريضة من الله إن الله كان عليما حكيما |
| | | (मुसलमानों) ख़ुदा तुम्हारी औलाद के हक़ में तुमसे वसीयत करता है कि लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के बराबर है और अगर (मय्यत की) औलाद में सिर्फ लड़कियॉ ही हों (दो) या (दो) से ज्यादा तो उनका (मक़र्रर हिस्सा) कुल तर्के का दो तिहाई है और अगर एक लड़की हो तो उसका आधा है और मय्यत के बाप मॉ हर एक का अगर मय्यत की कोई औलाद मौजूद न हो तो माल मुस्तरद का में से मुअय्यन (ख़ास चीज़ों में) छटा हिस्सा है और अगर मय्यत के कोई औलाद न हो और उसके सिर्फ मॉ बाप ही वारिस हों तो मॉ का मुअय्यन (ख़ास चीज़ों में) एक तिहाई हिस्सा तय है और बाक़ी बाप का लेकिन अगर मय्यत के (हक़ीक़ी और सौतेले) भाई भी मौजूद हों तो (अगरचे उन्हें कुछ न मिले) उस वक्त मॉ का हिस्सा छठा ही होगा (और वह भी) मय्यत नें जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तालीम और (अदाए) क़र्ज़ के बाद तुम्हारे बाप हों या बेटे तुम तो यह नहीं जानते हों कि उसमें कौन तुम्हारी नाफ़रमानी में ज्यादा क़रीब है (फिर तुम क्या दख़ल दे सकते हो) हिस्सा तो सिर्फ ख़ुदा की तरफ़ से मुअय्यन होता है क्योंकि ख़ुदा तो ज़रूर हर चीज़ को जानता और तदबीर वाला है |
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505 | 4 | 12 | ولكم نصف ما ترك أزواجكم إن لم يكن لهن ولد فإن كان لهن ولد فلكم الربع مما تركن من بعد وصية يوصين بها أو دين ولهن الربع مما تركتم إن لم يكن لكم ولد فإن كان لكم ولد فلهن الثمن مما تركتم من بعد وصية توصون بها أو دين وإن كان رجل يورث كلالة أو امرأة وله أخ أو أخت فلكل واحد منهما السدس فإن كانوا أكثر من ذلك فهم شركاء في الثلث من بعد وصية يوصى بها أو دين غير مضار وصية من الله والله عليم حليم |
| | | और जो कुछ तुम्हारी बीवियां छोड़ कर (मर) जाए पस अगर उनके कोई औलाद न हो तो तुम्हारा आधा है और अगर उनके कोई औलाद हो तो जो कुछ वह तरका छोड़े उसमें से बाज़ चीज़ों में चौथाई तुम्हारा है (और वह भी) औरत ने जिसकी वसीयत की हो और (अदाए) क़र्ज़ के बाद अगर तुम्हारे कोई औलाद न हो तो तुम्हारे तरके में से तुम्हारी बीवियों का बाज़ चीज़ों में चौथाई है और अगर तुम्हारी कोई औलाद हो तो तुम्हारे तर्के में से उनका ख़ास चीज़ों में आठवॉ हिस्सा है (और वह भी) तुमने जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तामील और (अदाए) क़र्ज़ के बाद और अगर कोई मर्द या औरत अपनी मादरजिलों (ख्याली) भाई या बहन को वारिस छोड़े तो उनमें से हर एक का ख़ास चीजों में छठा हिस्सा है और अगर उससे ज्यादा हो तो सबके सब एक ख़ास तिहाई में शरीक़ रहेंगे और (ये सब) मय्यत ने जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तामील और (अदाए) क़र्ज क़े बाद मगर हॉ वह वसीयत (वारिसों को ख्वाह मख्वाह) नुक्सान पहुंचाने वाली न हो (तब) ये वसीयत ख़ुदा की तरफ़ से है और ख़ुदा तो हर चीज़ का जानने वाला और बुर्दबार है |
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