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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
4925 | 55 | 24 | وله الجوار المنشآت في البحر كالأعلام |
| | | उसी के बस में है समुद्र में पहाड़ो की तरह उठे हुए जहाज़ |
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4926 | 55 | 25 | فبأي آلاء ربكما تكذبان |
| | | तो तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओग? |
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4927 | 55 | 26 | كل من عليها فان |
| | | प्रत्येक जो भी इस (धरती) पर है, नाशवान है |
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4928 | 55 | 27 | ويبقى وجه ربك ذو الجلال والإكرام |
| | | किन्तु तुम्हारे रब का प्रतापवान और उदार स्वरूप शेष रहनेवाला है |
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4929 | 55 | 28 | فبأي آلاء ربكما تكذبان |
| | | अतः तुम दोनों अपने रब के चमत्कारों में से किस-किस को झुठलाओगं? |
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4930 | 55 | 29 | يسأله من في السماوات والأرض كل يوم هو في شأن |
| | | आकाशों और धरती में जो भी है उसी से माँगता है। उसकी नित्य नई शान है |
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4931 | 55 | 30 | فبأي آلاء ربكما تكذبان |
| | | अतः तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? |
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4932 | 55 | 31 | سنفرغ لكم أيه الثقلان |
| | | ऐ दोनों बोझों! शीघ्र ही हम तुम्हारे लिए निवृत हुए जाते है |
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4933 | 55 | 32 | فبأي آلاء ربكما تكذبان |
| | | तो तुम दोनों अपने रब की अनुकम्पाओं में से किस-किस को झुठलाओगे? |
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4934 | 55 | 33 | يا معشر الجن والإنس إن استطعتم أن تنفذوا من أقطار السماوات والأرض فانفذوا لا تنفذون إلا بسلطان |
| | | ऐ जिन्नों और मनुष्यों के गिरोह! यदि तुममें हो सके कि आकाशों और धरती की सीमाओं को पार कर सको, तो पार कर जाओ; तुम कदापि पार नहीं कर सकते बिना अधिकार-शक्ति के |
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