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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
4908 | 55 | 7 | والسماء رفعها ووضع الميزان |
| | | और उसी ने आसमान बुलन्द किया और तराजू (इन्साफ) को क़ायम किया |
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4909 | 55 | 8 | ألا تطغوا في الميزان |
| | | ताकि तुम लोग तराज़ू (से तौलने) में हद से तजाउज़ न करो |
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4910 | 55 | 9 | وأقيموا الوزن بالقسط ولا تخسروا الميزان |
| | | और ईन्साफ के साथ ठीक तौलो और तौल कम न करो |
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4911 | 55 | 10 | والأرض وضعها للأنام |
| | | और उसी ने लोगों के नफे क़े लिए ज़मीन बनायी |
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4912 | 55 | 11 | فيها فاكهة والنخل ذات الأكمام |
| | | कि उसमें मेवे और खजूर के दरख्त हैं जिसके ख़ोशों में ग़िलाफ़ होते हैं |
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4913 | 55 | 12 | والحب ذو العصف والريحان |
| | | और अनाज जिसके साथ भुस होता है और ख़ुशबूदार फूल |
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4914 | 55 | 13 | فبأي آلاء ربكما تكذبان |
| | | तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों को न मानोगे |
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4915 | 55 | 14 | خلق الإنسان من صلصال كالفخار |
| | | उसी ने इन्सान को ठीकरे की तरह खन खनाती हुई मिटटी से पैदा किया |
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4916 | 55 | 15 | وخلق الجان من مارج من نار |
| | | और उसी ने जिन्नात को आग के शोले से पैदा किया |
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4917 | 55 | 16 | فبأي آلاء ربكما تكذبان |
| | | तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों से मुकरोगे |
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