بسم الله الرحمن الرحيم

نتائج البحث: 6236
ترتيب الآيةرقم السورةرقم الآيةالاية
4903197متاع قليل ثم مأواهم جهنم وبئس المهاد
ये चन्द रोज़ा फ़ायदा हैं फिर तो (आख़िरकार) उनका ठिकाना जहन्नुम ही है और क्या ही बुरा ठिकाना है
4913198لكن الذين اتقوا ربهم لهم جنات تجري من تحتها الأنهار خالدين فيها نزلا من عند الله وما عند الله خير للأبرار
मगर जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की परहेज़गारी (इख्तेयार की उनके लिए बेहिश्त के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारीं हैं और वह हमेशा उसी में रहेंगे ये ख़ुदा की तरफ़ से उनकी (दावत है और जो साज़ो सामान) ख़ुदा के यहॉ है वह नेको कारों के वास्ते दुनिया से कहीं बेहतर है
4923199وإن من أهل الكتاب لمن يؤمن بالله وما أنزل إليكم وما أنزل إليهم خاشعين لله لا يشترون بآيات الله ثمنا قليلا أولئك لهم أجرهم عند ربهم إن الله سريع الحساب
और अहले किताब में से कुछ लोग तो ऐसे ज़रूर हैं जो ख़ुदा पर और जो (किताब) तुम पर नाज़िल हुई और जो (किताब) उनपर नाज़िल हुई (सब पर) ईमान रखते हैं ख़ुदा के आगे सर झुकाए हुए हैं और ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फ़ायदे) नहीं लेते ऐसे ही लोगों के वास्ते उनके परवरदिगार के यहॉ अच्छा बदला है बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब करने वाला है
4933200يا أيها الذين آمنوا اصبروا وصابروا ورابطوا واتقوا الله لعلكم تفلحون
ऐ ईमानदारों (दीन की तकलीफ़ों को) और दूसरों को बर्दाश्त की तालीम दो और (जिहाद के लिए) कमरें कस लो और ख़ुदा ही से डरो ताकि तुम अपनी दिली मुराद पाओ
49441بسم الله الرحمن الرحيم يا أيها الناس اتقوا ربكم الذي خلقكم من نفس واحدة وخلق منها زوجها وبث منهما رجالا كثيرا ونساء واتقوا الله الذي تساءلون به والأرحام إن الله كان عليكم رقيبا
ऐ लोगों अपने पालने वाले से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक शख्स से पैदा किया और (वह इस तरह कि पहले) उनकी बाकी मिट्टी से उनकी बीवी (हव्वा) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियॉ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये और उस ख़ुदा से डरो जिसके वसीले से आपस में एक दूसरे से सवाल करते हो और क़तए रहम से भी डरो बेशक ख़ुदा तुम्हारी देखभाल करने वाला है
49542وآتوا اليتامى أموالهم ولا تتبدلوا الخبيث بالطيب ولا تأكلوا أموالهم إلى أموالكم إنه كان حوبا كبيرا
और यतीमों को उनके माल दे दो और बुरी चीज़ (माले हराम) को भली चीज़ (माले हलाल) के बदले में न लो और उनके माल अपने मालों में मिलाकर न चख जाओ क्योंकि ये बहुत बड़ा गुनाह है
49643وإن خفتم ألا تقسطوا في اليتامى فانكحوا ما طاب لكم من النساء مثنى وثلاث ورباع فإن خفتم ألا تعدلوا فواحدة أو ما ملكت أيمانكم ذلك أدنى ألا تعولوا
और अगर तुमको अन्देशा हो कि (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियों (की रखरखाव) में इन्साफ न कर सकोगे तो और औरतों में अपनी मर्ज़ी के मवाफ़िक दो दो और तीन तीन और चार चार निकाह करो (फिर अगर तुम्हें इसका) अन्देशा हो कि (मुततइद) बीवियों में (भी) इन्साफ न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तेफ़ा करो या जो (लोंडी) तुम्हारी ज़र ख़रीद हो (उसी पर क़नाअत करो) ये तदबीर बेइन्साफ़ी न करने की बहुत क़रीने क़यास है
49744وآتوا النساء صدقاتهن نحلة فإن طبن لكم عن شيء منه نفسا فكلوه هنيئا مريئا
और औरतों को उनके महर ख़ुशी ख़ुशी दे डालो फिर अगर वह ख़ुशी ख़ुशी तुम्हें कुछ छोड़ दे तो शौक़ से नौशे जान खाओ पियो
49845ولا تؤتوا السفهاء أموالكم التي جعل الله لكم قياما وارزقوهم فيها واكسوهم وقولوا لهم قولا معروفا
और अपने वह माल जिनपर ख़ुदा ने तुम्हारी गुज़र न क़रार दी है बेवकूफ़ों (ना समझ यतीम) को न दे बैठो हॉ उसमें से उन्हें खिलाओ और उनको पहनाओ (तो मज़ाएक़ा नहीं) और उनसे (शौक़ से) अच्छी तरह बात करो
49946وابتلوا اليتامى حتى إذا بلغوا النكاح فإن آنستم منهم رشدا فادفعوا إليهم أموالهم ولا تأكلوها إسرافا وبدارا أن يكبروا ومن كان غنيا فليستعفف ومن كان فقيرا فليأكل بالمعروف فإذا دفعتم إليهم أموالهم فأشهدوا عليهم وكفى بالله حسيبا
और यतीमों को कारोबार में लगाए रहो यहॉ तक के ब्याहने के क़ाबिल हों फिर उस वक्त तुम उन्हे (एक महीने का ख़र्च) उनके हाथ से कराके अगर होशियार पाओ तो उनका माल उनके हवाले कर दो और (ख़बरदार) ऐसा न करना कि इस ख़ौफ़ से कि कहीं ये बड़े हो जाएंगे फ़ुज़ूल ख़र्ची करके झटपट उनका माल चट कर जाओ और जो (जो वली या सरपरस्त) दौलतमन्द हो तो वह (माले यतीम अपने ख़र्च में लाने से) बचता रहे और (हॉ) जो मोहताज हो वह अलबत्ता (वाजिबी) दस्तूर के मुताबिक़ खा सकता है पस जब उनके माल उनके हवाले करने लगो तो लोगों को उनका गवाह बना लो और (यूं तो) हिसाब लेने को ख़ुदा काफ़ी ही है


0 ... 38.9 39.9 40.9 41.9 42.9 43.9 44.9 45.9 46.9 47.9 49.9 50.9 51.9 52.9 53.9 54.9 55.9 56.9 57.9 ... 623

إنتاج هذه المادة أخد: 0.02 ثانية


المغرب.كووم © ٢٠٠٩ - ١٤٣٠ © الحـمـد لله الـذي سـخـر لـنا هـذا :: وقف لله تعالى وصدقة جارية

5201418624582891521329473940486439773669