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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
4619 | 49 | 7 | واعلموا أن فيكم رسول الله لو يطيعكم في كثير من الأمر لعنتم ولكن الله حبب إليكم الإيمان وزينه في قلوبكم وكره إليكم الكفر والفسوق والعصيان أولئك هم الراشدون |
| | | और जान रखो कि तुम में ख़ुदा के पैग़म्बर (मौजूद) हैं बहुत सी बातें ऐसी हैं कि अगर रसूल उनमें तुम्हारा कहा मान लिया करें तो (उलटे) तुम ही मुश्किल में पड़ जाओ लेकिन ख़ुदा ने तुम्हें ईमान की मोहब्बत दे दी है और उसको तुम्हारे दिलों में उमदा कर दिखाया है और कुफ़्र और बदकारी और नाफ़रमानी से तुमको बेज़ार कर दिया है यही लोग ख़ुदा के फ़ज़ल व एहसान से राहे हिदायत पर हैं |
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4620 | 49 | 8 | فضلا من الله ونعمة والله عليم حكيم |
| | | और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफ़कार और हिकमत वाला है |
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4621 | 49 | 9 | وإن طائفتان من المؤمنين اقتتلوا فأصلحوا بينهما فإن بغت إحداهما على الأخرى فقاتلوا التي تبغي حتى تفيء إلى أمر الله فإن فاءت فأصلحوا بينهما بالعدل وأقسطوا إن الله يحب المقسطين |
| | | और अगर मोमिनीन में से दो फिरक़े आपस में लड़ पड़े तो उन दोनों में सुलह करा दो फिर अगर उनमें से एक (फ़रीक़) दूसरे पर ज्यादती करे तो जो (फिरक़ा) ज्यादती करे तुम (भी) उससे लड़ो यहाँ तक वह ख़ुदा के हुक्म की तरफ रूझू करे फिर जब रूजू करे तो फरीकैन में मसावात के साथ सुलह करा दो और इन्साफ़ से काम लो बेशक ख़ुदा इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है |
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4622 | 49 | 10 | إنما المؤمنون إخوة فأصلحوا بين أخويكم واتقوا الله لعلكم ترحمون |
| | | मोमिनीन तो आपस में बस भाई भाई हैं तो अपने दो भाईयों में मेल जोल करा दिया करो और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाए |
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4623 | 49 | 11 | يا أيها الذين آمنوا لا يسخر قوم من قوم عسى أن يكونوا خيرا منهم ولا نساء من نساء عسى أن يكن خيرا منهن ولا تلمزوا أنفسكم ولا تنابزوا بالألقاب بئس الاسم الفسوق بعد الإيمان ومن لم يتب فأولئك هم الظالمون |
| | | ऐ ईमानदारों (तुम किसी क़ौम का) कोई मर्द ( दूसरी क़ौम के मर्दों की हँसी न उड़ाये मुमकिन है कि वह लोग (ख़ुदा के नज़दीक) उनसे अच्छे हों और न औरते औरतों से (तमसख़ुर करें) क्या अजब है कि वह उनसे अच्छी हों और तुम आपस में एक दूसरे को मिलने न दो न एक दूसरे का बुरा नाम धरो ईमान लाने के बाद बदकारी (का) नाम ही बुरा है और जो लोग बाज़ न आएँ तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं |
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4624 | 49 | 12 | يا أيها الذين آمنوا اجتنبوا كثيرا من الظن إن بعض الظن إثم ولا تجسسوا ولا يغتب بعضكم بعضا أيحب أحدكم أن يأكل لحم أخيه ميتا فكرهتموه واتقوا الله إن الله تواب رحيم |
| | | ऐ ईमानदारों बहुत से गुमान (बद) से बचे रहो क्यों कि बाज़ बदगुमानी गुनाह हैं और आपस में एक दूसरे के हाल की टोह में न रहा करो और न तुममें से एक दूसरे की ग़ीबत करे क्या तुममें से कोई इस बात को पसन्द करेगा कि अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाए तो तुम उससे (ज़रूर) नफरत करोगे और ख़ुदा से डरो, बेशक ख़ुदा बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है |
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4625 | 49 | 13 | يا أيها الناس إنا خلقناكم من ذكر وأنثى وجعلناكم شعوبا وقبائل لتعارفوا إن أكرمكم عند الله أتقاكم إن الله عليم خبير |
| | | लोगों हमने तो तुम सबको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और हम ही ने तुम्हारे कबीले और बिरादरियाँ बनायीं ताकि एक दूसरे की शिनाख्त करे इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक तुम सबमें बड़ा इज्ज़तदार वही है जो बड़ा परहेज़गार हो बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार ख़बरदार है |
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4626 | 49 | 14 | قالت الأعراب آمنا قل لم تؤمنوا ولكن قولوا أسلمنا ولما يدخل الإيمان في قلوبكم وإن تطيعوا الله ورسوله لا يلتكم من أعمالكم شيئا إن الله غفور رحيم |
| | | अरब के देहाती कहते हैं कि हम ईमान लाए (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम ईमान नहीं लाए बल्कि (यूँ) कह दो कि इस्लाम लाए हालॉकि ईमान का अभी तक तुम्हारे दिल में गुज़र हुआ ही नहीं और अगर तुम ख़ुदा की और उसके रसूल की फरमाबरदारी करोगे तो ख़ुदा तुम्हारे आमाल में से कुछ कम नहीं करेगा - बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है |
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4627 | 49 | 15 | إنما المؤمنون الذين آمنوا بالله ورسوله ثم لم يرتابوا وجاهدوا بأموالهم وأنفسهم في سبيل الله أولئك هم الصادقون |
| | | (सच्चे मोमिन) तो बस वही हैं जो ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए फिर उन्होंने उसमें किसी तरह का शक़ शुबह न किया और अपने माल से और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जेहाद किया यही लोग (दावाए ईमान में) सच्चे हैं |
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4628 | 49 | 16 | قل أتعلمون الله بدينكم والله يعلم ما في السماوات وما في الأرض والله بكل شيء عليم |
| | | (ऐ रसूल इनसे) पूछो तो कि क्या तुम ख़ुदा को अपनी दीदारी जताते हो और ख़ुदा तो जो कुछ आसमानों मे है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) जानता है और ख़ुदा हर चीज़ से ख़बरदार है |
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