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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
4605 | 48 | 22 | ولو قاتلكم الذين كفروا لولوا الأدبار ثم لا يجدون وليا ولا نصيرا |
| | | यदि (मक्का के) इनकार करनेवाले तुमसे लड़ते तो अवश्य ही पीठ फेर जाते। फिर यह भी कि वे न तो कोई संरक्षक पाएँगे और न कोई सहायक |
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4606 | 48 | 23 | سنة الله التي قد خلت من قبل ولن تجد لسنة الله تبديلا |
| | | यह अल्लाह की उस रीति के अनुकूल है जो पहले से चली आई है, और तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे |
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4607 | 48 | 24 | وهو الذي كف أيديهم عنكم وأيديكم عنهم ببطن مكة من بعد أن أظفركم عليهم وكان الله بما تعملون بصيرا |
| | | वही है जिसने उसके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे मक्के की घाटी में रोक दिए इसके पश्चात कि वह तुम्हें उनपर प्रभावी कर चुका था। अल्लाह उसे देख रहा था जो कुछ तुम कर रहे थे |
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4608 | 48 | 25 | هم الذين كفروا وصدوكم عن المسجد الحرام والهدي معكوفا أن يبلغ محله ولولا رجال مؤمنون ونساء مؤمنات لم تعلموهم أن تطئوهم فتصيبكم منهم معرة بغير علم ليدخل الله في رحمته من يشاء لو تزيلوا لعذبنا الذين كفروا منهم عذابا أليما |
| | | ये वही लोग तो है जिन्होंने इनकार किया और तुम्हें मस्जिदे हराम (काबा) से रोक दिया और क़ुरबानी के बँधे हुए जानवरों को भी इससे रोके रखा कि वे अपने ठिकाने पर पहुँचे। यदि यह ख़याल न होता कि बहुत-से मोमिन पुरुष और मोमिन स्त्रियाँ (मक्का में) मौजूद है, जिन्हें तुम नहीं जानते, उन्हें कुचल दोगे, फिर उनके सिलसिले में अनजाने तुमपर इल्ज़ाम आएगा (तो युद्ध की अनुमति दे दी जाती, अनुमति इसलिए नहीं दी गई) ताकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता में दाख़िल कर ले। यदि वे ईमानवाले अलग हो गए होते तो उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनको हम अवश्य दुखद यातना देते |
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4609 | 48 | 26 | إذ جعل الذين كفروا في قلوبهم الحمية حمية الجاهلية فأنزل الله سكينته على رسوله وعلى المؤمنين وألزمهم كلمة التقوى وكانوا أحق بها وأهلها وكان الله بكل شيء عليما |
| | | याद करो जब इनकार करनेवाले लोगों ने अपने दिलों में हठ को जगह दी, अज्ञानपूर्ण हठ को; तो अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमानवालो पर सकीना (प्रशान्ति) उतारी और उन्हें परहेज़गारी (धर्मपरायणता) की बात का पाबन्द रखा। वे इसके ज़्यादा हक़दार और इसके योग्य भी थे। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है |
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4610 | 48 | 27 | لقد صدق الله رسوله الرؤيا بالحق لتدخلن المسجد الحرام إن شاء الله آمنين محلقين رءوسكم ومقصرين لا تخافون فعلم ما لم تعلموا فجعل من دون ذلك فتحا قريبا |
| | | निश्चय ही अल्लाह ने अपने रसूल को हक़ के साथ सच्चा स्वप्न दिखाया, "यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम अवश्य मस्जिदे हराम (काबा) में प्रवेश करोगे बेखटके, अपने सिर के बाल मुड़ाते और कतरवाते हुए, तुम्हें कोई भय न होगा।" हुआ यह कि उसने वह बात जान ली जो तुमने नहीं जानी। अतः इससे पहले उसने शीघ्र प्राप्त होनेवाली विजय तुम्हारे लिए निश्चिंत कर दी |
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4611 | 48 | 28 | هو الذي أرسل رسوله بالهدى ودين الحق ليظهره على الدين كله وكفى بالله شهيدا |
| | | वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा, ताकि उसे पूरे के पूरे धर्म पर प्रभुत्व प्रदान करे और गवाह की हैसियत से अल्लाह काफ़ी है |
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4612 | 48 | 29 | محمد رسول الله والذين معه أشداء على الكفار رحماء بينهم تراهم ركعا سجدا يبتغون فضلا من الله ورضوانا سيماهم في وجوههم من أثر السجود ذلك مثلهم في التوراة ومثلهم في الإنجيل كزرع أخرج شطأه فآزره فاستغلظ فاستوى على سوقه يعجب الزراع ليغيظ بهم الكفار وعد الله الذين آمنوا وعملوا الصالحات منهم مغفرة وأجرا عظيما |
| | | अल्लाह के रसूल मुहम्मद और जो लोग उनके साथ हैं, वे इनकार करनेवालों पर भारी हैं, आपस में दयालु है। तुम उन्हें रुकू में, सजदे में, अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता चाहते हुए देखोगे। वे अपने चहरों से पहचाने जाते हैं जिनपर सजदों का प्रभाव है। यही उनकी विशेषता तौरात में और उनकी विशेषता इंजील में उस खेती की तरह उल्लिखित है जिसने अपना अंकुर निकाला; फिर उसे शक्ति पहुँचाई तो वह मोटा हुआ और वह अपने तने पर सीधा खड़ा हो गया। खेती करनेवालों को भा रहा है, ताकि उनसे इनकार करनेवालों का भी जी जलाए। उनमें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह ने क्षमा और बदले का वादा किया है |
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4613 | 49 | 1 | بسم الله الرحمن الرحيم يا أيها الذين آمنوا لا تقدموا بين يدي الله ورسوله واتقوا الله إن الله سميع عليم |
| | | ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढो और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह सुनता, जानता है |
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4614 | 49 | 2 | يا أيها الذين آمنوا لا ترفعوا أصواتكم فوق صوت النبي ولا تجهروا له بالقول كجهر بعضكم لبعض أن تحبط أعمالكم وأنتم لا تشعرون |
| | | ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम अपनी आवाज़ों को नबी की आवाज़ से ऊँची न करो। और जिस तरह तुम आपस में एक-दूसरे से ज़ोर से बोलते हो, उससे ऊँची आवाज़ में बात न करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म अकारथ हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो |
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