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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
453 | 3 | 160 | إن ينصركم الله فلا غالب لكم وإن يخذلكم فمن ذا الذي ينصركم من بعده وعلى الله فليتوكل المؤمنون |
| | | यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो कोई तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। और यदि वह तुम्हें छोड़ दे, तो फिर कौन हो जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके। अतः ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए |
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454 | 3 | 161 | وما كان لنبي أن يغل ومن يغلل يأت بما غل يوم القيامة ثم توفى كل نفس ما كسبت وهم لا يظلمون |
| | | यह किसी नबी के लिए सम्भब नहीं कि वह दिल में कीना-कपट रखे, और जो कोई कीना-कपट रखेगा तो वह क़ियामत के दिन अपने द्वेष समेत हाज़िर होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएँगा और उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा |
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455 | 3 | 162 | أفمن اتبع رضوان الله كمن باء بسخط من الله ومأواه جهنم وبئس المصير |
| | | भला क्या जो व्यक्ति अल्लाह की इच्छा पर चले वह उस जैसा हो सकता है जो अल्लाह के प्रकोप का भागी हो चुका हो और जिसका ठिकाना जहन्नम है? और वह क्या ही बुरा ठिकाना है |
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456 | 3 | 163 | هم درجات عند الله والله بصير بما يعملون |
| | | अल्लाह के यहाँ उनके विभिन्न दर्जे है और जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह की स्पष्ट में है |
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457 | 3 | 164 | لقد من الله على المؤمنين إذ بعث فيهم رسولا من أنفسهم يتلو عليهم آياته ويزكيهم ويعلمهم الكتاب والحكمة وإن كانوا من قبل لفي ضلال مبين |
| | | निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों पर बड़ा उपकार किया, जबकि स्वयं उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया जो उन्हें आयतें सुनाता है और उन्हें निखारता है, और उन्हें किताब और हिक़मत (तत्वदर्शिता) का शिक्षा देता है, अन्यथा इससे पहले वे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए थे |
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458 | 3 | 165 | أولما أصابتكم مصيبة قد أصبتم مثليها قلتم أنى هذا قل هو من عند أنفسكم إن الله على كل شيء قدير |
| | | यह क्या कि जब तुम्हें एक मुसीबत पहुँची, जिसकी दोगुनी तुमने पहुँचाए, तो तुम कहने लगे कि, "यह कहाँ से आ गई?" कह दो, "यह तो तुम्हारी अपनी ओर से है, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" |
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459 | 3 | 166 | وما أصابكم يوم التقى الجمعان فبإذن الله وليعلم المؤمنين |
| | | और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है |
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460 | 3 | 167 | وليعلم الذين نافقوا وقيل لهم تعالوا قاتلوا في سبيل الله أو ادفعوا قالوا لو نعلم قتالا لاتبعناكم هم للكفر يومئذ أقرب منهم للإيمان يقولون بأفواههم ما ليس في قلوبهم والله أعلم بما يكتمون |
| | | और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि "आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।" उन्होंने कहा, "यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।" उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है |
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461 | 3 | 168 | الذين قالوا لإخوانهم وقعدوا لو أطاعونا ما قتلوا قل فادرءوا عن أنفسكم الموت إن كنتم صادقين |
| | | ये वही लोग है जो स्वयं तो बैठे रहे और अपने भाइयों के विषय में कहने लगे, "यदि वे हमारी बात मान लेते तो मारे न जाते।" कह तो, "अच्छा, यदि तुम सच्चे हो, तो अब तुम अपने ऊपर से मृत्यु को टाल देना।" |
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462 | 3 | 169 | ولا تحسبن الذين قتلوا في سبيل الله أمواتا بل أحياء عند ربهم يرزقون |
| | | तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं |
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