بسم الله الرحمن الرحيم

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ترتيب الآيةرقم السورةرقم الآيةالاية
389396إن أول بيت وضع للناس للذي ببكة مباركا وهدى للعالمين
लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो मक्के में है बड़ी (खैर व बरकत) वाला और सारे जहॉन के लोगों का रहनुमा
390397فيه آيات بينات مقام إبراهيم ومن دخله كان آمنا ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا ومن كفر فإن الله غني عن العالمين
इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़े और रौशन निशानियॉ हैं (उनमें से) मुक़ाम इबराहीम है (जहॉ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाख़िल हुआ अमन में आ गया और लोगों पर वाजिब है कि महज़ ख़ुदा के लिए ख़ानाए काबा का हज करें जिन्हे वहां तक पहुँचने की इस्तेताअत है और जिसने बावजूद कुदरत हज से इन्कार किया तो (याद रखे) कि ख़ुदा सारे जहॉन से बेपरवा है
391398قل يا أهل الكتاب لم تكفرون بآيات الله والله شهيد على ما تعملون
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब खुदा की आयतो से क्यो मुन्किर हुए जाते हो हालॉकि जो काम काज तुम करते हो खुदा को उसकी (पूरी) पूरी इत्तिला है
392399قل يا أهل الكتاب لم تصدون عن سبيل الله من آمن تبغونها عوجا وأنتم شهداء وما الله بغافل عما تعملون
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब दीदए दानिस्ता खुदा की (सीधी) राह में (नाहक़ की) कज़ी ढूंढो (ढूंढ) के ईमान लाने वालों को उससे क्यों रोकते हो ओर जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं है
3933100يا أيها الذين آمنوا إن تطيعوا فريقا من الذين أوتوا الكتاب يردوكم بعد إيمانكم كافرين
ऐ ईमान वालों अगर तुमने अहले किताब के किसी फ़िरके क़ा भी कहना माना तो (याद रखो कि) वह तुमको ईमान लाने के बाद (भी) फिर दुबारा काफ़िर बना छोडेंग़े
3943101وكيف تكفرون وأنتم تتلى عليكم آيات الله وفيكم رسوله ومن يعتصم بالله فقد هدي إلى صراط مستقيم
और (भला) तुम क्योंकर काफ़िर बन जाओगे हालॉकि तुम्हारे सामने ख़ुदा की आयतें (बराबर) पढ़ी जाती हैं और उसके रसूल (मोहम्मद) भी तुममें (मौजूद) हैं और जो शख्स ख़ुदा से वाबस्ता हो वह (तो) जरूर सीधी राह पर लगा दिया गया
3953102يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله حق تقاته ولا تموتن إلا وأنتم مسلمون
ऐ ईमान वालों ख़ुदा से डरो जितना उससे डरने का हक़ है और तुम (दीन) इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर हरगिज़ न मरना
3963103واعتصموا بحبل الله جميعا ولا تفرقوا واذكروا نعمت الله عليكم إذ كنتم أعداء فألف بين قلوبكم فأصبحتم بنعمته إخوانا وكنتم على شفا حفرة من النار فأنقذكم منها كذلك يبين الله لكم آياته لعلكم تهتدون
और तुम सब के सब (मिलकर) ख़ुदा की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे) के फूट न डालो और अपने हाल (ज़ार) पर ख़ुदा के एहसान को तो याद करो जब तुम आपस में (एक दूसरे के) दुश्मन थे तो ख़ुदा ने तुम्हारे दिलों में (एक दूसरे की) उलफ़त पैदा कर दी तो तुम उसके फ़ज़ल से आपस में भाई भाई हो गए और तुम गोया सुलगती हुईआग की भट्टी (दोज़ख) के लब पर (खडे) थे गिरना ही चाहते थे कि ख़ुदा ने तुमको उससे बचा लिया तो ख़ुदा अपने एहकाम यूं वाजेए करके बयान करता है ताकि तुम राहे रास्त पर आ जाओ
3973104ولتكن منكم أمة يدعون إلى الخير ويأمرون بالمعروف وينهون عن المنكر وأولئك هم المفلحون
और तुमसे एक गिरोह ऐसे (लोगों का भी) तो होना चाहिये जो (लोगों को) नेकी की तरफ़ बुलाए अच्छे काम का हुक्म दे और बुरे कामों से रोके और ऐसे ही लोग (आख़ेरत में) अपनी दिली मुरादें पायेंगे
3983105ولا تكونوا كالذين تفرقوا واختلفوا من بعد ما جاءهم البينات وأولئك لهم عذاب عظيم
और तुम (कहीं) उन लोगों के ऐसे न हो जाना जो आपस में फूट डाल कर बैठ रहे और रौशन (दलील) आने के बाद भी एक मुंह एक ज़बान न रहे और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा (भारी) अज़ाब है


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