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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3767 | 36 | 62 | ولقد أضل منكم جبلا كثيرا أفلم تكونوا تعقلون |
| | | और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे |
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3768 | 36 | 63 | هذه جهنم التي كنتم توعدون |
| | | ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था |
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3769 | 36 | 64 | اصلوها اليوم بما كنتم تكفرون |
| | | तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ |
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3770 | 36 | 65 | اليوم نختم على أفواههم وتكلمنا أيديهم وتشهد أرجلهم بما كانوا يكسبون |
| | | आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खुद उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें |
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3771 | 36 | 66 | ولو نشاء لطمسنا على أعينهم فاستبقوا الصراط فأنى يبصرون |
| | | और अगर हम चाहें तो उनकी ऑंखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे |
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3772 | 36 | 67 | ولو نشاء لمسخناهم على مكانتهم فما استطاعوا مضيا ولا يرجعون |
| | | और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें |
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3773 | 36 | 68 | ومن نعمره ننكسه في الخلق أفلا يعقلون |
| | | और हम जिस शख्स को (बहुत) ज्यादा उम्र देते हैं तो उसे ख़िलक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं |
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3774 | 36 | 69 | وما علمناه الشعر وما ينبغي له إن هو إلا ذكر وقرآن مبين |
| | | और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कुरान है |
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3775 | 36 | 70 | لينذر من كان حيا ويحق القول على الكافرين |
| | | ताकि जो ज़िन्दा (दिल आक़िल) हों उसे (अज़ाब से) डराए और काफ़िरों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे) |
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3776 | 36 | 71 | أولم يروا أنا خلقنا لهم مما عملت أيدينا أنعاما فهم لها مالكون |
| | | क्या उन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनके फायदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किए जिसे हमारी ही क़ुदरत ने बनाया तो ये लोग (ख्वाहमाख्वाह) उनके मालिक बन गए |
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