نتائج البحث: 6236
|
ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3765 | 36 | 60 | ألم أعهد إليكم يا بني آدم أن لا تعبدوا الشيطان إنه لكم عدو مبين |
| | | ऐ आदम की औलाद क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की परसतिश न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है |
|
3766 | 36 | 61 | وأن اعبدوني هذا صراط مستقيم |
| | | और ये कि (देखो) सिर्फ मेरी इबादत करना यही (नजात की) सीधी राह है |
|
3767 | 36 | 62 | ولقد أضل منكم جبلا كثيرا أفلم تكونوا تعقلون |
| | | और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे |
|
3768 | 36 | 63 | هذه جهنم التي كنتم توعدون |
| | | ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था |
|
3769 | 36 | 64 | اصلوها اليوم بما كنتم تكفرون |
| | | तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ |
|
3770 | 36 | 65 | اليوم نختم على أفواههم وتكلمنا أيديهم وتشهد أرجلهم بما كانوا يكسبون |
| | | आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खुद उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें |
|
3771 | 36 | 66 | ولو نشاء لطمسنا على أعينهم فاستبقوا الصراط فأنى يبصرون |
| | | और अगर हम चाहें तो उनकी ऑंखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे |
|
3772 | 36 | 67 | ولو نشاء لمسخناهم على مكانتهم فما استطاعوا مضيا ولا يرجعون |
| | | और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें |
|
3773 | 36 | 68 | ومن نعمره ننكسه في الخلق أفلا يعقلون |
| | | और हम जिस शख्स को (बहुत) ज्यादा उम्र देते हैं तो उसे ख़िलक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं |
|
3774 | 36 | 69 | وما علمناه الشعر وما ينبغي له إن هو إلا ذكر وقرآن مبين |
| | | और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कुरान है |
|