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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3743 | 36 | 38 | والشمس تجري لمستقر لها ذلك تقدير العزيز العليم |
| | | और (एक निशानी) आफताब है जो अपने एक ठिकाने पर चल रहा है ये (सबसे) ग़ालिब वाक़िफ (खुदा) का (बाँद्दा हुआ) अन्दाज़ा है |
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3744 | 36 | 39 | والقمر قدرناه منازل حتى عاد كالعرجون القديم |
| | | और हमने चाँद के लिए मंज़िलें मुक़र्रर कर दीं हैं यहाँ तक कि हिर फिर के (आख़िर माह में) खजूर की पुरानी टहनी का सा (पतला टेढ़ा) हो जाता है |
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3745 | 36 | 40 | لا الشمس ينبغي لها أن تدرك القمر ولا الليل سابق النهار وكل في فلك يسبحون |
| | | न तो आफताब ही से ये बन पड़ता है कि वह माहताब को जा ले और न रात ही दिन से आगे बढ़ सकती है (चाँद, सूरज, सितारे) हर एक अपने-अपने आसमान (मदार) में चक्कर लगा रहें हैं |
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3746 | 36 | 41 | وآية لهم أنا حملنا ذريتهم في الفلك المشحون |
| | | और उनके लिए (मेरी कुदरत) की एक निशानी ये है कि उनके बुर्ज़ुगों को (नूह की) भरी हुई कश्ती में सवार किया |
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3747 | 36 | 42 | وخلقنا لهم من مثله ما يركبون |
| | | और उस कशती के मिसल उन लोगों के वास्ते भी वह चीज़े (कशतियाँ) जहाज़ पैदा कर दी |
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3748 | 36 | 43 | وإن نشأ نغرقهم فلا صريخ لهم ولا هم ينقذون |
| | | जिन पर ये लोग सवार हुआ करते हैं और अगर हम चाहें तो उन सब लोगों को डुबा मारें फिर न कोई उन का फरियाद रस होगा और न वह लोग छुटकारा ही पा सकते हैं |
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3749 | 36 | 44 | إلا رحمة منا ومتاعا إلى حين |
| | | मगर हमारी मेहरबानी से और चूँकि एक (ख़ास) वक्त तक (उनको) चैन करने देना (मंज़ूर) है |
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3750 | 36 | 45 | وإذا قيل لهم اتقوا ما بين أيديكم وما خلفكم لعلكم ترحمون |
| | | और जब उन कुफ्फ़ार से कहा जाता है कि इस (अज़ाब से) बचो (हर वक्त तुम्हारे साथ-साथ) तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे (मौजूद) है ताकि तुम पर रहम किया जाए |
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3751 | 36 | 46 | وما تأتيهم من آية من آيات ربهم إلا كانوا عنها معرضين |
| | | (तो परवाह नहीं करते) और उनकी हालत ये है कि जब उनके परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उनके पास आयी तो ये लोग मुँह मोड़े बग़ैर कभी नहीं रहे |
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3752 | 36 | 47 | وإذا قيل لهم أنفقوا مما رزقكم الله قال الذين كفروا للذين آمنوا أنطعم من لو يشاء الله أطعمه إن أنتم إلا في ضلال مبين |
| | | और जब उन (कुफ्फ़ार) से कहा जाता है कि (माले दुनिया से) जो खुदा ने तुम्हें दिया है उसमें से कुछ (खुदा की राह में भी) ख़र्च करो तो (ये) कुफ्फ़ार ईमानवालों से कहते हैं कि भला हम उस शख्स को खिलाएँ जिसे (तुम्हारे ख्याल के मुवाफ़िक़) खुदा चाहता तो उसको खुद खिलाता कि तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो |
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