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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3632 | 34 | 26 | قل يجمع بيننا ربنا ثم يفتح بيننا بالحق وهو الفتاح العليم |
| | | (ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो कि हमारा परवरदिगार (क़यामत में) हम सबको इकट्ठा करेगा फिर हमारे दरमियान (ठीक) फैसला कर देगा और वह तो ठीक-ठीक फैसला करने वाला वाक़िफकार है |
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3633 | 34 | 27 | قل أروني الذين ألحقتم به شركاء كلا بل هو الله العزيز الحكيم |
| | | (ऐ रसूल तुम कह दो कि जिनको तुम ने खुदा का शरीक बनाकर) खुदा के साथ मिलाया है ज़रा उन्हें मुझे भी तो दिखा दो हरगिज़ (कोई शरीक नहीं) बल्कि खुदा ग़ालिब हिकमत वाला है |
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3634 | 34 | 28 | وما أرسلناك إلا كافة للناس بشيرا ونذيرا ولكن أكثر الناس لا يعلمون |
| | | (ऐ रसूल) हमने तुमको तमाम (दुनिया के) लोगों के लिए (नेकों को बेहश्त की) खुशखबरी देने वाला और (बन्दों को अज़ाब से) डराने वाला (पैग़म्बर) बनाकर भेजा मगर बहुतेरे लोग (इतना भी) नहीं जानते |
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3635 | 34 | 29 | ويقولون متى هذا الوعد إن كنتم صادقين |
| | | और (उलटे) कहते हैं कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (आख़िर) ये क़यामत का वायदा कब पूरा होगा |
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3636 | 34 | 30 | قل لكم ميعاد يوم لا تستأخرون عنه ساعة ولا تستقدمون |
| | | (ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि तुम लोगों के वास्ते एक ख़ास दिन की मीयाद मुक़र्रर है कि न तुम उससे एक घड़ी पीछे रह सकते हो और न आगे ही बड़ सकते हो |
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3637 | 34 | 31 | وقال الذين كفروا لن نؤمن بهذا القرآن ولا بالذي بين يديه ولو ترى إذ الظالمون موقوفون عند ربهم يرجع بعضهم إلى بعض القول يقول الذين استضعفوا للذين استكبروا لولا أنتم لكنا مؤمنين |
| | | और जो लोग काफिर हों बैठे कहते हैं कि हम तो न इस क़ुरान पर हरगिज़ ईमान लाएँगे और न उस (किताब) पर जो इससे पहले नाज़िल हो चुकी और (ऐ रसूल तुमको बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखो कि जब ये ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जायेंगे (और) उनमें का एक दूसरे की तरफ (अपनी) बात को फेरता होगा कि कमज़ोर अदना (दरजे के) लोग बड़े (सरकश) लोगों से कहते होगें कि अगर तुम (हमें) न (बहकाए) होते तो हम ज़रूर ईमानवाले होते (इस मुसीबत में न पड़ते) |
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3638 | 34 | 32 | قال الذين استكبروا للذين استضعفوا أنحن صددناكم عن الهدى بعد إذ جاءكم بل كنتم مجرمين |
| | | तो सरकश लोग कमज़ोरों से (मुख़ातिब होकर) कहेंगे कि जब तुम्हारे पास (खुदा की तरफ़ से) हिदायत आयी तो थी तो क्या उसके आने के बाद हमने तुमको (ज़बरदस्ती अम्ल करने से) रोका था (हरगिज़ नहीं) बल्कि तुम तो खुद मुजरिम थे |
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3639 | 34 | 33 | وقال الذين استضعفوا للذين استكبروا بل مكر الليل والنهار إذ تأمروننا أن نكفر بالله ونجعل له أندادا وأسروا الندامة لما رأوا العذاب وجعلنا الأغلال في أعناق الذين كفروا هل يجزون إلا ما كانوا يعملون |
| | | और कमज़ोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे (कि ज़बरदस्ती तो नहीं की मगर हम खुद भी गुमराह नहीं हुए) बल्कि (तुम्हारी) रात-दिन की फरेबदेही ने (गुमराह किया कि) तुम लोग हमको खुदा न मानने और उसका शरीक ठहराने का बराबर हुक्म देते रहे (तो हम क्या करते) और जब ये लोग अज़ाब को (अपनी ऑंखों से) देख लेंगे तो दिल ही दिल में पछताएँगे और जो लोग काफिर हो बैठे हम उनकी गर्दनों में तौक़ डाल देंगे जो कारस्तानियां ये लोग (दुनिया में) करते थे उसी के मुवाफिक़ तो सज़ा दी जाएगी |
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3640 | 34 | 34 | وما أرسلنا في قرية من نذير إلا قال مترفوها إنا بما أرسلتم به كافرون |
| | | और हमने किसी बस्ती में कोई डराने वाला पैग़म्बर नहीं भेजा मगर वहाँ के लोग ये ज़रूर बोल उठेंगे कि जो एहकाम देकर तुम भेजे गए हो हम उनको नहीं मानते |
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3641 | 34 | 35 | وقالوا نحن أكثر أموالا وأولادا وما نحن بمعذبين |
| | | और ये भी कहने लगे कि हम तो (ईमानदारों से) माल और औलाद में कहीं ज्यादा है और हम पर आख़ेरत में (अज़ाब) भी नहीं किया जाएगा |
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