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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3564 | 33 | 31 | ومن يقنت منكن لله ورسوله وتعمل صالحا نؤتها أجرها مرتين وأعتدنا لها رزقا كريما |
| | | और तुममें से जो (बीवी) खुदा और उसके रसूल की ताबेदारी अच्छे (अच्छे) काम करेगी उसको हम उसका सवाब भी दोहरा अता करेगें और हमने उसके लिए (जन्नत में) इज्ज़त की रोज़ी तैयार कर रखी है |
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3565 | 33 | 32 | يا نساء النبي لستن كأحد من النساء إن اتقيتن فلا تخضعن بالقول فيطمع الذي في قلبه مرض وقلن قولا معروفا |
| | | ऐ नबी की बीवियों तुम और मामूली औरतों की सी तो हो वही (बस) अगर तुम को परहेज़गारी मंजूर रहे तो (अजनबी आदमी से) बात करने में नरम नरम (लगी लिपटी) बात न करो ताकि जिसके दिल में (शहवते ज़िना का) मर्ज़ है वह (कुछ और) इरादा (न) करे |
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3566 | 33 | 33 | وقرن في بيوتكن ولا تبرجن تبرج الجاهلية الأولى وأقمن الصلاة وآتين الزكاة وأطعن الله ورسوله إنما يريد الله ليذهب عنكم الرجس أهل البيت ويطهركم تطهيرا |
| | | और (साफ-साफ) उनवाने शाइस्ता से बात किया करो और अपने घरों में निचली बैठी रहो और अगले ज़माने जाहिलियत की तरह अपना बनाव सिंगार न दिखाती फिरो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और (बराबर) ज़कात दिया करो और खुदा और उसके रसूल की इताअत करो ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत खुदा तो बस ये चाहता है कि तुमको (हर तरह की) बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा दिखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे |
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3567 | 33 | 34 | واذكرن ما يتلى في بيوتكن من آيات الله والحكمة إن الله كان لطيفا خبيرا |
| | | और (ऐ नबी की बीबियों) तुम्हारे घरों में जो खुदा की आयतें और (अक़ल व हिकमत की बातें) पढ़ी जाती हैं उनको याद रखो कि बेशक ख़ुदा बड़ा बारीक है वाक़िफकार है |
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3568 | 33 | 35 | إن المسلمين والمسلمات والمؤمنين والمؤمنات والقانتين والقانتات والصادقين والصادقات والصابرين والصابرات والخاشعين والخاشعات والمتصدقين والمتصدقات والصائمين والصائمات والحافظين فروجهم والحافظات والذاكرين الله كثيرا والذاكرات أعد الله لهم مغفرة وأجرا عظيما |
| | | (दिल लगा के सुनो) मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें और फरमाबरदार मर्द और फरमाबरदार औरतें और रास्तबाज़ मर्द और रास्तबाज़ औरतें और सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें और फिरौतनी करने वाले मर्द और फिरौतनी करने वाली औरतें और Âैरात करने वाले मर्द और Âैरात करने वाली औरतें और रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले मर्द और हिफाज़त करने वाली औरतें और खुदा की बकसरत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें बेशक इन सब लोगों के वास्ते खुदा ने मग़फिरत और (बड़ा) सवाब मुहैय्या कर रखा है |
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3569 | 33 | 36 | وما كان لمؤمن ولا مؤمنة إذا قضى الله ورسوله أمرا أن يكون لهم الخيرة من أمرهم ومن يعص الله ورسوله فقد ضل ضلالا مبينا |
| | | और न किसी ईमानदार मर्द को ये मुनासिब है और न किसी ईमानदार औरत को जब खुदा और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें तो उनको अपने उस काम (के करने न करने) अख़तेयार हो और (याद रहे कि) जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की वह यक़ीनन खुल्लम खुल्ला गुमराही में मुब्तिला हो चुका |
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3570 | 33 | 37 | وإذ تقول للذي أنعم الله عليه وأنعمت عليه أمسك عليك زوجك واتق الله وتخفي في نفسك ما الله مبديه وتخشى الناس والله أحق أن تخشاه فلما قضى زيد منها وطرا زوجناكها لكي لا يكون على المؤمنين حرج في أزواج أدعيائهم إذا قضوا منهن وطرا وكان أمر الله مفعولا |
| | | और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब तुम उस शख्स (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर खुदा ने एहसान (अलग) किया था और तुमने उस पर (अलग) एहसान किया था कि अपनी बीबी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौज़ियत में रहने दे और खुदा से डेर खुद तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिसको (आख़िरकार) खुदा ज़ाहिर करने वाला था और तुम लोगों से डरते थे हालॉकि खुदा इसका ज्यादा हक़दार है कि तुम उस से डरो ग़रज़ जब ज़ैद अपनी हाजत पूरी कर चुका (तलाक़ दे दी) तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह तुमसे कर दिया ताकि आम मोमिनीन को अपने ले पालक लड़कों की बीवियों (से निकाह करने) में जब वह अपना मतलब उन औरतों से पूरा कर चुकें (तलाक़ दे दें) किसी तरह की तंगी न रहे और खुदा का हुक्म तो किया कराया हुआ (क़तई) होता है |
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3571 | 33 | 38 | ما كان على النبي من حرج فيما فرض الله له سنة الله في الذين خلوا من قبل وكان أمر الله قدرا مقدورا |
| | | जो हुक्म खुदा ने पैग़म्बर पर फर्ज क़र दिया (उसके करने) में उस पर कोई मुज़ाएका नहीं जो लोग (उनसे) पहले गुज़र चुके हैं उनके बारे में भी खुदा का (यही) दस्तूर (जारी) रहा है (कि निकाह में तंगी न की) और खुदा का हुक्म तो (ठीक अन्दाज़े से) मुक़र्रर हुआ होता है |
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3572 | 33 | 39 | الذين يبلغون رسالات الله ويخشونه ولا يخشون أحدا إلا الله وكفى بالله حسيبا |
| | | वह लोग जो खुदा के पैग़ामों को (लोगों तक जूँ का तूँ) पहुँचाते थे और उससे डरते थे और खुदा के सिवा किसी से नहीं डरते थे (फिर तुम क्यों डरते हो) और हिसाब लेने के वास्ते तो खुद काफ़ी है |
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3573 | 33 | 40 | ما كان محمد أبا أحد من رجالكم ولكن رسول الله وخاتم النبيين وكان الله بكل شيء عليما |
| | | (लोगों) मोहम्मद तुम्हारे मर्दों में से (हक़ीक़तन) किसी के बाप नहीं हैं (फिर जैद की बीवी क्यों हराम होने लगी) बल्कि अल्लाह के रसूल और नबियों की मोहर (यानी ख़त्म करने वाले) हैं और खुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है |
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