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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3441 | 30 | 32 | من الذين فرقوا دينهم وكانوا شيعا كل حزب بما لديهم فرحون |
| | | जिन्होंने अपने (असली) दीन में तफरेक़ा परवाज़ी की और मुख्तलिफ़ फिरके क़े बन गए जो (दीन) जिस फिरके क़े पास है उसी में निहाल है |
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3442 | 30 | 33 | وإذا مس الناس ضر دعوا ربهم منيبين إليه ثم إذا أذاقهم منه رحمة إذا فريق منهم بربهم يشركون |
| | | और जब लोगों को कोई मुसीबत छू भी गयी तो उसी की तरफ रुजू होकर अपने परवरदिगार को पुकारने लगते हैं फिर जब वह अपनी रहमत की लज्ज़त चखा देता है तो उन्हीं में से कुछ लोग अपने परवरदिगार के साथ शिर्क करने लगते हैं |
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3443 | 30 | 34 | ليكفروا بما آتيناهم فتمتعوا فسوف تعلمون |
| | | ताकि जो (नेअमत) हमने उन्हें दी है उसकी नाशुक्री करें ख़ैर (दुनिया में चन्दरोज़ चैन कर लो) फिर तो बहुत जल्द (अपने किए का मज़ा) तुम्हे मालूम ही होगा |
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3444 | 30 | 35 | أم أنزلنا عليهم سلطانا فهو يتكلم بما كانوا به يشركون |
| | | क्या हमने उन लोगों पर कोई दलील नाज़िल की है जो उस (के हक़ होने) को बयान करती है जिसे ये लोग ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं (हरग़िज नहीं) |
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3445 | 30 | 36 | وإذا أذقنا الناس رحمة فرحوا بها وإن تصبهم سيئة بما قدمت أيديهم إذا هم يقنطون |
| | | और जब हमने लोगों को (अपनी रहमत की लज्ज़त) चखा दी तो वह उससे खुश हो गए और जब उन्हें अपने हाथों की अगली कारसतानियो की बदौलत कोई मुसीबत पहुँची तो यकबारगी मायूस होकर बैठे रहते हैं |
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3446 | 30 | 37 | أولم يروا أن الله يبسط الرزق لمن يشاء ويقدر إن في ذلك لآيات لقوم يؤمنون |
| | | क्या उन लोगों ने (इतना भी) ग़ौर नहीं किया कि खुदा ही जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और (जिसकी चाहता है) तंग करता है-कुछ शक नहीं कि इसमें ईमानरदार लोगों के वास्ते (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं |
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3447 | 30 | 38 | فآت ذا القربى حقه والمسكين وابن السبيل ذلك خير للذين يريدون وجه الله وأولئك هم المفلحون |
| | | (तो ऐ रसूल अपनी) क़राबतदार (फातिमा ज़हरा) का हक़ फिदक दे दो और मोहताज व परदेसियों का (भी) जो लोग ख़ुदा की ख़ुशनूदी के ख्वाहॉ हैं उन के हक़ में सब से बेहतर यही है और ऐसे ही लोग आखेरत में दिली मुरादे पाएँगें |
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3448 | 30 | 39 | وما آتيتم من ربا ليربو في أموال الناس فلا يربو عند الله وما آتيتم من زكاة تريدون وجه الله فأولئك هم المضعفون |
| | | और तुम लोग जो सूद देते हो ताकि लोगों के माल (दौलत) में तरक्क़ी हो तो (याद रहे कि ऐसा माल) ख़ुदा के यहॉ फूलता फलता नही और तुम लोग जो ख़ुदा की ख़ुशनूदी के इरादे से ज़कात देते हो तो ऐसे ही लोग (ख़ुदा की बारगाह से) दूना दून लेने वाले हैं |
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3449 | 30 | 40 | الله الذي خلقكم ثم رزقكم ثم يميتكم ثم يحييكم هل من شركائكم من يفعل من ذلكم من شيء سبحانه وتعالى عما يشركون |
| | | ख़ुदा वह (क़ादिर तवाना है) जिसने तुमको पैदा किया फिर उसी ने रोज़ी दी फिर वही तुमको मार डालेगा फिर वही तुमको (दोबारा) ज़िन्दा करेगा भला तुम्हारे (बनाए हुए ख़ुदा के) शरीकों में से कोई भी ऐसा है जो इन कामों में से कुछ भी कर सके जिसे ये लोग (उसका) शरीक बनाते हैं |
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3450 | 30 | 41 | ظهر الفساد في البر والبحر بما كسبت أيدي الناس ليذيقهم بعض الذي عملوا لعلهم يرجعون |
| | | वह उससे पाक व पाकीज़ा और बरतर है ख़़ुद लोगों ही के अपने हाथों की कारस्तानियों की बदौलत ख़ुश्क व तर में फसाद फैल गया ताकि जो कुछ ये लोग कर चुके हैं ख़ुदा उन को उनमें से बाज़ करतूतों का मज़ा चखा दे ताकि ये लोग अब भी बाज़ आएँ |
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