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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3434 | 30 | 25 | ومن آياته أن تقوم السماء والأرض بأمره ثم إذا دعاكم دعوة من الأرض إذا أنتم تخرجون |
| | | और उसी की (क़ुदरत की) निशानियों में से एक ये भी है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं फिर (मरने के बाद) जिस वक्त तुमको एक बार बुलाएगा तो तुम सबके सब ज़मीन से (ज़िन्दा हो होकर) निकल पड़ोगे |
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3435 | 30 | 26 | وله من في السماوات والأرض كل له قانتون |
| | | और जो लोग आसमानों में है सब उसी के है और सब उसी के ताबेए फरमान हैं |
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3436 | 30 | 27 | وهو الذي يبدأ الخلق ثم يعيده وهو أهون عليه وله المثل الأعلى في السماوات والأرض وهو العزيز الحكيم |
| | | और वह ऐसा (क़ादिरे मुत्तालिक़ है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करता है फिर दोबारा (क़यामत के दिन) पैदा करेगा और ये उस पर बहुत आसान है और सारे आसमान व जमीन सबसे बालातर उसी की शान है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है |
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3437 | 30 | 28 | ضرب لكم مثلا من أنفسكم هل لكم من ما ملكت أيمانكم من شركاء في ما رزقناكم فأنتم فيه سواء تخافونهم كخيفتكم أنفسكم كذلك نفصل الآيات لقوم يعقلون |
| | | और हमने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) तुम्हारी ही एक मिसाल बयान की है हमने जो कुछ तुम्हे अता किया है क्या उसमें तुम्हारी लौन्डी गुलामों में से कोई (भी) तुम्हारा शरीक है कि (वह और) तुम उसमें बराबर हो जाओ (और क्या) तुम उनसे ऐसा ही ख़ौफ रखते हो जितना तुम्हें अपने लोगों का (हक़ हिस्सा न देने में) ख़ौफ होता है फिर बन्दों को खुदा का शरीक क्यों बनाते हो) अक्ल मन्दों के वास्ते हम यूँ अपनी आयतों को तफसीलदार बयान करते हैं |
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3438 | 30 | 29 | بل اتبع الذين ظلموا أهواءهم بغير علم فمن يهدي من أضل الله وما لهم من ناصرين |
| | | मगर सरकशों ने तो बगैर समझे बूझे अपनी नफसियानी ख्वाहिशों की पैरवी कर ली (और ख़ुदा का शरीक ठहरा दिया) ग़रज़ ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे (फिर) उसे कौन राहे रास्त पर ला सकता है और उनका कोई मददगार (भी) नहीं |
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3439 | 30 | 30 | فأقم وجهك للدين حنيفا فطرت الله التي فطر الناس عليها لا تبديل لخلق الله ذلك الدين القيم ولكن أكثر الناس لا يعلمون |
| | | तो (ऐ रसूल) तुम बातिल से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ किए रहो यही ख़ुदा की बनावट है जिस पर उसने लोगों को पैदा किया है ख़ुदा की (दुरुस्त की हुई) बनावट में तग़य्युर तबद्दुल (उलट फेर) नहीं हो सकता यही मज़बूत और (बिल्कुल सीधा) दीन है मगर बहुत से लोग नहीं जानते हैं |
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3440 | 30 | 31 | منيبين إليه واتقوه وأقيموا الصلاة ولا تكونوا من المشركين |
| | | उसी की तरफ रुजू होकर (ख़ुदा की इबादत करो) और उसी से डरते रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और मुशरेकीन से न हो जाना |
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3441 | 30 | 32 | من الذين فرقوا دينهم وكانوا شيعا كل حزب بما لديهم فرحون |
| | | जिन्होंने अपने (असली) दीन में तफरेक़ा परवाज़ी की और मुख्तलिफ़ फिरके क़े बन गए जो (दीन) जिस फिरके क़े पास है उसी में निहाल है |
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3442 | 30 | 33 | وإذا مس الناس ضر دعوا ربهم منيبين إليه ثم إذا أذاقهم منه رحمة إذا فريق منهم بربهم يشركون |
| | | और जब लोगों को कोई मुसीबत छू भी गयी तो उसी की तरफ रुजू होकर अपने परवरदिगार को पुकारने लगते हैं फिर जब वह अपनी रहमत की लज्ज़त चखा देता है तो उन्हीं में से कुछ लोग अपने परवरदिगार के साथ शिर्क करने लगते हैं |
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3443 | 30 | 34 | ليكفروا بما آتيناهم فتمتعوا فسوف تعلمون |
| | | ताकि जो (नेअमत) हमने उन्हें दी है उसकी नाशुक्री करें ख़ैर (दुनिया में चन्दरोज़ चैन कर लो) फिर तो बहुत जल्द (अपने किए का मज़ा) तुम्हे मालूम ही होगा |
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