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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3329 | 28 | 77 | وابتغ فيما آتاك الله الدار الآخرة ولا تنس نصيبك من الدنيا وأحسن كما أحسن الله إليك ولا تبغ الفساد في الأرض إن الله لا يحب المفسدين |
| | | जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उसमें आख़िरत के घर का निर्माण कर और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल, और भलाई कर, जैसा कि अल्लाह ने तेरे साथ भलाई की है, और धरती का बिगाड़ मत चाह। निश्चय ही अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों को पसन्द नहीं करता।" |
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3330 | 28 | 78 | قال إنما أوتيته على علم عندي أولم يعلم أن الله قد أهلك من قبله من القرون من هو أشد منه قوة وأكثر جمعا ولا يسأل عن ذنوبهم المجرمون |
| | | उसने कहा, "मुझे तो यह मेरे अपने व्यक्तिगत ज्ञान के कारण मिला है।" क्या उसने यह नहीं जाना कि अल्लाह उससे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुका है जो शक्ति में उससे बढ़-चढ़कर और बाहुल्य में उससे अधिक थीं? अपराधियों से तो (उनकी तबाही के समय) उनके गुनाहों के विषय में पूछा भी नहीं जाता |
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3331 | 28 | 79 | فخرج على قومه في زينته قال الذين يريدون الحياة الدنيا يا ليت لنا مثل ما أوتي قارون إنه لذو حظ عظيم |
| | | फिर वह अपनी क़ौम के सामने अपने ठाठ-बाट में निकला। जो लोग सांसारिक जीवन के चाहनेवाले थे, उन्होंने कहा, "क्या ही अच्छा होता जैसा कुछ क़ारून को मिला है, हमें भी मिला होता! वह तो बड़ा ही भाग्यशाली है।" |
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3332 | 28 | 80 | وقال الذين أوتوا العلم ويلكم ثواب الله خير لمن آمن وعمل صالحا ولا يلقاها إلا الصابرون |
| | | किन्तु जिनको ज्ञान प्राप्त था, उन्होंने कहा, "अफ़सोस तुमपर! अल्लाह का प्रतिदान उत्तम है, उस व्यक्ति के लिए जो ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, और यह बात उन्हीम के दिलों में पड़ती है जो धैर्यवान होते है।" |
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3333 | 28 | 81 | فخسفنا به وبداره الأرض فما كان له من فئة ينصرونه من دون الله وما كان من المنتصرين |
| | | अन्ततः हमने उसको और उसके घर को धरती में धँसा दिया। और कोई ऐसा गिरोह न हुआ जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी सहायता करता, और न वह स्वयं अपना बचाव कर सका |
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3334 | 28 | 82 | وأصبح الذين تمنوا مكانه بالأمس يقولون ويكأن الله يبسط الرزق لمن يشاء من عباده ويقدر لولا أن من الله علينا لخسف بنا ويكأنه لا يفلح الكافرون |
| | | अब वही लोग, जो कल उसके पद की कामना कर रहे थे, कहने लगें, "अफ़सोस हम भूल गए थे कि अल्लाह अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा करता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है। यदि अल्लाह ने हमपर उपकार न किया होता तो हमें भी धँसा देता। अफ़सोस हम भूल गए थे कि इनकार करनेवाले सफल नहीं हुआ करते।" |
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3335 | 28 | 83 | تلك الدار الآخرة نجعلها للذين لا يريدون علوا في الأرض ولا فسادا والعاقبة للمتقين |
| | | आख़िरत का घर हम उन लोगों के लिए ख़ास कर देंगे जो न धरती में अपनी बड़ाई चाहते है और न बिगाड़। परिणाम तो अन्ततः डर रखनेवालों के पक्ष में है |
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3336 | 28 | 84 | من جاء بالحسنة فله خير منها ومن جاء بالسيئة فلا يجزى الذين عملوا السيئات إلا ما كانوا يعملون |
| | | जो कोई अच्छा आचारण लेकर आया उसे उससे उत्तम प्राप्त होगा, और जो बुरा आचरण लेकर आया तो बुराइयाँ करनेवालों को तो वस वही मिलेगा जो वे करते थे |
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3337 | 28 | 85 | إن الذي فرض عليك القرآن لرادك إلى معاد قل ربي أعلم من جاء بالهدى ومن هو في ضلال مبين |
| | | जिसने इस क़ुरआन की ज़िम्मेदारी तुमपर डाली है, वह तुम्हें उसके (अच्छे) अंजाम तक ज़रूर पहुँचाएगा। कहो, "मेरा रब उसे भली-भाँति जानता है जो मार्गदर्शन लेकर आया, और उसे भी जो खुली गुमराही में पड़ा है।" |
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3338 | 28 | 86 | وما كنت ترجو أن يلقى إليك الكتاب إلا رحمة من ربك فلا تكونن ظهيرا للكافرين |
| | | तुम तो इसकी आशा नहीं रखते थे कि तुम्हारी ओर किताब उतारी जाएगी। इसकी संभावना तो केवल तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुई। अतः तुम इनकार करनेवालों के पृष्ठपोषक न बनो |
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