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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3265 | 28 | 13 | فرددناه إلى أمه كي تقر عينها ولا تحزن ولتعلم أن وعد الله حق ولكن أكثرهم لا يعلمون |
| | | ग़रज़ (इस तरकीब से) हमने मूसा को उसकी माँ तक फिर पहुँचा दिया ताकि उसकी ऑंख ठन्डी हो जाए और रंज न करे और ताकि समझ ले ख़ुदा का वायदा बिल्कुल ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते हैं |
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3266 | 28 | 14 | ولما بلغ أشده واستوى آتيناه حكما وعلما وكذلك نجزي المحسنين |
| | | और जब मूसा अपनी जवानी को पहुँचे और (हाथ पाँव निकाल के) दुरुस्त हो गए तो हमने उनको हिकमत और इल्म अता किया और नेकी करने वालों को हम यूँ जज़ाए खैर देते हैं |
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3267 | 28 | 15 | ودخل المدينة على حين غفلة من أهلها فوجد فيها رجلين يقتتلان هذا من شيعته وهذا من عدوه فاستغاثه الذي من شيعته على الذي من عدوه فوكزه موسى فقضى عليه قال هذا من عمل الشيطان إنه عدو مضل مبين |
| | | और एक दिन इत्तिफाक़न मूसा शहर में ऐसे वक्त अाए कि वहाँ के लोग (नींद की) ग़फलत में पडे हुए थे तो देखा कि वहाँ दो आदमी आपस में लड़े मरते हैं ये (एक) तो उनकी क़ौम (बनी इसराइल) में का है और वह (दूसरा) उनके दुश्मन की क़ौम (क़िब्ती) का है तो जो शख्स उनकी क़ौम का था उसने उस शख्स से जो उनके दुश्मनों में था (ग़लबा हासिल करने के लिए) मूसा से मदद माँगी ये सुनते ही मूसा ने उसे एक घूसा मारा था कि उसका काम तमाम हो गया फिर (ख्याल करके) कहने लगे ये शैतान का काम था इसमें शक नहीं कि वह दुश्मन और खुल्लम खुल्ला गुमराह करने वाला है |
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3268 | 28 | 16 | قال رب إني ظلمت نفسي فاغفر لي فغفر له إنه هو الغفور الرحيم |
| | | (फिर बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार बेशक मैने अपने ऊपर आप ज़ुल्म किया (कि इस शहर में आया) तो तू मुझे (दुश्मनों से) पोशीदा रख-ग़रज़ ख़ुदा ने उन्हें पोशीदा रखा (इसमें तो शक नहीं कि वह बड़ा पोशीदा रखने वाला मेहरबान है) |
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3269 | 28 | 17 | قال رب بما أنعمت علي فلن أكون ظهيرا للمجرمين |
| | | मूसा ने अर्ज क़ी परवरदिगार चूँकि तूने मुझ पर एहसान किया है मै भी आइन्दा गुनाहगारों का हरगिज़ मदद गार न बनूगाँ |
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3270 | 28 | 18 | فأصبح في المدينة خائفا يترقب فإذا الذي استنصره بالأمس يستصرخه قال له موسى إنك لغوي مبين |
| | | ग़रज़ (रात तो जो त्यों गुज़री) सुबह को उम्मीदो बीम की हालत में मूसा शहर में गए तो क्या देखते हैं कि वही शख्स जिसने कल उनसे मदद माँगी थी उनसे (फिर) फरियाद कर रहा है-मूसा ने उससे कहा बेशक तू यक़ीनी खुल्लम खुल्ला गुमराह है |
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3271 | 28 | 19 | فلما أن أراد أن يبطش بالذي هو عدو لهما قال يا موسى أتريد أن تقتلني كما قتلت نفسا بالأمس إن تريد إلا أن تكون جبارا في الأرض وما تريد أن تكون من المصلحين |
| | | ग़रज़ जब मूसा ने चाहा कि उस शख्स पर जो दोनों का दुश्मन था (छुड़ाने के लिए) हाथ बढ़ाएँ तो क़िब्ती कहने लगा कि ऐ मूसा जिस तरह तुमने कल एक आदमी को मार डाला (उसी तरह) मुझे भी मार डालना चाहते हो तो तुम बस ये चाहते हो कि रुए ज़मीन में सरकश बन कर रहो और मसलह (क़ौम) बनकर रहना नहीं चाहते |
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3272 | 28 | 20 | وجاء رجل من أقصى المدينة يسعى قال يا موسى إن الملأ يأتمرون بك ليقتلوك فاخرج إني لك من الناصحين |
| | | और एक शख्स शहर के उस किनारे से डराता हुआ आया और (मूसा से) कहने लगा मूसा (तुम ये यक़ीन जानो कि शहर के) बड़े बड़े आदमी तुम्हारे आदमी तुम्हारे बारे में मशवरा कर रहे हैं कि तुमको कत्ल कर डालें तो तुम (शहर से) निकल भागो |
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3273 | 28 | 21 | فخرج منها خائفا يترقب قال رب نجني من القوم الظالمين |
| | | मै तुमसे ख़ैरख्वाहाना (भलाइ के लिए) कहता हूँ ग़रज़ मूसा वहाँ से उम्मीद व बीम की हालत में निकल खडे हुए और (बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार मुझे ज़ालिम लोगों (के हाथ) से नजात दे |
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3274 | 28 | 22 | ولما توجه تلقاء مدين قال عسى ربي أن يهديني سواء السبيل |
| | | और जब मदियन की तरफ रुख़ किया (और रास्ता मालूम न था) तो आप ही आप बोले मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधे रास्ता दिखा दे |
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