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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
3210 | 27 | 51 | فانظر كيف كان عاقبة مكرهم أنا دمرناهم وقومهم أجمعين |
| | | तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला |
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3211 | 27 | 52 | فتلك بيوتهم خاوية بما ظلموا إن في ذلك لآية لقوم يعلمون |
| | | ये बस उनके घर हैं कि उनकी नाफरमानियों की वज़ह से ख़ाली वीरान पड़े हैं इसमे शक नही कि उस वाक़िये में वाक़िफ कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है |
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3212 | 27 | 53 | وأنجينا الذين آمنوا وكانوا يتقون |
| | | और हमने उन लोगों को जो ईमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया |
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3213 | 27 | 54 | ولوطا إذ قال لقومه أتأتون الفاحشة وأنتم تبصرون |
| | | और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम देखभाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो |
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3214 | 27 | 55 | أئنكم لتأتون الرجال شهوة من دون النساء بل أنتم قوم تجهلون |
| | | क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवत से मर्दों के आते हो (ये तुम अच्छा नहीं करते) बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ जवाब न था |
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3215 | 27 | 56 | فما كان جواب قومه إلا أن قالوا أخرجوا آل لوط من قريتكم إنهم أناس يتطهرون |
| | | कि वह लोग बोल उठे कि लूत के खानदान को अपनी बस्ती (सदूम) से निकाल बाहर करो ये लोग बड़े पाक साफ बनना चाहते हैं |
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3216 | 27 | 57 | فأنجيناه وأهله إلا امرأته قدرناها من الغابرين |
| | | ग़रज हमने लूत को और उनके ख़ानदान को बचा लिया मगर उनकी बीवी कि हमने उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों में लिख दिया था |
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3217 | 27 | 58 | وأمطرنا عليهم مطرا فساء مطر المنذرين |
| | | और (फिर तो) हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा |
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3218 | 27 | 59 | قل الحمد لله وسلام على عباده الذين اصطفى آلله خير أما يشركون |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक़ होने पर) खुदा का शुक्र और उसके बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे ये लोग शरीके ख़ुदा कहते हैं |
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3219 | 27 | 60 | أمن خلق السماوات والأرض وأنزل لكم من السماء ماء فأنبتنا به حدائق ذات بهجة ما كان لكم أن تنبتوا شجرها أإله مع الله بل هم قوم يعدلون |
| | | भला वह कौन है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे वास्ते आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने पानी से दिल चस्प (ख़ुशनुमा) बाग़ उठाए तुम्हारे तो ये बस की बात न थी कि तुम उनके दरख्तों को उगा सकते तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि ये लोग खुद अपने जी से गढ़ के बुतो को उसके बराबर बनाते हैं |
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