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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
321 | 3 | 28 | لا يتخذ المؤمنون الكافرين أولياء من دون المؤمنين ومن يفعل ذلك فليس من الله في شيء إلا أن تتقوا منهم تقاة ويحذركم الله نفسه وإلى الله المصير |
| | | ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है |
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322 | 3 | 29 | قل إن تخفوا ما في صدوركم أو تبدوه يعلمه الله ويعلم ما في السماوات وما في الأرض والله على كل شيء قدير |
| | | कह दो, "यदि तुम अपने दिलों की बात छिपाओ या उसे प्रकट करो, प्रत्येक दशा में अल्लाह उसे जान लेगा। और वह उसे भी जानता है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" |
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323 | 3 | 30 | يوم تجد كل نفس ما عملت من خير محضرا وما عملت من سوء تود لو أن بينها وبينه أمدا بعيدا ويحذركم الله نفسه والله رءوف بالعباد |
| | | जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई भलाई और अपनी की हुई बुराई को सामने मौजूद पाएगा, वह कामना करेगा कि काश! उसके और उस दिन के बीच बहुत दूर का फ़ासला होता। और अल्लाह तुम्हें अपना भय दिलाता है, और वह अपने बन्दों के लिए अत्यन्त करुणामय है |
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324 | 3 | 31 | قل إن كنتم تحبون الله فاتبعوني يحببكم الله ويغفر لكم ذنوبكم والله غفور رحيم |
| | | कह दो, "यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।" |
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325 | 3 | 32 | قل أطيعوا الله والرسول فإن تولوا فإن الله لا يحب الكافرين |
| | | कह दो, "अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो अल्लाह भी इनकार करनेवालों से प्रेम नहीं करता |
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326 | 3 | 33 | إن الله اصطفى آدم ونوحا وآل إبراهيم وآل عمران على العالمين |
| | | अल्लाह ने आदम, नूह, इबराहीम की सन्तान और इमरान की सन्तान को सारे संसार की अपेक्षा प्राथमिकता देकर चुना |
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327 | 3 | 34 | ذرية بعضها من بعض والله سميع عليم |
| | | एक नस्त के रूप में, उसमें से एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी से पैदा हुई। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है |
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328 | 3 | 35 | إذ قالت امرأت عمران رب إني نذرت لك ما في بطني محررا فتقبل مني إنك أنت السميع العليم |
| | | याद करो जब इमरान की स्त्री ने कहा, "मेरे रब! जो बच्चा मेरे पेट में है उसे मैंने हर चीज़ से छुड़ाकर भेट स्वरूप तुझे अर्पित किया। अतः तू उसे मेरी ओर से स्वीकार कर। निस्संदेह तू सब कुछ सुनता, जानता है।" |
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329 | 3 | 36 | فلما وضعتها قالت رب إني وضعتها أنثى والله أعلم بما وضعت وليس الذكر كالأنثى وإني سميتها مريم وإني أعيذها بك وذريتها من الشيطان الرجيم |
| | | फिर जब उसके यहाँ बच्ची पैदा हुई तो उसने कहा, "मेरे रब! मेरे यहाँ तो लड़की पैदा हुई है।" - अल्लाह तो जानता ही था जो कुछ उसके यहाँ पैदा हुआ था। और वह लड़का उस लडकी की तरह नहीं हो सकता - "और मैंने उसका नाम मरयम रखा है और मैं उसे और उसकी सन्तान को तिरस्कृत शैतान (के उपद्रव) से सुरक्षित रखने के लिए तेरी शरण में देती हूँ।" |
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330 | 3 | 37 | فتقبلها ربها بقبول حسن وأنبتها نباتا حسنا وكفلها زكريا كلما دخل عليها زكريا المحراب وجد عندها رزقا قال يا مريم أنى لك هذا قالت هو من عند الله إن الله يرزق من يشاء بغير حساب |
| | | अतः उसके रब ने उसका अच्छी स्वीकृति के साथ स्वागत किया और उत्तम रूप में उसे परवान चढ़ाया; और ज़करिया को उसका संरक्षक बनाया। जब कभी ज़करिया उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाता, तो उसके पास कुछ रोज़ी पाता। उसने कहा, "ऐ मरयम! ये चीज़े तुझे कहाँ से मिलती है?" उसने कहा, "यह अल्लाह के पास से है।" निस्संदेह अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब देता है |
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