بسم الله الرحمن الرحيم

نتائج البحث: 6236
ترتيب الآيةرقم السورةرقم الآيةالاية
28992544أم تحسب أن أكثرهم يسمعون أو يعقلون إن هم إلا كالأنعام بل هم أضل سبيلا
या तुम समझते हो कि उनमें अधिकतर सुनते और समझते है? वे तो बस चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट!
29002545ألم تر إلى ربك كيف مد الظل ولو شاء لجعله ساكنا ثم جعلنا الشمس عليه دليلا
क्या तुमने अपने रब को नहीं देखा कि कैसे फैलाई छाया? यदि चाहता तो उसे स्थिर रखता। फिर हमने सूर्य को उसका पता देनेवाला बनाया,
29012546ثم قبضناه إلينا قبضا يسيرا
फिर हम उसको धीरे-धीरे अपनी ओर समेट लेते है
29022547وهو الذي جعل لكم الليل لباسا والنوم سباتا وجعل النهار نشورا
वही है जिसने रात्रि को तुम्हारे लिए वस्त्र और निद्रा को सर्वथा विश्राम एवं शान्ति बनाया और दिन को जी उठने का समय बनाया
29032548وهو الذي أرسل الرياح بشرا بين يدي رحمته وأنزلنا من السماء ماء طهورا
और वही है जिसने अपनी दयालुता (वर्षा) के आगे-आगे हवाओं को शुभ सूचना बनाकर भेजता है, और हम ही आकाश से स्वच्छ जल उतारते है
29042549لنحيي به بلدة ميتا ونسقيه مما خلقنا أنعاما وأناسي كثيرا
ताकि हम उसके द्वारा निर्जीव भू-भाग को जीवन प्रदान करें और उसे अपने पैदा किए हुए बहुत-से चौपायों और मनुष्यों को पिलाएँ
29052550ولقد صرفناه بينهم ليذكروا فأبى أكثر الناس إلا كفورا
उसे हमने उनके बीच विभिन्न ढ़ंग से पेश किया है, ताकि वे ध्यान दें। परन्तु अधिकतर लोगों ने इनकार और अकृतज्ञता के अतिरिक्त दूसरी नीति अपनाने से इनकार ही किया
29062551ولو شئنا لبعثنا في كل قرية نذيرا
यदि हम चाहते तो हर बस्ती में एक डरानेवाला भेज देते
29072552فلا تطع الكافرين وجاهدهم به جهادا كبيرا
अतः इनकार करनेवालों की बात न मानता और इस (क़ुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद! (जी तोड़ कोशिश)
29082553وهو الذي مرج البحرين هذا عذب فرات وهذا ملح أجاج وجعل بينهما برزخا وحجرا محجورا
वही है जिसने दो समुद्रों को मिलाया। यह स्वादिष्ट और मीठा है और यह खारी और कडुआ। और दोनों के बीच उसने एक परदा डाल दिया है और एक पृथक करनेवाली रोक रख दी है


0 ... 279.8 280.8 281.8 282.8 283.8 284.8 285.8 286.8 287.8 288.8 290.8 291.8 292.8 293.8 294.8 295.8 296.8 297.8 298.8 ... 623

إنتاج هذه المادة أخد: 0.03 ثانية


المغرب.كووم © ٢٠٠٩ - ١٤٣٠ © الحـمـد لله الـذي سـخـر لـنا هـذا :: وقف لله تعالى وصدقة جارية

2821400850214099497334761673564895425