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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
2898 | 25 | 43 | أرأيت من اتخذ إلهه هواه أفأنت تكون عليه وكيلا |
| | | क्या तुमने उस शख्स को भी देखा है जिसने अपनी नफ़सियानी ख्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उसके ज़िम्मेदार हो सकते हो (कि वह गुमराह न हों) |
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2899 | 25 | 44 | أم تحسب أن أكثرهم يسمعون أو يعقلون إن هم إلا كالأنعام بل هم أضل سبيلا |
| | | क्या ये तुम्हारा ख्याल है कि इन (कुफ्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिसल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज्यादा राह (रास्त) से भटके हुए |
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2900 | 25 | 45 | ألم تر إلى ربك كيف مد الظل ولو شاء لجعله ساكنا ثم جعلنا الشمس عليه دليلا |
| | | (ऐ रसूल) क्या तुमने अपने परवरदिगार की कुदरत की तरफ नज़र नहीं की कि उसने क्योंकर साये को फैला दिया अगर वह चहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुआ कर देता फिर हमने आफताब को (उसकी शिनाख्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया |
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2901 | 25 | 46 | ثم قبضناه إلينا قبضا يسيرا |
| | | फिर हमने उसको थोड़ा थोड़ा करके अपनी तरफ खीच लिया |
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2902 | 25 | 47 | وهو الذي جعل لكم الليل لباسا والنوم سباتا وجعل النهار نشورا |
| | | और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने तुम्हारे वास्ते रात को पर्दा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक्त बनाया |
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2903 | 25 | 48 | وهو الذي أرسل الرياح بشرا بين يدي رحمته وأنزلنا من السماء ماء طهورا |
| | | और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुश ख़बरी देने के लिए (पेश ख़ेमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और सुथरा हुआ पानी बरसाया |
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2904 | 25 | 49 | لنحيي به بلدة ميتا ونسقيه مما خلقنا أنعاما وأناسي كثيرا |
| | | ताकि हम उसके ज़रिए से मुर्दा (वीरान) शहर को ज़िन्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूकात में से चौपायों और बहुत से आदमियों को उससे सेराब करें |
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2905 | 25 | 50 | ولقد صرفناه بينهم ليذكروا فأبى أكثر الناس إلا كفورا |
| | | और हमने पानी को उनके दरमियान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना |
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2906 | 25 | 51 | ولو شئنا لبعثنا في كل قرية نذيرا |
| | | और अगर हम चाहते तो हर बस्ती में ज़रुर एक (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाला पैग़म्बर भेजते |
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2907 | 25 | 52 | فلا تطع الكافرين وجاهدهم به جهادا كبيرا |
| | | (तो ऐ रसूल) तुम काफिरों की इताअत न करना और उनसे कुरान के (दलाएल) से खूब लड़ों |
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