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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
2839 | 24 | 48 | وإذا دعوا إلى الله ورسوله ليحكم بينهم إذا فريق منهم معرضون |
| | | और जब वह लोग ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ बुलाए जाते हैं ताकि रसूल उनके आपस के झगड़े का फैसला कर दें तो उनमें का एक फरीक रदगिरदानी करता है |
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2840 | 24 | 49 | وإن يكن لهم الحق يأتوا إليه مذعنين |
| | | और (असल ये है कि) अगर हक़ उनकी तरफ होता तो गर्दन झुकाए (चुपके) रसूल के पास दौड़े हुए आते |
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2841 | 24 | 50 | أفي قلوبهم مرض أم ارتابوا أم يخافون أن يحيف الله عليهم ورسوله بل أولئك هم الظالمون |
| | | क्या उन के दिल में (कुफ्र का) मर्ज़ (बाक़ी) है या शक में पड़े हैं या इस बात से डरते हैं कि (मुबादा) ख़ुदा और उसका रसूल उन पर ज़ुल्म कर बैठेगा- (ये सब कुछ नहीं) बल्कि यही लोग ज़ालिम हैं |
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2842 | 24 | 51 | إنما كان قول المؤمنين إذا دعوا إلى الله ورسوله ليحكم بينهم أن يقولوا سمعنا وأطعنا وأولئك هم المفلحون |
| | | ईमानदारों का क़ौल तो बस ये है कि जब उनको ख़ुदा और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी झगड़ों का फैसला करो तो कहते हैं कि हमने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही लोग (आख़िरत में) कामयाब होने वाले हैं |
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2843 | 24 | 52 | ومن يطع الله ورسوله ويخش الله ويتقه فأولئك هم الفائزون |
| | | और जो शख्स ख़ुदा और उसके रसूल का हुक्म माने और ख़ुदा से डरे और उस (की नाफरमानी) से बचता रहेगा तो ऐसे ही लोग अपनी मुराद को पहुँचेगें |
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2844 | 24 | 53 | وأقسموا بالله جهد أيمانهم لئن أمرتهم ليخرجن قل لا تقسموا طاعة معروفة إن الله خبير بما تعملون |
| | | और (ऐ रसूल) उन (मुनाफेक़ीन) ने तुम्हारी इताअत की ख़ुदा की सख्त से सख्त क़समें खाई कि अगर तुम उन्हें हुक्म दो तो बिला उज़्र (घर बार छोड़कर) निकल खडे हों- तुम कह दो कि क़समें न खाओ दस्तूर के मुवाफिक़ इताअत (इससे बेहतर) और बेशक तुम जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है |
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2845 | 24 | 54 | قل أطيعوا الله وأطيعوا الرسول فإن تولوا فإنما عليه ما حمل وعليكم ما حملتم وإن تطيعوه تهتدوا وما على الرسول إلا البلاغ المبين |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किए गए हैं और जिसके ज़िम्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज है |
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2846 | 24 | 55 | وعد الله الذين آمنوا منكم وعملوا الصالحات ليستخلفنهم في الأرض كما استخلف الذين من قبلهم وليمكنن لهم دينهم الذي ارتضى لهم وليبدلنهم من بعد خوفهم أمنا يعبدونني لا يشركون بي شيئا ومن كفر بعد ذلك فأولئك هم الفاسقون |
| | | (ऐ ईमानदारों) तुम में से जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन से ख़ुदा ने वायदा किया कि उन को (एक न एक) दिन रुए ज़मीन पर ज़रुर (अपना) नाएब मुक़र्रर करेगा जिस तरह उन लोगों को नाएब बनाया जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं और जिस दीन को उसने उनके लिए पसन्द फरमाया है (इस्लाम) उस पर उन्हें ज़रुर ज़रुर पूरी क़ुदरत देगा और उनके ख़ाएफ़ होने के बाद (उनकी हर आस को) अमन से ज़रुर बदल देगा कि वह (इत्मेनान से) मेरी ही इबादत करेंगे और किसी को हमारा शरीक न बनाएँगे और जो शख्स इसके बाद भी नाशुक्री करे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं |
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2847 | 24 | 56 | وأقيموا الصلاة وآتوا الزكاة وأطيعوا الرسول لعلكم ترحمون |
| | | और (ऐ ईमानदारों) नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और (दिल से) रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए |
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2848 | 24 | 57 | لا تحسبن الذين كفروا معجزين في الأرض ومأواهم النار ولبئس المصير |
| | | और (ऐ रसूल) तुम ये ख्याल न करो कि कुफ्फार (इधर उधर) ज़मीन मे (फैल कर हमें) आजिज़ कर देगें (ये ख़ुद आजिज़ हो जाएगें) और उनका ठिकाना तो जहन्नुम है और क्या बुरा ठिकाना है |
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