بسم الله الرحمن الرحيم

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21571817وترى الشمس إذا طلعت تزاور عن كهفهم ذات اليمين وإذا غربت تقرضهم ذات الشمال وهم في فجوة منه ذلك من آيات الله من يهد الله فهو المهتد ومن يضلل فلن تجد له وليا مرشدا
(ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है और जब ग़ुरुब (डुबता) होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ (बड़ी) जगह में (लेटे) हैं ये ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे
21581818وتحسبهم أيقاظا وهم رقود ونقلبهم ذات اليمين وذات الشمال وكلبهم باسط ذراعيه بالوصيد لو اطلعت عليهم لوليت منهم فرارا ولملئت منهم رعبا
तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हालॉकि वह (गहरी नींद में) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ और कभी बायीं तरफ उनकी करवट बदलवा देते हैं और उनका कुत्ताा अपने आगे के दोनो पाँव फैलाए चौखट पर डटा बैठा है (उनकी ये हालत है कि) अगर कहीं तू उनको झाक कर देखे तो उलटे पाँव ज़रुर भाग खड़े हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए
21591819وكذلك بعثناهم ليتساءلوا بينهم قال قائل منهم كم لبثتم قالوا لبثنا يوما أو بعض يوم قالوا ربكم أعلم بما لبثتم فابعثوا أحدكم بورقكم هذه إلى المدينة فلينظر أيها أزكى طعاما فليأتكم برزق منه وليتلطف ولا يشعرن بكم أحدا
और (जिस तरह अपनी कुदरत से उनको सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भई आख़िर इस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे (अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारे परवरदिगार ही (कुछ तुम से) बेहतर जानता है (अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रुपया देकर शहर की तरफ भेजो तो वह (जाकर) देखभाल ले कि वहाँ कौन सा खाना बहुत अच्छा है फिर उसमें से (ज़रुरत भर) खाना तुम्हारे वास्ते ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे
21601820إنهم إن يظهروا عليكم يرجموكم أو يعيدوكم في ملتهم ولن تفلحوا إذا أبدا
इसमें शक़ नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेलाअ हो गई तो बस फिर तुम को संगसार ही कर देंगें या फिर तुम को अपने दीन की तरफ फेर कर ले जाएँगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होगे
21611821وكذلك أعثرنا عليهم ليعلموا أن وعد الله حق وأن الساعة لا ريب فيها إذ يتنازعون بينهم أمرهم فقالوا ابنوا عليهم بنيانا ربهم أعلم بهم قال الذين غلبوا على أمرهم لنتخذن عليهم مسجدا
और हमने यूँ उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेलाअ (ख़बर) कराई ताकि वह लोग देख लें कि ख़ुदा को वायदा यक़ीनन सच्चा है और ये (भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुबहा नहीं अब (इत्तिलाआ होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाक़िफ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें
21621822سيقولون ثلاثة رابعهم كلبهم ويقولون خمسة سادسهم كلبهم رجما بالغيب ويقولون سبعة وثامنهم كلبهم قل ربي أعلم بعدتهم ما يعلمهم إلا قليل فلا تمار فيهم إلا مراء ظاهرا ولا تستفت فيهم منهم أحدا
क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चौथा उनका कुत्ताा (क़तमीर) है और कुछ लोग (आक़िब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ताा है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ताा है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं
21631823ولا تقولن لشيء إني فاعل ذلك غدا
और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा
21641824إلا أن يشاء الله واذكر ربك إذا نسيت وقل عسى أن يهدين ربي لأقرب من هذا رشدا
मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज्यादा क़रीब हो
21651825ولبثوا في كهفهم ثلاث مائة سنين وازدادوا تسعا
और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे
21661826قل الله أعلم بما لبثوا له غيب السماوات والأرض أبصر به وأسمع ما لهم من دونه من ولي ولا يشرك في حكمه أحدا
(ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाक़िफ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील (शरीक) नहीं बनाता


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