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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
213 | 2 | 206 | وإذا قيل له اتق الله أخذته العزة بالإثم فحسبه جهنم ولبئس المهاد |
| | | और जब कहा जाता है कि ख़ुदा से डरो तो उसे ग़ुरुर गुनाह पर उभारता है बस ऐसे कम्बख्त के लिए जहन्नुम ही काफ़ी है और बहुत ही बुरा ठिकाना है |
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214 | 2 | 207 | ومن الناس من يشري نفسه ابتغاء مرضات الله والله رءوف بالعباد |
| | | और लोगों में से ख़ुदा के बन्दे कुछ ऐसे हैं जो ख़ुदा की (ख़ुशनूदी) हासिल करने की ग़रज़ से अपनी जान तक बेच डालते हैं और ख़ुदा ऐसे बन्दों पर बड़ा ही यफ्क्क़त वाला है |
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215 | 2 | 208 | يا أيها الذين آمنوا ادخلوا في السلم كافة ولا تتبعوا خطوات الشيطان إنه لكم عدو مبين |
| | | ईमान वालों तुम सबके सब एक बार इस्लाम में (पूरी तरह ) दाख़िल हो जाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो वह तुम्हारा यक़ीनी ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है |
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216 | 2 | 209 | فإن زللتم من بعد ما جاءتكم البينات فاعلموا أن الله عزيز حكيم |
| | | फिर जब तुम्हारे पास रौशन दलीले आ चुकी उसके बाद भी डगमगा गए तो अच्छी तरह समझ लो कि ख़ुदा (हर तरह) ग़ालिब और तदबीर वाला है |
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217 | 2 | 210 | هل ينظرون إلا أن يأتيهم الله في ظلل من الغمام والملائكة وقضي الأمر وإلى الله ترجع الأمور |
| | | क्या वह लोग इसी के मुन्तज़िर हैं कि सफेद बादल के साय बानो की आड़ में अज़ाबे ख़ुदा और अज़ाब के फ़रिश्ते उन पर ही आ जाए और सब झगड़े चुक ही जाते हालॉकि आख़िर कुल उमुर ख़ुदा ही की तरफ रुजू किए जाएँगे |
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218 | 2 | 211 | سل بني إسرائيل كم آتيناهم من آية بينة ومن يبدل نعمة الله من بعد ما جاءته فإن الله شديد العقاب |
| | | (ऐ रसूल) बनी इसराइल से पूछो कि हम ने उन को कैसी कैसी रौशन निशानियाँ दी और जब किसी शख्स के पास ख़ुदा की नेअमत (किताब) आ चुकी उस के बाद भी उस को बदल डाले तो बेशक़ ख़ुदा सख्त अज़ाब वाला है |
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219 | 2 | 212 | زين للذين كفروا الحياة الدنيا ويسخرون من الذين آمنوا والذين اتقوا فوقهم يوم القيامة والله يرزق من يشاء بغير حساب |
| | | जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उन के लिये दुनिया की ज़रा सी ज़िन्दगी ख़ूब अच्छी दिखायी गयी है और ईमानदारों से मसखरापन करते हैं हालॉकि क़यामत के दिन परहेज़गारों का दरजा उनसे (कहीं) बढ़ चढ़ के होगा और ख़ुदा जिस को चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फरमाता है |
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220 | 2 | 213 | كان الناس أمة واحدة فبعث الله النبيين مبشرين ومنذرين وأنزل معهم الكتاب بالحق ليحكم بين الناس فيما اختلفوا فيه وما اختلف فيه إلا الذين أوتوه من بعد ما جاءتهم البينات بغيا بينهم فهدى الله الذين آمنوا لما اختلفوا فيه من الحق بإذنه والله يهدي من يشاء إلى صراط مستقيم |
| | | (पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे ख़ुदा (उसका) फ़ैसला कर दे और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास ख़ुदा के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था और ख़ुदा जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है |
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221 | 2 | 214 | أم حسبتم أن تدخلوا الجنة ولما يأتكم مثل الذين خلوا من قبلكم مستهم البأساء والضراء وزلزلوا حتى يقول الرسول والذين آمنوا معه متى نصر الله ألا إن نصر الله قريب |
| | | क्या तुम ये ख्याल करते हो कि बेहश्त में पहुँच ही जाओगे हालॉकि अभी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आयी कि उन्हें तरह तरह की तक़लीफों (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़दर झिंझोडे ग़ए कि आख़िर (आज़िज़ हो के) पैग़म्बर और ईमान वाले जो उन के साथ थे कहने लगे देखिए ख़ुदा की मदद कब (होती) है देखो (घबराओ नहीं) ख़ुदा की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है |
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222 | 2 | 215 | يسألونك ماذا ينفقون قل ما أنفقتم من خير فللوالدين والأقربين واليتامى والمساكين وابن السبيل وما تفعلوا من خير فإن الله به عليم |
| | | (ऐ रसूल) तुमसे लोग पूछते हैं कि हम ख़ुदा की राह में क्या खर्च करें (तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई से जो कुछ खर्च करो तो (वह तुम्हारे माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों का हक़ है और तुम कोई नेक सा काम करो ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है |
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