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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1941 | 16 | 40 | إنما قولنا لشيء إذا أردناه أن نقول له كن فيكون |
| | | हम जब किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करते हैं तो हमारा कहना उसके बारे में इतना ही होता है कि हम कह देते हैं कि 'हो जा' बस फौरन हो जाती है (तो फिर मुर्दों का जिलाना भी कोई बात है) |
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1942 | 16 | 41 | والذين هاجروا في الله من بعد ما ظلموا لنبوئنهم في الدنيا حسنة ولأجر الآخرة أكبر لو كانوا يعلمون |
| | | और जिन लोगों ने (कुफ्फ़ार के ज़ुल्म पर ज़ुल्म सहने के बाद ख़ुदा की खुशी के लिए घर बार छोड़ा हिजरत की हम उनको ज़रुर दुनिया में भी अच्छी जगह बिठाएँगें और आख़िरत की जज़ा तो उससे कहीं बढ़ कर है काश ये लोग जिन्होंने ख़ुदा की राह में सख्तियों पर सब्र किया |
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1943 | 16 | 42 | الذين صبروا وعلى ربهم يتوكلون |
| | | और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आख़िरत का सवाब) जानते होते |
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1944 | 16 | 43 | وما أرسلنا من قبلك إلا رجالا نوحي إليهم فاسألوا أهل الذكر إن كنتم لا تعلمون |
| | | और (ऐ रसूल) तुम से पहले आदमियों ही को पैग़म्बर बना बनाकर भेजा किए जिन की तरफ हम वहीं भेजते थे तो (तुम अहले मक्का से कहो कि) अगर तुम खुद नहीं जानते हो तो अहले ज़िक्र (आलिमों से) पूछो (और उन पैग़म्बरों को भेजा भी तो) रौशन दलीलों और किताबों के साथ |
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1945 | 16 | 44 | بالبينات والزبر وأنزلنا إليك الذكر لتبين للناس ما نزل إليهم ولعلهم يتفكرون |
| | | और तुम्हारे पास क़ुरान नाज़िल किया है ताकि जो एहकाम लोगों के लिए नाज़िल किए गए है तुम उनसे साफ साफ बयान कर दो ताकि वह लोग खुद से कुछ ग़ौर फिक्र करें |
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1946 | 16 | 45 | أفأمن الذين مكروا السيئات أن يخسف الله بهم الأرض أو يأتيهم العذاب من حيث لا يشعرون |
| | | तो क्या जो लोग बड़ी बड़ी मक्कारियाँ (शिर्क वग़ैरह) करते थे (उनको इस बात का इत्मिनान हो गया है (और मुत्तलिक़ ख़ौफ नहीं) कि ख़ुदा उन्हें ज़मीन में धसा दे या ऐसी तरफ से उन पर अज़ाब आ पहुँचे कि उसकी उनको ख़बर भी न हो |
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1947 | 16 | 46 | أو يأخذهم في تقلبهم فما هم بمعجزين |
| | | उनके चलते फिरते (ख़ुदा का अज़ाब) उन्हें गिरफ्तार करे तो वह लोग उसे ज़ेर नहीं कर सकते |
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1948 | 16 | 47 | أو يأخذهم على تخوف فإن ربكم لرءوف رحيم |
| | | या वह अज़ाब से डरते हो तो (उसी हालत में) धर पकड़ करे इसमें तो शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ रहम वाला है |
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1949 | 16 | 48 | أولم يروا إلى ما خلق الله من شيء يتفيأ ظلاله عن اليمين والشمائل سجدا لله وهم داخرون |
| | | क्या उन लोगों ने ख़ुदा की मख़लूक़ात में से कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी जिसका साया (कभी) दाहिनी तरफ और कभी बायीं तरफ पलटा रहता है कि (गोया) ख़ुदा के सामने सर सजदा है और सब इताअत का इज़हार करते हैं |
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1950 | 16 | 49 | ولله يسجد ما في السماوات وما في الأرض من دابة والملائكة وهم لا يستكبرون |
| | | और जितनी चीज़ें (चादँ सूरज वग़ैरह) आसमानों में हैं और जितने जानवर ज़मीन में हैं सब ख़ुदा ही के आगे सर सजूद हैं और फरिश्ते तो (है ही) और वह हुक्में ख़ुदा से सरकशी नहीं करते (49) (सजदा) |
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