نتائج البحث: 6236
|
ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1778 | 14 | 28 | ألم تر إلى الذين بدلوا نعمت الله كفرا وأحلوا قومهم دار البوار |
| | | (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों के हाल पर ग़ौर नहीं किया जिन्होंने मेरे एहसान के बदले नाशुक्री की एख्तियार की और अपनी क़ौम को हलाकत के घरवाहे (जहन्नुम) में झोंक दिया |
|
1779 | 14 | 29 | جهنم يصلونها وبئس القرار |
| | | कि सबके सब जहन्नुम वासिल होगें और वह (क्या) बुरा ठिकाना है |
|
1780 | 14 | 30 | وجعلوا لله أندادا ليضلوا عن سبيله قل تمتعوا فإن مصيركم إلى النار |
| | | और वह लोग दूसरो को ख़ुदा का हमसर (बराबर) बनाने लगे ताकि (लोगों को) उसकी राह से बहका दे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (ख़ैर चन्द रोज़ तो) चैन कर लो फिर तो तुम्हें दोज़ख की तरफ लौट कर जाना ही है |
|
1781 | 14 | 31 | قل لعبادي الذين آمنوا يقيموا الصلاة وينفقوا مما رزقناهم سرا وعلانية من قبل أن يأتي يوم لا بيع فيه ولا خلال |
| | | (ऐ रसूल) मेरे वह बन्दे जो ईमान ला चुके उन से कह दो कि पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करें और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी है उसमें से (ख़ुदा की राह में) छिपाकर या दिखा कर ख़र्च किया करे उस दिन (क़यामत) के आने से पहल जिसमें न तो (ख़रीदो) फरोख्त ही (काम आएगी) न दोस्ती मोहब्बत काम (आएगी) |
|
1782 | 14 | 32 | الله الذي خلق السماوات والأرض وأنزل من السماء ماء فأخرج به من الثمرات رزقا لكم وسخر لكم الفلك لتجري في البحر بأمره وسخر لكم الأنهار |
| | | ख़ुदा ही ऐसा (क़ादिर तवाना) है जिसने सारे आसमान व ज़मीन पैदा कर डाले और आसमान से पानी बरसाया फिर उसके ज़रिए से (मुख्तलिफ दरख्तों से) तुम्हारी रोज़ा के वास्ते (तरह तरह) के फल पैदा किए और तुम्हारे वास्ते कश्तियां तुम्हारे बस में कर दी-ताकि उसके हुक्म से दरिया में चलें और तुम्हारे वास्ते नदियों को तुम्हारे एख्तियार में कर दिया |
|
1783 | 14 | 33 | وسخر لكم الشمس والقمر دائبين وسخر لكم الليل والنهار |
| | | और सूरज और चाँद को तुम्हारा ताबेदार बना दिया कि सदा फेरी किया करते हैं और रात और दिन को तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया कि हमेशा हाज़िर रहते हैं |
|
1784 | 14 | 34 | وآتاكم من كل ما سألتموه وإن تعدوا نعمت الله لا تحصوها إن الإنسان لظلوم كفار |
| | | (और अपनी ज़रुरत के मुवाफिक) जो कुछ तुमने उससे माँगा उसमें से (तुम्हारी ज़रूरत भर) तुम्हे दिया और तुम ख़ुदा की नेमतो गिनती करना चाहते हो तो गिन नहीं सकते हो तू बड़ा बे इन्साफ नाशुक्रा है |
|
1785 | 14 | 35 | وإذ قال إبراهيم رب اجعل هذا البلد آمنا واجنبني وبني أن نعبد الأصنام |
| | | और (वह वक्त याद करो) जब इबराहीम ने (ख़ुदा से) अर्ज़ की थी कि परवरदिगार इस शहर (मक्के) को अमन व अमान की जगह बना दे और मुझे और मेरी औलाद को इस बात को बचा ले कि बुतों की परसतिश करने लगे |
|
1786 | 14 | 36 | رب إنهن أضللن كثيرا من الناس فمن تبعني فإنه مني ومن عصاني فإنك غفور رحيم |
| | | ऐ मेरे पालने वाले इसमें शक़ नहीं कि इन बुतों ने बहुतेरे लोगों को गुमराह बना छोड़ा तो जो शख़्श मेरी पैरवी करे तो वह मुझ से है और जिसने मेरी नाफ़रमानी की (तो तुझे एख्तेयार है) तू तो बड़ा बख्शने वपला मेहरबान है) |
|
1787 | 14 | 37 | ربنا إني أسكنت من ذريتي بواد غير ذي زرع عند بيتك المحرم ربنا ليقيموا الصلاة فاجعل أفئدة من الناس تهوي إليهم وارزقهم من الثمرات لعلهم يشكرون |
| | | ऐ हमारे पालने वाले मैने तेरे मुअज़िज़ (इज्ज़त वाले) घर (काबे) के पास एक बेखेती के (वीरान) बियाबान (मक्का) में अपनी कुछ औलाद को (लाकर) बसाया है ताकि ऐ हमारे पालने वाले ये लोग बराबर यहाँ नमाज़ पढ़ा करें तो तू कुछ लोगों के दिलों को उनकी तरफ माएल कर (ताकि वह यहाँ आकर आबाद हों) और उन्हें तरह तरह के फलों से रोज़ी अता कर ताकि ये लोग (तेरा) शुक्र करें |
|