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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1751 | 14 | 1 | بسم الله الرحمن الرحيم الر كتاب أنزلناه إليك لتخرج الناس من الظلمات إلى النور بإذن ربهم إلى صراط العزيز الحميد |
| | | अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह एक किताब है जिसे हमने तुम्हारी ओर अवतरित की है, ताकि तुम मनुष्यों को अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले आओ, उनके रब की अनुमति से प्रभुत्वशाली, प्रशंस्य सत्ता, उस अल्लाह के मार्ग की ओर |
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1752 | 14 | 2 | الله الذي له ما في السماوات وما في الأرض وويل للكافرين من عذاب شديد |
| | | जिसका वह सब है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। इनकार करनेवालों के लिए तो एक कठोर यातना के कारण बड़ी तबाही है |
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1753 | 14 | 3 | الذين يستحبون الحياة الدنيا على الآخرة ويصدون عن سبيل الله ويبغونها عوجا أولئك في ضلال بعيد |
| | | जो आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन को प्राथमिकता देते है और अल्लाह के मार्ग से रोकते है और उसमें टेढ़ पैदा करना चाहते है, वही परले दरजे की गुमराही में पड़े है |
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1754 | 14 | 4 | وما أرسلنا من رسول إلا بلسان قومه ليبين لهم فيضل الله من يشاء ويهدي من يشاء وهو العزيز الحكيم |
| | | हमने जो रसूल भी भेजा, उसकी अपनी क़ौम की भाषा के साथ ही भेजा, ताकि वह उनके लिए अच्छी तरह खोलकर बयान कर दे। फिर अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट रहने देता है और जिसे चाहता है सीधे मार्ग पर लगा देता है। वह है भी प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी |
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1755 | 14 | 5 | ولقد أرسلنا موسى بآياتنا أن أخرج قومك من الظلمات إلى النور وذكرهم بأيام الله إن في ذلك لآيات لكل صبار شكور |
| | | हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ भेजा था कि "अपनी क़ौम के लोगों को अँधेरों से प्रकाश की ओर निकाल ला और उन्हें अल्लाह के दिवस याद दिला।" निश्चय ही इसमें प्रत्येक धैर्यवान, कृतज्ञ व्यक्ति के लिए कितनी ही निशानियाँ है |
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1756 | 14 | 6 | وإذ قال موسى لقومه اذكروا نعمة الله عليكم إذ أنجاكم من آل فرعون يسومونكم سوء العذاب ويذبحون أبناءكم ويستحيون نساءكم وفي ذلكم بلاء من ربكم عظيم |
| | | जब मूसा ने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "अल्लाह ही उस कृपादृष्टि को याद करो, जो तुमपर हुई। जब उसने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें बुरी यातना दे रहे थे, तुम्हारे बेटों का वध कर डालते थे और तुम्हारी औरतों को जीवित रखते थे, किन्तु इसमें तुम्हारे रब की ओर से बड़ी कृपा हुई।" |
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1757 | 14 | 7 | وإذ تأذن ربكم لئن شكرتم لأزيدنكم ولئن كفرتم إن عذابي لشديد |
| | | जब तुम्हारे रब ने सचेत कर दिया था कि 'यदि तुम कृतज्ञ हुए तो मैं तुम्हें और अधिक दूँगा, परन्तु यदि तुम अकृतज्ञ सिद्ध हुए तो निश्चय ही मेरी यातना भी अत्यन्त कठोर है।' |
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1758 | 14 | 8 | وقال موسى إن تكفروا أنتم ومن في الأرض جميعا فإن الله لغني حميد |
| | | और मूसा ने भी कहा था, "यदि तुम और वे जो भी धरती में हैं सब के सब अकृतज्ञ हो जाओ तो अल्लाह तो बड़ा निरपेक्ष, प्रशंस्य है।" |
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1759 | 14 | 9 | ألم يأتكم نبأ الذين من قبلكم قوم نوح وعاد وثمود والذين من بعدهم لا يعلمهم إلا الله جاءتهم رسلهم بالبينات فردوا أيديهم في أفواههم وقالوا إنا كفرنا بما أرسلتم به وإنا لفي شك مما تدعوننا إليه مريب |
| | | क्या तुम्हें उन लोगों की खबर नहीं पहुँची जो तुमसे पहले गुज़रे हैं, नूह की क़ौम और आद और समूद और वे लोग जो उनके पश्चात हुए जिनको अल्लाह के अतिरिक्त कोई नहीं जानता? उनके पास उनके रसूल स्पष्टि प्रमाण लेकर आए थे, किन्तु उन्होंने उनके मुँह पर अपने हाथ रख दिए और कहने लगे, "जो कुछ देकर तुम्हें भेजा गया है, हम उसका इनकार करते है और जिसकी ओर तुम हमें बुला रहे हो, उसके विषय में तो हम अत्यन्त दुविधाजनक संदेह में ग्रस्त है।" |
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1760 | 14 | 10 | قالت رسلهم أفي الله شك فاطر السماوات والأرض يدعوكم ليغفر لكم من ذنوبكم ويؤخركم إلى أجل مسمى قالوا إن أنتم إلا بشر مثلنا تريدون أن تصدونا عما كان يعبد آباؤنا فأتونا بسلطان مبين |
| | | उनके रसूलों ने कहो, "क्या अल्लाह के विषय में संदेह है, जो आकाशों और धरती का रचयिता है? वह तो तुम्हें इसलिए बुला रहा है, ताकि तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर दे और तुम्हें एक नियत समय तक मुहल्ल दे।" उन्होंने कहा, "तुम तो बस हमारे ही जैसे एक मनुष्य हो, चाहते हो कि हमें उनसे रोक दो जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते आए है। अच्छा, तो अब हमारे सामने कोई स्पष्ट प्रमाण ले आओ।" |
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