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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1745 | 13 | 38 | ولقد أرسلنا رسلا من قبلك وجعلنا لهم أزواجا وذرية وما كان لرسول أن يأتي بآية إلا بإذن الله لكل أجل كتاب |
| | | और हमने तुमसे पहले और (भी) बहुतेरे पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की) और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि कोई मौजिज़ा ख़ुदा की इजाज़त के बगैर ला दिखाए हर एक वक्त (मौऊद) के लिए (हमारे यहाँ) एक (क़िस्म की) तहरीर (होती) है |
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1746 | 13 | 39 | يمحو الله ما يشاء ويثبت وعنده أم الكتاب |
| | | फिर इसमें से ख़ुदा जिसको चाहता है मिटा देता है और (जिसको चाहता है बाक़ी रखता है और उसके पास असल किताब (लौहे महफूज़) मौजूद है |
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1747 | 13 | 40 | وإن ما نرينك بعض الذي نعدهم أو نتوفينك فإنما عليك البلاغ وعلينا الحساب |
| | | और (ए रसूल) जो जो वायदे (अज़ाब वगैरह के) हम उन कुफ्फारों से करते हैं चाहे, उनमें से बाज़ तुम्हारे सामने पूरे कर दिखाएँ या तुम्हें उससे पहले उठा लें बहर हाल तुम पर तो सिर्फ एहकाम का पहुचा देना फर्ज है |
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1748 | 13 | 41 | أولم يروا أنا نأتي الأرض ننقصها من أطرافها والله يحكم لا معقب لحكمه وهو سريع الحساب |
| | | और उनसे हिसाब लेना हमारा काम है क्या उन लोगों ने ये बात न देखी कि हम ज़मीन को (फ़ुतुहाते इस्लाम से) उसके तमाम एतराफ (चारो ओर) से (सवाह कुफ्र में) घटाते चले आते हैं और ख़ुदा जो चाहता है हुक्म देता है उसके हुक्म का कोई टालने वाला नहीं और बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है |
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1749 | 13 | 42 | وقد مكر الذين من قبلهم فلله المكر جميعا يعلم ما تكسب كل نفس وسيعلم الكفار لمن عقبى الدار |
| | | और जो लोग उन (कुफ्फार मक्के) से पहले हो गुज़रे हैं उन लोगों ने भी पैग़म्बरों की मुख़ालफत में बड़ी बड़ी तदबीरे की तो (ख़ाक न हो सका क्योंकि) सब तदबीरे तो ख़ुदा ही के हाथ में हैं जो शख़्श जो कुछ करता है वह उसे खूब जानता है और अनक़रीब कुफ्फार को भी मालूम हो जाएगा कि आख़िरत की खूबी किस के लिए है |
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1750 | 13 | 43 | ويقول الذين كفروا لست مرسلا قل كفى بالله شهيدا بيني وبينكم ومن عنده علم الكتاب |
| | | और (ऐ रसूल) काफिर लोग कहते हैं कि तुम पैग़म्बर नही हो तो तुम (उनसे) कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरमियान मेरी रिसालत की गवाही के वास्ते ख़ुदा और वह शख़्श जिसके पास (आसमानी) किताब का इल्म है काफी है |
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1751 | 14 | 1 | بسم الله الرحمن الرحيم الر كتاب أنزلناه إليك لتخرج الناس من الظلمات إلى النور بإذن ربهم إلى صراط العزيز الحميد |
| | | अलिफ़ लाम रा ऐ रसूल ये (क़ुरान वह) किताब है जिसकों हमने तुम्हारे पास इसलिए नाज़िल किया है कि तुम लोगों को परवरदिगार के हुक्म से (कुफ्र की) तारीकी से (ईमान की) रौशनी में निकाल लाओ ग़रज़ उसकी राह पर लाओ जो सब पर ग़ालिब और सज़ावार हम्द है |
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1752 | 14 | 2 | الله الذي له ما في السماوات وما في الأرض وويل للكافرين من عذاب شديد |
| | | वह ख़ुदा को कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और (आख़िरत में) काफिरों को लिए जो सख्त अज़ाब (मुहय्या किया गया) है अफसोस नाक है |
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1753 | 14 | 3 | الذين يستحبون الحياة الدنيا على الآخرة ويصدون عن سبيل الله ويبغونها عوجا أولئك في ضلال بعيد |
| | | वह कुफ्फार जो दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी को आख़िरत पर तरजीह देते हैं और (लोगों) को ख़ुदा की राह (पर चलने) से रोकते हैं और इसमें ख्वाह मा ख्वाह कज़ी पैदा करना चाहते हैं यही लोग बड़े पल्ले दर्जे की गुमराही में हैं |
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1754 | 14 | 4 | وما أرسلنا من رسول إلا بلسان قومه ليبين لهم فيضل الله من يشاء ويهدي من يشاء وهو العزيز الحكيم |
| | | और हमने जब कभी कोई पैग़म्बर भेजा तो उसकी क़ौम की ज़बान में बातें करता हुआ (ताकि उसके सामने (हमारे एहक़ाम) बयान कर सके तो यही ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिस की चाहता है हिदायत करता है वही सब पर ग़ालिब हिकमत वाला है |
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