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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1739 | 13 | 32 | ولقد استهزئ برسل من قبلك فأمليت للذين كفروا ثم أخذتهم فكيف كان عقاب |
| | | और (ऐ रसूल) तुमसे पहले भी बहुतेरे पैग़म्बरों की हॅसी उड़ाई जा चुकी है तो मैने (चन्द रोज़) काफिरों को मोहलत दी फिर (आख़िर कार) हमने उन्हें ले डाला फिर (तू क्या पूछता है कि) हमारा अज़ाब कैसा था |
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1740 | 13 | 33 | أفمن هو قائم على كل نفس بما كسبت وجعلوا لله شركاء قل سموهم أم تنبئونه بما لا يعلم في الأرض أم بظاهر من القول بل زين للذين كفروا مكرهم وصدوا عن السبيل ومن يضلل الله فما له من هاد |
| | | क्या जो (ख़ुदा) हर एक शख़्श के आमाल की ख़बर रखता है (उनको युं ही छोड़ देगा हरगिज़ नहीं) और उन लोगों ने ख़ुदा के (दूसरे दूसरे) शरीक ठहराए (ऐ रसूल तुम उनसे कह दो कि तुम आख़िर उनके नाम तो बताओं या तुम ख़ुदा को ऐसे शरीक़ो की ख़बर देते हो जिनको वह जानता तक नहीं कि वह ज़मीन में (किधर बसते) हैं या (निरी ऊपर से बातें बनाते हैं बल्कि (असल ये है कि) काफिरों को उनकी मक्कारियाँ भली दिखाई गई है और वह (गोया) राहे रास्त से रोक दिए गए हैं और जिस शख़्श को ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं |
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1741 | 13 | 34 | لهم عذاب في الحياة الدنيا ولعذاب الآخرة أشق وما لهم من الله من واق |
| | | इन लोगों के वास्ते दुनियावी ज़िन्दगी में (भी) अज़ाब है और आख़िरत का अज़ाब तो यक़ीनी और बहुत सख्त खुलने वाला है (और) (फिर) ख़ुदा (के ग़ज़ब) से उनको कोई बचाने वाला (भी) नहीं |
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1742 | 13 | 35 | مثل الجنة التي وعد المتقون تجري من تحتها الأنهار أكلها دائم وظلها تلك عقبى الذين اتقوا وعقبى الكافرين النار |
| | | जिस बाग़ (बेहश्त) का परहेज़गारों से वायदा किया गया है उसकी सिफत ये है कि उसके नीचे नहरें जारी होगी उसके मेवे सदाबहार और ऐसे ही उसकी छॉव भी ये अन्जाम है उन लोगों को जो (दुनिया में) परहेज़गार थे और काफिरों का अन्जाम (जहन्नुम की) आग है |
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1743 | 13 | 36 | والذين آتيناهم الكتاب يفرحون بما أنزل إليك ومن الأحزاب من ينكر بعضه قل إنما أمرت أن أعبد الله ولا أشرك به إليه أدعو وإليه مآب |
| | | और (ए रसूल) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह तो जो (एहकाम) तुम्हारे पास नाज़िल किए गए हैं सब ही से खुश होते हैं और बाज़ फिरके उसकी बातों से इन्कार करते हैं तुम (उनसे) कह दो कि (तुम मानो या न मानो) मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मै ख़ुदा ही की इबादत करु और किसी को उसका शरीक न बनाऊ मै (सब को) उसी की तरफ बुलाता हूँ और हर शख़्श को हिर फिर कर उसकी तरफ जाना है |
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1744 | 13 | 37 | وكذلك أنزلناه حكما عربيا ولئن اتبعت أهواءهم بعدما جاءك من العلم ما لك من الله من ولي ولا واق |
| | | और यूँ हमने उस क़ुरान को अरबी (ज़बान) का फरमान नाज़िल फरमाया और (ऐ रसूल) अगर कहीं तुमने इसके बाद को तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका उन की नफसियानी ख्वाहिशों की पैरवी कर ली तो (याद रखो कि) फिर ख़ुदा की तरफ से न कोई तुम्हारा सरपरस्त होगा न कोई बचाने वाला |
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1745 | 13 | 38 | ولقد أرسلنا رسلا من قبلك وجعلنا لهم أزواجا وذرية وما كان لرسول أن يأتي بآية إلا بإذن الله لكل أجل كتاب |
| | | और हमने तुमसे पहले और (भी) बहुतेरे पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की) और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि कोई मौजिज़ा ख़ुदा की इजाज़त के बगैर ला दिखाए हर एक वक्त (मौऊद) के लिए (हमारे यहाँ) एक (क़िस्म की) तहरीर (होती) है |
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1746 | 13 | 39 | يمحو الله ما يشاء ويثبت وعنده أم الكتاب |
| | | फिर इसमें से ख़ुदा जिसको चाहता है मिटा देता है और (जिसको चाहता है बाक़ी रखता है और उसके पास असल किताब (लौहे महफूज़) मौजूद है |
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1747 | 13 | 40 | وإن ما نرينك بعض الذي نعدهم أو نتوفينك فإنما عليك البلاغ وعلينا الحساب |
| | | और (ए रसूल) जो जो वायदे (अज़ाब वगैरह के) हम उन कुफ्फारों से करते हैं चाहे, उनमें से बाज़ तुम्हारे सामने पूरे कर दिखाएँ या तुम्हें उससे पहले उठा लें बहर हाल तुम पर तो सिर्फ एहकाम का पहुचा देना फर्ज है |
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1748 | 13 | 41 | أولم يروا أنا نأتي الأرض ننقصها من أطرافها والله يحكم لا معقب لحكمه وهو سريع الحساب |
| | | और उनसे हिसाब लेना हमारा काम है क्या उन लोगों ने ये बात न देखी कि हम ज़मीन को (फ़ुतुहाते इस्लाम से) उसके तमाम एतराफ (चारो ओर) से (सवाह कुफ्र में) घटाते चले आते हैं और ख़ुदा जो चाहता है हुक्म देता है उसके हुक्म का कोई टालने वाला नहीं और बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है |
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