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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1673 | 12 | 77 | قالوا إن يسرق فقد سرق أخ له من قبل فأسرها يوسف في نفسه ولم يبدها لهم قال أنتم شر مكانا والله أعلم بما تصفون |
| | | (ग़रज़) इब्ने यामीन रोक लिए गए तो ये लोग कहने लगे अगर उसने चोरी की तो (कौन ताज्जुब है) इसके पहले इसका भाई (यूसुफ) चोरी कर चुका है तो यूसुफ ने (उसका कुछ जवाब न दिया) उसको अपने दिल में पोशीदा (छुपाये) रखा और उन पर ज़ाहिर न होने दिया मगर ये कह दिया कि तुम लोग बड़े ख़ाना ख़राब (बुरे आदमी) हो |
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1674 | 12 | 78 | قالوا يا أيها العزيز إن له أبا شيخا كبيرا فخذ أحدنا مكانه إنا نراك من المحسنين |
| | | और जो (उसके भाई की चोरी का हाल बयान करते हो ख़ुदा खूब बवाक़िफ है (इस पर) उन लोगों ने कहा ऐ अज़ीज़ उस (इब्ने यामीन) के वालिद बहुत बूढ़े (आदमी) हैं (और इसको बहुत चाहते हैं) तो आप उसके ऐवज़ (बदले) हम में से किसी को ले लीजिए और उसको छोड़ दीजिए |
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1675 | 12 | 79 | قال معاذ الله أن نأخذ إلا من وجدنا متاعنا عنده إنا إذا لظالمون |
| | | क्योंकि हम आपको बहुत नेको कार बुर्जुग़ समझते हैं यूसुफ ने कहा माज़ अल्लाह (ये क्यों कर हो सकता है कि) हमने जिसकी पास अपनी चीज़ पाई है उसे छोड़कर दूसरे को पकड़ लें (अगर हम ऐसा करें) तो हम ज़रुर बड़े बेइन्साफ ठहरे |
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1676 | 12 | 80 | فلما استيأسوا منه خلصوا نجيا قال كبيرهم ألم تعلموا أن أباكم قد أخذ عليكم موثقا من الله ومن قبل ما فرطتم في يوسف فلن أبرح الأرض حتى يأذن لي أبي أو يحكم الله لي وهو خير الحاكمين |
| | | फिर जब यूसुफ की तरफ से मायूस हुए तो बाहम मशवरा करने के लिए अलग खड़े हुए तो जो शख़्श उन सब में बड़ा था (यहूदा) कहने लगा (भाइयों) क्या तुम को मालूम नहीं कि तुम्हार वालिद ने तुम लोगों से ख़ुदा का एहद करा लिया था और उससे तुम लोग यूसुफ के बारे में क्या कुछ ग़लती कर ही चुके हो तो (भाई) जब तक मेरे वालिद मुझे इजाज़त (न) दें या खुद ख़ुदा मुझे कोई हुक्म (न) दे मै उस सर ज़मीन से हरगिज़ न हटूंगा और ख़ुदा तो सब हुक्म देने वालो से कहीं बेहतर है |
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1677 | 12 | 81 | ارجعوا إلى أبيكم فقولوا يا أبانا إن ابنك سرق وما شهدنا إلا بما علمنا وما كنا للغيب حافظين |
| | | तुम लोग अपने वालिद के पास पलट के जाओ और उनसे जाकर अर्ज़ करो ऐ अब्बा अपके साहबज़ादे ने चोरी की और हम लोगों ने तो अपनी समझ के मुताबिक़ (उसके ले आने का एहद किया था और हम कुछ (अर्ज़) ग़ैबी (आफत) के निगेहबान थे नहीं |
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1678 | 12 | 82 | واسأل القرية التي كنا فيها والعير التي أقبلنا فيها وإنا لصادقون |
| | | और आप इस बस्ती (मिस्र) के लोगों से जिसमें हम लोग थे दरयाफ्त कर लीजिए और इस क़ाफले से भी जिसमें आए हैं (पूछ लीजिए) और हम यक़ीनन बिल्कुल सच्चे हैं |
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1679 | 12 | 83 | قال بل سولت لكم أنفسكم أمرا فصبر جميل عسى الله أن يأتيني بهم جميعا إنه هو العليم الحكيم |
| | | (ग़रज़ जब उन लोगों ने जाकर बयान किया तो) याक़ूब न कहा (उसने चोरी नहीं की) बल्कि ये बात तुमने अपने दिल से गढ़ ली है तो (ख़ैर) सब्र (और ख़ुदा का) शुक्र ख़ुदा से तो (मुझे) उम्मीद है कि मेरे सब (लड़कों) को मेरे पास पहुँचा दे बेशक वह बड़ा वाकिफ़ कार हकीम है |
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1680 | 12 | 84 | وتولى عنهم وقال يا أسفى على يوسف وابيضت عيناه من الحزن فهو كظيم |
| | | और याक़ूब ने उन लोगों की तरफ से मुँह फेर लिया और (रोकर) कहने लगे हाए अफसोस यूसुफ पर और (इस क़दर रोए कि) उनकी ऑंखें सदमे से सफेद हो गई वह तो बड़े रंज के ज़ाबित (झेलने वाले) थे |
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1681 | 12 | 85 | قالوا تالله تفتأ تذكر يوسف حتى تكون حرضا أو تكون من الهالكين |
| | | (ये देखकर उनके बेटे) कहने लगे कि आप तो हमेशा यूसुफ को याद ही करते रहिएगा यहाँ तक कि बीमार हो जाएगा या जान ही दे दीजिएगा |
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1682 | 12 | 86 | قال إنما أشكو بثي وحزني إلى الله وأعلم من الله ما لا تعلمون |
| | | याक़ूब ने कहा (मै तुमसे कुछ नहीं कहता) मैं तो अपनी बेक़रारी व रंज की शिकायत ख़ुदा ही से करता हूँ और ख़ुदा की तरफ से जो बातें मै जानता हूँ तुम नहीं जानते हो |
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