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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1643 | 12 | 47 | قال تزرعون سبع سنين دأبا فما حصدتم فذروه في سنبله إلا قليلا مما تأكلون |
| | | ताकि उनको भी (तुम्हारी क़दर) मालूम हो जाए यूसुफ ने कहा (इसकी ताबीर ये है) कि तुम लोग लगातार सात बरस काश्तकारी करते रहोगे तो जो (फसल) तुम काटो उस (के दाने) को बालियों में रहने देना (छुड़ाना नहीं) मगर थोड़ा (बहुत) जो तुम खुद खाओ |
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1644 | 12 | 48 | ثم يأتي من بعد ذلك سبع شداد يأكلن ما قدمتم لهن إلا قليلا مما تحصنون |
| | | उसके बाद बड़े सख्त (खुश्क साली (सूखे) के) सात बरस आएंगें कि जो कुछ तुम लोगों ने उन सातों साल के वास्ते पहले जमा कर रखा होगा सब खा जाएंगें मगर बहुत थोड़ा सा जो तुम (बीज के वास्ते) बचा रखोगे |
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1645 | 12 | 49 | ثم يأتي من بعد ذلك عام فيه يغاث الناس وفيه يعصرون |
| | | (बस) फिर उसके बाद एक साल आएगा जिसमें लोगों के लिए खूब मेंह बरसेगी (और अंगूर भी खूब फलेगा) और लोग उस साल (उन्हें) शराब के लिए निचोड़ेगें |
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1646 | 12 | 50 | وقال الملك ائتوني به فلما جاءه الرسول قال ارجع إلى ربك فاسأله ما بال النسوة اللاتي قطعن أيديهن إن ربي بكيدهن عليم |
| | | (ये ताबीर सुनते ही) बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे हुज़ूर में तो ले आओ फिर जब (शाही) चौबदार (ये हुक्म लेकर) यूसुफ के पास आया तो युसूफ ने कहा कि तुम अपनी सरकार के पास पलट जाओ और उनसे पूछो कि (आप को) कुछ उन औरतों का हाल भी मालूम है जिन्होने (मुझे देख कर) अपने अपने हाथ काट डाले थे कि या मैं उनका तालिब था |
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1647 | 12 | 51 | قال ما خطبكن إذ راودتن يوسف عن نفسه قلن حاش لله ما علمنا عليه من سوء قالت امرأت العزيز الآن حصحص الحق أنا راودته عن نفسه وإنه لمن الصادقين |
| | | या वह (मेरी) इसमें तो शक़ ही नहीं कि मेरा परवरदिगार ही उनके मक्र से खूब वाक़िफ है चुनान्चे बादशाह ने (उन औरतों को तलब किया) और पूछा कि जिस वक्त तुम लोगों ने यूसुफ से अपना मतलब हासिल करने की खुद उन से तमन्ना की थी तो हमें क्या मामला पेश आया था वह सब की सब अर्ज क़रने लगी हाशा अल्लाह हमने यूसुफ में तो किसी तरह की बुराई नहीं देखी (तब) अज़ीज़ मिस्र की बीबी (ज़ुलेख़ा) बोल उठी अब तू ठीक ठीक हाल सब पर ज़ाहिर हो ही गया (असल बात ये है कि) मैने खुद उससे अपना मतलब हासिल करने की तमन्ना की थी और बेशक वह यक़ीनन सच्चा है |
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1648 | 12 | 52 | ذلك ليعلم أني لم أخنه بالغيب وأن الله لا يهدي كيد الخائنين |
| | | (ये वाक़िया चौबदार ने यूसुफ से बयान किया (यूसुफ ने कहा) ये क़िस्से मैने इसलिए छेड़ा) ताकि तुम्हारे बादशाह को मालूम हो जाए कि मैने अज़ीज़ की ग़ैबत में उसकी (अमानत में ख़यानत नहीं की) और ख़ुदा ख़यानत करने वालों की मक्कारी हरगिज़ चलने नहीं देता |
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1649 | 12 | 53 | وما أبرئ نفسي إن النفس لأمارة بالسوء إلا ما رحم ربي إن ربي غفور رحيم |
| | | और (यूं तो) मै भी अपने नफ्स को गुनाहो से बे लौस नहीं कहता हूँ क्योंकि (मैं भी बशर हूँ और नफ्स बराबर बुराई की तरफ उभारता ही है मगर जिस पर मेरा परवरदिगार रहम फरमाए (और गुनाह से बचाए) |
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1650 | 12 | 54 | وقال الملك ائتوني به أستخلصه لنفسي فلما كلمه قال إنك اليوم لدينا مكين أمين |
| | | इसमें शक़ नहीं कि मेरा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है और बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे पास ले आओ तो मैं उनको अपने ज़ाती काम के लिए ख़ास कर लूंगा फिर उसने यूसुफ से बातें की तो यूसुफ की आला क़ाबलियत साबित हुई (और) उसने हुक्म दिया कि तुम आज (से) हमारे सरकार में यक़ीन बावक़ार (और) मुअतबर हो |
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1651 | 12 | 55 | قال اجعلني على خزائن الأرض إني حفيظ عليم |
| | | यूसुफ ने कहा (जब अपने मेरी क़दर की है तो) मुझे मुल्की ख़ज़ानों पर मुक़र्रर कीजिए क्योंकि मैं (उसका) अमानतदार ख़ज़ान्ची (और) उसके हिसाब व किताब से भी वाक़िफ हूँ |
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1652 | 12 | 56 | وكذلك مكنا ليوسف في الأرض يتبوأ منها حيث يشاء نصيب برحمتنا من نشاء ولا نضيع أجر المحسنين |
| | | (ग़रज़ यूसुफ शाही ख़ज़ानो के अफसर मुक़र्रर हुए) और हमने यूसुफ को युं मुल्क (मिस्र) पर क़ाबिज़ बना दिया कि उसमें जहाँ चाहें रहें हम जिस पर चाहते हैं अपना फज़ल करते हैं और हमने नेको कारो के अज्र को अकारत नहीं करते |
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