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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1625 | 12 | 29 | يوسف أعرض عن هذا واستغفري لذنبك إنك كنت من الخاطئين |
| | | (और यूसुफ से कहा) ऐ यूसुफ इसको जाने दो और (औरत से कहा) कि तू अपने गुनाह की माफी माँग क्योंकि बेशक तू ही सरतापा ख़तावार है |
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1626 | 12 | 30 | وقال نسوة في المدينة امرأت العزيز تراود فتاها عن نفسه قد شغفها حبا إنا لنراها في ضلال مبين |
| | | और शहर (मिस्र) में औरतें चर्चा करने लगी कि अज़ीज़ (मिस्र) की बीबी अपने ग़ुलाम से (नाजायज़) मतलब हासिल करने की आरज़ू मन्द है बेशक गुलाम ने उसे उलफत में लुभाया है हम लोग तो यक़ीनन उसे सरीही ग़लती में मुब्तिला देखते हैं |
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1627 | 12 | 31 | فلما سمعت بمكرهن أرسلت إليهن وأعتدت لهن متكأ وآتت كل واحدة منهن سكينا وقالت اخرج عليهن فلما رأينه أكبرنه وقطعن أيديهن وقلن حاش لله ما هذا بشرا إن هذا إلا ملك كريم |
| | | तो जब ज़ुलेख़ा ने उनके ताने सुने तो उस ने उन औरतों को बुला भेजा और उनके लिए एक मजलिस आरास्ता की और उसमें से हर एक के हाथ में एक छुरी और एक (नारंगी) दी (और कह दिया कि जब तुम्हारे सामने आए तो काट के एक फ़ाक उसको दे देना) और यूसुफ़ से कहा कि अब इनके सामने से निकल तो जाओ तो जब उन औरतों ने उसे देखा तो उसके बड़ा हसीन पाया तो सब के सब ने (बे खुदी में) अपने अपने हाथ काट डाले और कहने लगी हाय अल्लाह ये आदमी नहीं है ये तो हो न हो बस एक मुअज़िज़ (इज्ज़त वाला) फ़रिश्ता है |
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1628 | 12 | 32 | قالت فذلكن الذي لمتنني فيه ولقد راودته عن نفسه فاستعصم ولئن لم يفعل ما آمره ليسجنن وليكونا من الصاغرين |
| | | (तब ज़ुलेख़ा उन औरतों से) बोली कि बस ये वही तो है जिसकी बदौलत तुम सब मुझे मलामत (बुरा भला) करती थीं और हाँ बेशक मैं उससे अपना मतलब हासिल करने की खुद उससे आरज़ू मन्द थी मगर ये बचा रहा और जिस काम का मैं हुक्म देती हूँ अगर ये न करेगा तो ज़रुर क़ैद भी किया जाएगा और ज़लील भी होगा (ये सब बातें यूसुफ ने मेरी बारगाह में) अर्ज़ की |
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1629 | 12 | 33 | قال رب السجن أحب إلي مما يدعونني إليه وإلا تصرف عني كيدهن أصب إليهن وأكن من الجاهلين |
| | | ऐ मेरे पालने वाले जिस बात की ये औरते मुझ से ख्वाहिश रखती हैं उसकी निस्वत (बदले में) मुझे क़ैद ख़ानों ज्यादा पसन्द है और अगर तू इन औरतों के फ़रेब मुझसे दफा न फरमाएगा तो (शायद) मै उनकी तरफ माएल (झुक) हो जाँऊ ले तो जाओ और जाहिलों से शुमार किया जाऊँ |
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1630 | 12 | 34 | فاستجاب له ربه فصرف عنه كيدهن إنه هو السميع العليم |
| | | तो उनके परवरदिगार ने उनकी सुन ली और उन औरतों के मकर को दफा कर दिया इसमें शक़ नहीं कि वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफकार है |
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1631 | 12 | 35 | ثم بدا لهم من بعد ما رأوا الآيات ليسجننه حتى حين |
| | | फिर (अज़ीज़ मिस्र और उसके लोगों ने) बावजूद के (यूसुफ की पाक दामिनी की) निशानियाँ देख ली थी उसके बाद भी उनको यही मुनासिब मालूम हुआ |
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1632 | 12 | 36 | ودخل معه السجن فتيان قال أحدهما إني أراني أعصر خمرا وقال الآخر إني أراني أحمل فوق رأسي خبزا تأكل الطير منه نبئنا بتأويله إنا نراك من المحسنين |
| | | कि कुछ मियाद के लिए उनको क़ैद ही करे दें और यूसुफ के साथ और भी दो जवान आदमी (क़ैद ख़ाने) में दाख़िल हुए (चन्द दिन के बाद) उनमें से एक ने कहा कि मैने ख्वाब में देखा है कि मै (शराब बनाने के वास्ते अंगूर) निचोड़ रहा हूँ और दूसरे ने कहा (मै ने भी ख्वाब में) अपने को देखा कि मै अपने सर पर रोटिया उठाए हुए हूँ और चिड़ियाँ उसे खा रही हैं (यूसुफ) हमको उसकी ताबीर (मतलब) बताओ क्योंकि हम तुमको यक़ीनन नेकी कारों से समझते हैं |
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1633 | 12 | 37 | قال لا يأتيكما طعام ترزقانه إلا نبأتكما بتأويله قبل أن يأتيكما ذلكما مما علمني ربي إني تركت ملة قوم لا يؤمنون بالله وهم بالآخرة هم كافرون |
| | | यूसुफ ने कहा जो खाना तुम्हें (क़ैद ख़ाने से) दिया जाता है वह आने भी न पाएगा कि मै उसके तुम्हारे पास आने के क़ब्ल ही तुम्हे उसकी ताबीर बताऊँगा ये ताबीरे ख्वाब भी उन बातों के साथ है जो मेरे परवरदिगार ने मुझे तालीम फरमाई है मैं उन लोगों का मज़हब छोड़ बैठा हूँ जो ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते और वह लोग आख़िरत के भी मुन्किर है |
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1634 | 12 | 38 | واتبعت ملة آبائي إبراهيم وإسحاق ويعقوب ما كان لنا أن نشرك بالله من شيء ذلك من فضل الله علينا وعلى الناس ولكن أكثر الناس لا يشكرون |
| | | और मैं तो अपने बाप दादा इबराहीम व इसहाक़ व याक़ूब के मज़हब पर चलने वाला हूँ मुनासिब नहीं कि हम ख़ुदा के साथ किसी चीज़ को (उसका) शरीक बनाएँ ये भी ख़ुदा की एक बड़ी मेहरबानी है हम पर भी और तमाम लोगों पर मगर बहुतेरे लोग उसका शुक्रिया (भी) अदा नहीं करते |
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