نتائج البحث: 6236
|
ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1542 | 11 | 69 | ولقد جاءت رسلنا إبراهيم بالبشرى قالوا سلاما قال سلام فما لبث أن جاء بعجل حنيذ |
| | | और हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) इबराहीम के पास खुशख़बरी लेकर आए और उन्होंने (इबराहीम को) सलाम किया (इबराहीम ने) सलाम का जवाब दिया फिर इबराहीम एक बछड़े का भुना हुआ (गोश्त) ले आए |
|
1543 | 11 | 70 | فلما رأى أيديهم لا تصل إليه نكرهم وأوجس منهم خيفة قالوا لا تخف إنا أرسلنا إلى قوم لوط |
| | | (और साथ खाने बैठें) फिर जब देखा कि उनके हाथ उसकी तरफ नहीं बढ़ते तो उनकी तरफ से बदगुमान हुए और जी ही जी में डर गए (उसको वह फरिश्ते समझे) और कहने लगे आप डरे नहीं हम तो क़ौम लूत की तरफ (उनकी सज़ा के लिए) भेजे गए हैं |
|
1544 | 11 | 71 | وامرأته قائمة فضحكت فبشرناها بإسحاق ومن وراء إسحاق يعقوب |
| | | और इबराहीम की बीबी (सायरा) खड़ी हुई थी वह (ये ख़बर सुनकर) हॅस पड़ी तो हमने (उन्हेंफ़रिश्तों के ज़रिए से) इसहाक़ के पैदा होने की खुशख़बरी दी और इसहाक़ के बाद याक़ूब की |
|
1545 | 11 | 72 | قالت يا ويلتى أألد وأنا عجوز وهذا بعلي شيخا إن هذا لشيء عجيب |
| | | वह कहने लगी ऐ है क्या अब मै बच्चा जनने बैठॅूगी मैं तो बुढ़िया हूँ और ये मेरे मियॉ भी बूढे है ये तो एक बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है |
|
1546 | 11 | 73 | قالوا أتعجبين من أمر الله رحمت الله وبركاته عليكم أهل البيت إنه حميد مجيد |
| | | वह फरिश्ते बोले (हाए) तुम ख़ुदा की कुदरत से ताज्जुब करती हो ऐ अहले बैत (नबूवत) तुम पर ख़ुदा की रहमत और उसकी बरकते (नाज़िल हो) इसमें शक़ नहीं कि वह क़ाबिल हम्द (वासना) बुज़ुर्ग हैं |
|
1547 | 11 | 74 | فلما ذهب عن إبراهيم الروع وجاءته البشرى يجادلنا في قوم لوط |
| | | फिर जब इबराहीम (के दिल) से ख़ौफ जाता रहा और उनके पास (औलाद की) खुशख़बरी भी आ चुकी तो हम से क़ौमे लूत के बारे में झगड़ने लगे |
|
1548 | 11 | 75 | إن إبراهيم لحليم أواه منيب |
| | | बेशक इबराहीम बुर्दबार नरम दिल (हर बात में ख़ुदा की तरफ) रुजू (ध्यान) करने वाले थे |
|
1549 | 11 | 76 | يا إبراهيم أعرض عن هذا إنه قد جاء أمر ربك وإنهم آتيهم عذاب غير مردود |
| | | (हमने कहा) ऐ इबराहीम इस बात में हट मत करो (इस बार में) जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार का था वह क़तअन आ चुका और इसमें शक़ नहीं कि उन पर ऐसा अज़ाब आने वाले वाला है |
|
1550 | 11 | 77 | ولما جاءت رسلنا لوطا سيء بهم وضاق بهم ذرعا وقال هذا يوم عصيب |
| | | जो किसी तरह टल नहीं सकता और जब हमारे भेजे हुए फरिश्ते (लड़को की सूरत में) लूत के पास आए तो उनके ख्याल से रजीदा हुए और उनके आने से तंग दिल हो गए और कहने लगे कि ये (आज का दिन) सख्त मुसीबत का दिन है |
|
1551 | 11 | 78 | وجاءه قومه يهرعون إليه ومن قبل كانوا يعملون السيئات قال يا قوم هؤلاء بناتي هن أطهر لكم فاتقوا الله ولا تخزون في ضيفي أليس منكم رجل رشيد |
| | | और उनकी क़ौम (लड़को की आवाज़ सुनकर बुरे इरादे से) उनके पास दौड़ती हुई आई और ये लोग उसके क़ब्ल भी बुरे काम किया करते थे लूत ने (जब उनको) आते देखा तो कहा ऐ मेरी क़ौम ये मारी क़ौम की बेटियाँ (मौजूद हैं) उनसे निकाह कर लो ये तुम्हारीे वास्ते जायज़ और ज्यादा साफ सुथरी हैं तो खुदा से डरो और मुझे मेरे मेहमान के बारे में रुसवा न करो क्या तुम में से कोई भी समझदार आदमी नहीं है |
|