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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1504 | 11 | 31 | ولا أقول لكم عندي خزائن الله ولا أعلم الغيب ولا أقول إني ملك ولا أقول للذين تزدري أعينكم لن يؤتيهم الله خيرا الله أعلم بما في أنفسهم إني إذا لمن الظالمين |
| | | और मै तो तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास खुदाई ख़ज़ाने हैं और न (ये कहता हूँ कि) मै ग़ैब वॉ हूँ (गैब का जानने वाला) और ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें मै ये नहीं कहता कि ख़ुदा उनके साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात ख़ुदा ही खूब जानता है और अगर मै ऐसा कहूँ तो मै भी यक़ीनन ज़ालिम हूँ |
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1505 | 11 | 32 | قالوا يا نوح قد جادلتنا فأكثرت جدالنا فأتنا بما تعدنا إن كنت من الصادقين |
| | | वह लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से यक़ीनन झगड़े और बहुत झगड़े फिर तुम सच्चे हो तो जिस (अज़ाब) की तुम हमें धमकी देते थे हम पर ला चुको |
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1506 | 11 | 33 | قال إنما يأتيكم به الله إن شاء وما أنتم بمعجزين |
| | | नूह ने कहा अगर चाहेगा तो बस ख़ुदा ही तुम पर अज़ाब लाएगा और तुम लोग किसी तरह उसे हरा नहीं सकते और अगर मै चाहूँ तो तुम्हारी (कितनी ही) ख़ैर ख्वाही (भलाई) करुँ |
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1507 | 11 | 34 | ولا ينفعكم نصحي إن أردت أن أنصح لكم إن كان الله يريد أن يغويكم هو ربكم وإليه ترجعون |
| | | अगर ख़ुदा को तुम्हारा बहकाना मंज़ूर है तो मेरी ख़ैर ख्वाही कुछ भी तुम्हारे काम नहीं आ सकती वही तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की तरफ तुम को लौट जाना है |
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1508 | 11 | 35 | أم يقولون افتراه قل إن افتريته فعلي إجرامي وأنا بريء مما تجرمون |
| | | (ऐ रसूल) क्या (कुफ्फ़ारे मक्का भी) कहते हैं कि क़ुरान को उस (तुम) ने गढ़ लिया है तुम कह दो कि अगर मैने उसको गढ़ा है तो मेरे गुनाह का वबाल मुझ पर होगा और तुम लोग जो (गुनाह करके) मुजरिम होते हो उससे मै बरीउल ज़िम्मा (अलग) हूँ |
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1509 | 11 | 36 | وأوحي إلى نوح أنه لن يؤمن من قومك إلا من قد آمن فلا تبتئس بما كانوا يفعلون |
| | | और नूह के पास ये 'वही' भेज दी गई कि जो ईमान ला चुका उनके सिवा अब कोई शख़्श तुम्हारी क़ौम से हरगिज़ ईमान न लाएगा तो तुम ख्वाहमा ख्वाह उनकी कारस्तानियों का (कुछ) ग़म न खाओ |
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1510 | 11 | 37 | واصنع الفلك بأعيننا ووحينا ولا تخاطبني في الذين ظلموا إنهم مغرقون |
| | | और (बिस्मिल्लाह करके) हमारे रुबरु और हमारे हुक्म से कश्ती बना डालो और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके बारे में मुझसे सिफारिश न करना क्योंकि ये लोग ज़रुर डुबा दिए जाएँगें |
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1511 | 11 | 38 | ويصنع الفلك وكلما مر عليه ملأ من قومه سخروا منه قال إن تسخروا منا فإنا نسخر منكم كما تسخرون |
| | | और नूह कश्ती बनाने लगे और जब कभी उनकी क़ौम के सरबर आवुरदा लोग उनके पास से गुज़रते थे तो उनसे मसख़रापन करते नूह (जवाब में) कहते कि अगर इस वक्त तुम हमसे मसखरापन करते हो तो जिस तरह तुम हम पर हँसते हो हम तुम पर एक वक्त हँसेगें |
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1512 | 11 | 39 | فسوف تعلمون من يأتيه عذاب يخزيه ويحل عليه عذاب مقيم |
| | | और तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाज़िल होता है कि (दुनिया में) उसे रुसवा कर दे और किस पर (क़यामत में) दाइमी अज़ाब नाज़िल होता है |
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1513 | 11 | 40 | حتى إذا جاء أمرنا وفار التنور قلنا احمل فيها من كل زوجين اثنين وأهلك إلا من سبق عليه القول ومن آمن وما آمن معه إلا قليل |
| | | यहाँ तक कि जब हमारा हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा और तन्नूर से जोश मारने लगा तो हमने हुक्म दिया (ऐ नूह) हर किस्म के जानदारों में से (नर मादा का) जोड़ा (यानि) दो दो ले लो और जिस (की) हलाकत (तबाही) का हुक्म पहले ही हो चुका हो उसके सिवा अपने सब घर वाले और जो लोग ईमान ला चुके उन सबको कश्ती (नाँव) में बैठा लो और उनके साथ ईमान भी थोड़े ही लोग लाए थे |
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