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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1500 | 11 | 27 | فقال الملأ الذين كفروا من قومه ما نراك إلا بشرا مثلنا وما نراك اتبعك إلا الذين هم أراذلنا بادي الرأي وما نرى لكم علينا من فضل بل نظنكم كاذبين |
| | | तो उनके सरदार जो काफ़िर थे कहने लगे कि हम तो तुम्हें अपना ही सा एक आदमी समझते हैं और हम तो देखते हैं कि तुम्हारे पैरोकार हुए भी हैं तो बस सिर्फ हमारे चन्द रज़ील (नीच) लोग (और वह भी बे सोचे समझे सरसरी नज़र में) और हम तो अपने ऊपर तुम लोगों की कोई फज़ीलत नहीं देखते बल्कि तुम को झूठा समझते हैं |
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1501 | 11 | 28 | قال يا قوم أرأيتم إن كنت على بينة من ربي وآتاني رحمة من عنده فعميت عليكم أنلزمكموها وأنتم لها كارهون |
| | | (नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ |
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1502 | 11 | 29 | ويا قوم لا أسألكم عليه مالا إن أجري إلا على الله وما أنا بطارد الذين آمنوا إنهم ملاقو ربهم ولكني أراكم قوما تجهلون |
| | | और तुम हो कि उसको नापसन्द किए जाते हो और ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुमसे इसके सिले में कुछ माल का तालिब नहीं मेरी मज़दूरी तो सिर्फ ख़ुदा के ज़िम्मे है और मै तो तुम्हारे कहने से उन लोगों को जो ईमान ला चुके हैं निकाल नहीं सकता (क्योंकि) ये लोग भी ज़रुर अपने परवरदिगार के हुज़ूर में हाज़िर होगें मगर मै तो देखता हूँ कि कुछ तुम ही लोग (नाहक़) जिहालत करते हो |
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1503 | 11 | 30 | ويا قوم من ينصرني من الله إن طردتهم أفلا تذكرون |
| | | और मेरी क़ौम अगर मै इन (बेचारे ग़रीब) (ईमानदारों) को निकाल दूँ तो ख़ुदा (के अज़ाब) से (बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा तो क्या तुम इतना भी ग़ौर नहीं करते |
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1504 | 11 | 31 | ولا أقول لكم عندي خزائن الله ولا أعلم الغيب ولا أقول إني ملك ولا أقول للذين تزدري أعينكم لن يؤتيهم الله خيرا الله أعلم بما في أنفسهم إني إذا لمن الظالمين |
| | | और मै तो तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास खुदाई ख़ज़ाने हैं और न (ये कहता हूँ कि) मै ग़ैब वॉ हूँ (गैब का जानने वाला) और ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें मै ये नहीं कहता कि ख़ुदा उनके साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात ख़ुदा ही खूब जानता है और अगर मै ऐसा कहूँ तो मै भी यक़ीनन ज़ालिम हूँ |
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1505 | 11 | 32 | قالوا يا نوح قد جادلتنا فأكثرت جدالنا فأتنا بما تعدنا إن كنت من الصادقين |
| | | वह लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से यक़ीनन झगड़े और बहुत झगड़े फिर तुम सच्चे हो तो जिस (अज़ाब) की तुम हमें धमकी देते थे हम पर ला चुको |
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1506 | 11 | 33 | قال إنما يأتيكم به الله إن شاء وما أنتم بمعجزين |
| | | नूह ने कहा अगर चाहेगा तो बस ख़ुदा ही तुम पर अज़ाब लाएगा और तुम लोग किसी तरह उसे हरा नहीं सकते और अगर मै चाहूँ तो तुम्हारी (कितनी ही) ख़ैर ख्वाही (भलाई) करुँ |
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1507 | 11 | 34 | ولا ينفعكم نصحي إن أردت أن أنصح لكم إن كان الله يريد أن يغويكم هو ربكم وإليه ترجعون |
| | | अगर ख़ुदा को तुम्हारा बहकाना मंज़ूर है तो मेरी ख़ैर ख्वाही कुछ भी तुम्हारे काम नहीं आ सकती वही तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की तरफ तुम को लौट जाना है |
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1508 | 11 | 35 | أم يقولون افتراه قل إن افتريته فعلي إجرامي وأنا بريء مما تجرمون |
| | | (ऐ रसूल) क्या (कुफ्फ़ारे मक्का भी) कहते हैं कि क़ुरान को उस (तुम) ने गढ़ लिया है तुम कह दो कि अगर मैने उसको गढ़ा है तो मेरे गुनाह का वबाल मुझ पर होगा और तुम लोग जो (गुनाह करके) मुजरिम होते हो उससे मै बरीउल ज़िम्मा (अलग) हूँ |
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1509 | 11 | 36 | وأوحي إلى نوح أنه لن يؤمن من قومك إلا من قد آمن فلا تبتئس بما كانوا يفعلون |
| | | और नूह के पास ये 'वही' भेज दी गई कि जो ईमान ला चुका उनके सिवा अब कोई शख़्श तुम्हारी क़ौम से हरगिज़ ईमान न लाएगा तो तुम ख्वाहमा ख्वाह उनकी कारस्तानियों का (कुछ) ग़म न खाओ |
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